For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत 'लो बरखा फिर आई'

गीत
-लो बरखा फिर आई-

बादल की झोली में भरकर
बिखराती जल लाई।
सुप्त प्राण में प्राण सींचने
लो बरखा फिर आई।

सूखे विटप तृप्त तन्मय अब
करते झुक अभिनन्दन।
झूम झूम उत्साहित हों ज्यों
गीत गा रहे वन्दन।
उष्ण अनल से तपे ग्रीष्म की
अब तो हुई बिदाई।...सुप्त प्राण....

तप्त दिवाकर ने झुलसाया
वन उपवन सब सूखे।
दरक रहा धरती का सीना
बिन तृण के सब भूखे।
मदमाते रिमझिम सावन ने
जग की पीर मिटाई।...सुप्त प्राण

छन छन बूँदें तप्त धरा पर
गिर गिर जब इठलाती।
पुलकित धरती हो विभोर तब
रूप सजा इतराती।
सौंधी सी खुशबू मिट्टी की
साँसों बीच समाई।
सुप्त प्राण में प्राण सींचने
लो बरखा फिर आई।....सीमा हरि शर्मा 18.09.2014
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 546

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by harivallabh sharma on September 21, 2014 at 2:11pm

सुन्दर गीत..बरसात का सुस्वागत करता और ग्रीष्म से त्राण देता ..
सूखे विटप तृप्त तन्मय अब
करते झुक अभिनन्दन।
झूम झूम उत्साहित हों ज्यों
गीत गा रहे वन्दन।
उष्ण अनल से तपे ग्रीष्म की
अब तो हुई बिदाई।...सुप्त प्राण....बधाई 

Comment by seemahari sharma on September 20, 2014 at 10:39pm
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी बहुत बहुत आभार आपका आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ है आपने 'तृण'लिखने का कहा है मैं एडिट कर दूंगी इसी तरह मार्गदर्शन करतें रहें सादर
Comment by seemahari sharma on September 20, 2014 at 10:32pm
भाई जितेन्द्र 'गीत'जी बहुत बहुत धन्यवाद आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिये।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 20, 2014 at 1:50pm

महनीया

बहुत सुन्दर i  त्रण को तृण करले बस i ह्रदय में ऋतु मानो साक्षात् उतर आया i

 

छन छन बूँदें तप्त धरा पर
गिर गिर जब इठलाती।
पुलकित धरती हो विभोर तब
रूप सजा इतराती।
सौंधी सी खुशबू मिट्टी की
साँसों बीच समाई।
सुप्त प्राण में प्राण सींचने
लो बरखा फिर आई।....

 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 20, 2014 at 8:45am

छन छन बूँदें तप्त धरा पर
गिर गिर जब इठलाती।
पुलकित धरती हो विभोर तब
रूप सजा इतराती।
सौंधी सी खुशबू मिट्टी की
साँसों बीच समाई।
सुप्त प्राण में प्राण सींचने
लो बरखा फिर आई।...........बहुत सुंदर, सजीव सा वर्णन. बधाई आदरणीया सीमा जी

Comment by seemahari sharma on September 18, 2014 at 7:40pm
ह्रदय से शुक्रिया Meena Pathak जी
Comment by Meena Pathak on September 18, 2014 at 7:04pm

बहुत सुन्दर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service