For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पैसे की बिसात पर लोकतंत्र

पैसे की बिसात पर लोकतंत्र

लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सबसे भव्य प्रदर्शन अप्रैल और मई में होने वाला है जब देश के 81करोड़ मतदाताओं को अपने सांसदों को चुनने का सौभाग्य मिलेगा। मतदाताओं को अपने एक-एक वोट से उत्कृष्ट नेताओं को संसद तक पंहुचाने के लिए चुनावी इम्तिहान से गुजरना होगा। पैसा, प्रलोभन  और भाई भतीजावाद से ऊपर उठकर लोकतंत्र के सभी मानकों में श्रेष्ठता बरकरार रखनी होगी। देश की जनता को मतदान के द्वारा सियासी इम्तिहान देना है क्योंकि चुनावी विसात तैयार है, पैसों के द्वारा वोटरों को लुभाने की चालें चलनी शुरू हो गयी हैं, आधारभूत मसलों से मतदाताओं को भटकाकर पैसों का प्रलोभन, धर्मवाद, जातिवाद, भाई भतीजावाद और ग्लैमर का तड़का लगाकर सब जीतने की होड़ में लगे हुये हैं।

 

ये अक्षरश: सत्य है  कि अपने भाग्य के विधाता बनाने की चाबी जब हमारे स्वयं के पास है तो गुनहगार भी हम स्वयं हैं जो कि अपने वोट की कीमत की  तराजू में तुल जाते है। हमें गांधारी कि तरह ध्रतराष्ट्र का हाथ पकड़ कर आगे नहीं बढना है, हमें प्रलोभन और खरीद-फरोख्त की राजनीति को धता बताकर आगे बढना है, असंतोष के अंगारे हमारी वोट की चोट में नज़र आने चाहिये ।

 

देश में आम चुनाव का शंखनाद हो चुका है, और राजनीतिक पार्टियां एक बार फिर गुणा-भाग करने में जुट गईं हैं। इस चुनावी अभियान में सबसे गौर करने वाली बात यह है कि आम जनता के मुद्दे पूरी तरह से गायब हैं। सारी कसरत और सारा चिंतन-मनन इस बात पर होता है कि कौन कितने पैसों से ज़्यादा-से-ज़्यादा वोट खरीद सकता है। पैसों की राजनीति के सामने लोकतंत्र अब घुटना टेक चुका है। ऐसी विषम परिस्थिति में ये मतदान भारत के उन नौजवानों के लिए, पढ़े-लिखे लोगों के लिए, महिलाओं के लिए, वैज्ञानिकों के लिए, और प्रवुद्ध नागरिकों के लिए एक ऐसा अश्वमेघ यज्ञ है जिससे वो अपने वोटरूपी आहुती डालकर एक ऐसे प्रतिनिधि को संसद में भेज सकते हैं जो उनके अनुरूप कार्य कर सके और उनकी बात सुन सके। संभवतया संसद में सांसद जनता की पसंद के बैठे होंगे। इसके बावजूद भी हम लालचवश चंद पैसों में बिक जाते हैं। कभी जाति की राजनीति में बह जाते हैं, तो कभी धर्म की राजनीति में न्योछावर हो जाते हैं। एक बार मन में रोटी, कपड़ा, मकान, बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा जैसे मुद्दों पर इन सभी को आज़मा कर देखिये फिर लोकतन्त्र की खुसबू आम आदमी के घर के मिट्टी के बर्तनों में भी आएगी।

               

जो राजनीति देश की दशा और दिशा तय करने वाली संसद से लेकर आपके रसोईघर तक में बैठी हो, वह कम महत्वपूर्ण कैसे हो सकती है ? जब वक्त एवं चुनाव हमारे और आपके हाथ में है तब कोसने के बजाय जनता और नेताओं को अपने अपने फर्ज़ निभाने चाहिए क्योंकि राजनेता किसी दूसरी प्रजाति के सदस्य नहीं है, वे इसी समाज के हिस्सा हैं। उनकी नैतिक ज़िम्मेदारी है कि जनता को प्रलोभन की राजनीति का ख्वाब न दिखाएँ। लोकतन्त्र की खूबसूरती यह है कि स्वयं को प्रलोभन की राजनीति से बचाकर ईमानदार छवि वाले नेताओं को संसद में भेजकर देश में बदलाव की बयार लाएँ। मंच से भाषण देते हुये हर कोई जनतंत्र को बचाने की बड़ी-बड़ी बातें करता है, किन्तु जब इन भाषणों की हकीकत देखने का अवसर मिलता है उन जगहों पर, जहां चार लोग खड़े होकर बात करते नज़र आते हैं या फिर उन जगहों पर जो लोग अपने-अपने क्षेत्र के नेता को जिताने के लिए समूह में बात करते नज़र आतें हैं, उनकी बातें सुनकर लोकतन्त्र का रंग स्याह हो जाता है। इन सब की बातों का मूल सार होता है पैसा और सिर्फ पैसा, जिसके लिए सब बिक जाते हैं। जो लोग पाँच साल तक बिजली, सड़क, पानी, सुरक्षा और विकास को लेकर बातें करते नहीं थकते थे वे सबके सब चंद पैसों के लालच में नेता के हाथों के कठपुतली बन जाते हैं। नेता उनके क्षेत्र में आते हैं और नोटों की गड्डियाँ दिखाकर रफूचक्कर हो जाते हैं। क्षेत्रीय नेता लग जाते हैं उन पैसों का बंदरबाट करने में, और जनता को मिलता है एक वोट के बदले एक बॉटल शराब। इस तरह ऐसी बस्ती तैयार हो जाती है वोट देने के लिए जिनके आगे विकास के मुद्दे भी कोई  मायने नहीं रखते। भोली-भली गरीब जनता या फिर ऐसे तबके के लोग जो सौ एवं पाँच सौ रूपये  में देश के विकास के सभी मुद्दे बेच देते हैं और छुट भैया नेताओं के लालच भरी बातों में आकर सच होते ख्वाब को खुद मसल देते हैं।

पैसे की राजनीति सुरसा के मुख की भाँति विकराल रूप धारण कर चुकी है आज हमारे देश के लोकतन्त्र का ये उत्सव मुंबई शेयर बाज़ार की तरह बनता जा रहा है जहाँ नेता आम जनता का वोट खरीदकर अपना शेयर भाव बढ़ाते हें। नेताओं को भी इस बात का यकीन हो चुका है कि चुनाव में आम जनता के मुददों को वे उठाए या ना उठाए उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है क्यूकि चुनाव में हार जीत इस बात पर तय होती है कि किस नेता का फाइनेंस मेनेजमेंट कैसा रहा है।

बात यही पर खत्म नहीं हो जाती, ये प्रलोभन का सिलसिला सिर्फ मतदान तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि सरकार के गठन की प्रक्रिया में भी अपना वर्चस्व कायम रखता है जब पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं बन पाती तब इन्ही नेताओं के बारे न्यारे हो जाते हें। सेकड़ों और हजारों में दिया जाने वाला प्रलोभन करोड़ों की सीमा पार कर जाता है। पैसे का ये खेल अब चोरी छुपे नहीं बल्कि सरेआम खेला जाता है संसद में नोटों की गड्डियाँ लहराई जाती हें, और लोकतंत्र के इस मंदिर की धज्जियां उड़ाईं जाती हें। गठबंधन की सरकार में छोटे छोटे दल भी धनकुबेर हो जाते हें। पैसों की विसात पर विछा ये लोकतंत्र अपनी बेवसी पर कराह उठता है अमृतपान के लिए जो जनता इस लोकतंत्र के समुद्र का मंथन करती है उसको सिर्फ हलाहल विष मिलता है और सत्ता सुंदरी के हाथों आए उस अमृत कलश को हासिल करने के लिए इन्ही नेताओं की राक्षसी प्रवत्ति जाग उठती है। जनता की गाढ़ी कमाई पर ऐशों आराम की ज़िंदगी का फलसफ़ा हमारे इन रहनुमाओं को मानव से दानव बना देता है। आखिर पैसे के बल पर पैसा कमाना इनका ध्येय बन जाता है। लोकतंत्र के लिए पैसे का ये नंगा नाच राजनीति को इतना कलंकित करता है कि आज राजनीति एक उद्योग के रूप में विकसित हो चुकी है। वक़्त आ गया है सभी प्रलोभनों से मुख मोड़कर विकास के मुद्दे पर अपना मत देकर बड़े बदलाव के लिए छोटी शुरुआत की जा सकती है। 

.

मौलिक एवं अप्रकाशित

डॉ० ह्रदेश चौधरी

Views: 408

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 28, 2014 at 11:32am

लोकतंत्र के नाम पर राजनीति को ही आपना पेशा मान बैठे लोगो ने पवित्र मंदिर दूषित और कलंकित कर दिया है |

जागरूक जनता अब बगैर किसी प्रलोभन के अनिवार्य रूप से और निर्भय होकर मतान करे यह आज की जरूरत है |

जागरूकता की द्रष्टि से लेख समयोचित और प्रभावपूर्ण लिखा है | इस विचार अभियक्ति के लिए बधाई डॉ चौधरी जी 

Comment by Omprakash Kshatriya on March 26, 2014 at 8:28pm

ठीक बात कही है आप ने

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
12 hours ago
ajay sharma shared a profile on Facebook
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service