गंगा जमुनी तहज़ीब है बसंत
पलकों की छांव में आकर जो खामोश हुये बैंठे हैं ।
दिल की चौखट पर हजारों सवालात लिए बैंठे हैं ।
पीले फूलों की तरह हर तरफ खिलता रहे बसंत,
बासन्ती परिधान में इश्क के जज़्बात लिए बैंठे हैं ।
प्यार, मोहब्बत, इश्क चाहे जिस नाम से पुकारो,
सूर और नज़ीर के हम खयालात लिए बैंठे हैं ।
सरसों के पुष्प से गुलजार है खेत और खलिहान,
कृषकों की खुशियों के हम पारिजात लिए बैंठे हैं ।
हम भी बना देते मोहब्बत का दूसरा ताजमहल,
पर शाहजहाँ द्वारा कटवाए हुये हाथ लिए बैंठे हैं ।
इस बासन्ती मौसम में तन - मन है प्रफुल्लित,
गंगा जमुनी तहजीव की सौगात लिए बैंठे हैं ।
डॉ हृदेश चौधरी
महासचिव
आराधना संस्था
नोट: यह रचना मौलिक एवं अप्रकाशित है ।
Comment
सुन्दर परस्तुति आदरणीया हार्दिक बधाई आपको////////// सादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई.
प्यार, मोहब्बत, इश्क चाहे जिस नाम से पुकारो,
सूर और नज़ीर के हम खयालात लिए बैंठे हैं ।-----------------------बेहतरीन
बधाई बधाई
हम भी बना देते मोहब्बत का दूसरा ताजमहल,
पर शाहजहाँ द्वारा कटवाए हुये हाथ लिए बैंठे हैं । ..............सुंदर गजल बधाई आ0 हृदेश जी ।
बसंत ऋतु पर बहुत सुंदर प्रस्तुति, बधाई स्वीकारें आदरणीया हृदेश जी
बहुत सुंदर रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई..सादर.
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