कितना तामझाम....(नवगीत)
कितना तामझाम पसराया
जीवन आँगन में।
स्वर्णिम किरणें सुबह जगाती
दिन भर आपाधापी है।
साँझ धुँधलके से घिर जाती
रात तमस ले आती है।
तम को रोज झाड़ बुहरया
जीवन आँगन में।....कितना तामझाम पसराया
गजब मुखोटे मुख पर सजते
तन मशीन के कलपुर्जे।
जीने का दम भरने वाले
मानव ने ये खुद सरजे।
दूर खड़ा मन है खिसियाया
जीवन आँगन में।.....कितना तामझाम पसराया
रेलम पेला धक्का मुक्की
चलती…
Added by seemahari sharma on December 26, 2014 at 12:00pm — 14 Comments
Added by seemahari sharma on December 24, 2014 at 12:43pm — 18 Comments
Added by seemahari sharma on December 19, 2014 at 5:38pm — 12 Comments
Added by seemahari sharma on November 22, 2014 at 12:30am — 16 Comments
Added by seemahari sharma on October 19, 2014 at 4:34pm — 11 Comments
Added by seemahari sharma on October 18, 2014 at 2:43pm — 8 Comments
*जीवन चुपके से बीत गया*
जीवन का जो पल बीत गया
जो पल जीने से शेष रहा
पहचान नहीं कर पाया मन,
पल धीरे धीरे रीत गया
जीवन .....
ऐसे जी लूँ वैसे जी लूँ
जीवन कैसे कैसे जी लूँ
तैयारी मन करता ही रहा,
रोज लिखूँ कोई गीत नया।
जीवन....
सब अंधी दौड़ के प्रतियोगी
योगी मन भी बनते भोगी
अजब निराली मन की तृष्णा,
जब भी जीती मन भीत गया।
जीवन.....
खुद को जानूँ जग को मानूँ
जीवन रहस्य सब पहचानूँ
जग सृजक…
Added by seemahari sharma on October 16, 2014 at 10:30am — 18 Comments
Added by seemahari sharma on October 13, 2014 at 5:34pm — 14 Comments
Added by seemahari sharma on October 8, 2014 at 4:35pm — 6 Comments
Added by seemahari sharma on October 7, 2014 at 7:18pm — 16 Comments
मंथर गति से
थमा नहि पल कोई सुहाना
बीत सदा जाता है।
मंथर गति से घट जीवन का
रीत सदा जाता है।
सींचा एक एक पौधा तब
वन उपवन लहराते।
अनजाने से सन्नाटे ये
चुपके चुपके आते।
बड़ा तिलस्मी मरूथल
पग पग
जीत सदा जाता है
अल सुबहा के स्वपन सजीले
दिन भर धूम मचाते।
ऊषा के स्वर्णिम चंचल रँग
साँझ ढले थक जाते।
श्याम निशा के रँग
से जीवन
भीत सदा जाता है
मंथर गति से घट जीवन का
रीत सदा जाता…
Added by seemahari sharma on September 30, 2014 at 2:00am — 16 Comments
Added by seemahari sharma on September 28, 2014 at 1:30am — 21 Comments
गीत
-लो बरखा फिर आई-
बादल की झोली में भरकर
बिखराती जल लाई।
सुप्त प्राण में प्राण सींचने
लो बरखा फिर आई।
सूखे विटप तृप्त तन्मय अब
करते झुक अभिनन्दन।
झूम झूम उत्साहित हों ज्यों
गीत गा रहे वन्दन।
उष्ण अनल से तपे ग्रीष्म की
अब तो हुई बिदाई।...सुप्त प्राण....
तप्त दिवाकर ने झुलसाया
वन उपवन सब सूखे।
दरक रहा धरती का सीना
बिन तृण के सब भूखे।
मदमाते रिमझिम सावन ने
जग की पीर मिटाई।...सुप्त प्राण…
Added by seemahari sharma on September 18, 2014 at 9:00am — 7 Comments
Added by seemahari sharma on September 15, 2014 at 7:00pm — 14 Comments
Added by seemahari sharma on September 14, 2014 at 1:35am — 2 Comments
संस्कृत बृज अवधी
से सुवासित,
मैं हिंदी हूँ हिन्द
की शान।
बीते सात दशक
आजादी,
अब तक क्यों ना
मिली पहचान।
दुनियाँ के सारे
देशों में,
मातृभाषा का प्रथम
स्थान।
उर्दू, आंग्ल, फ़ारसी
सबको,
आत्मसात कर दिया
है मान।
हिंदी दिवस मनाता
अब भी,
मेरा लाडला हिन्दुस्तान
बीते सात दशक......
मैं हूँ स्वामिनी अपने
घर की,
भाषा पराई करती
राज।
लज्जा आती मुझे
बोलकर,
इंगलिश…
Added by seemahari sharma on September 2, 2014 at 3:30pm — 11 Comments
Added by seemahari sharma on August 18, 2014 at 1:23am — 12 Comments
Added by seemahari sharma on August 10, 2014 at 11:30am — 10 Comments
Added by seemahari sharma on August 1, 2014 at 7:00pm — 14 Comments
दिनकर मनमाना हुआ, गई धरा जब ऊब।
सूर्य रश्मियाँ रोक के, ......मेघा बरसे खूब।
त्राही दुनियां में मची, संकट में सब जीव।
बरखा रानी आ गई, .....कहे पपीहा पीव।
झूम रहे पत्ते सभी, पवन गा रही गीत।
वन्दन बरखा का करें, निभा रहें हैं रीत।
रंग धरा के खिल गए, शीतल पड़ी फुहार।
वन कानन नन्दन हुए , झूम उठा संसार।
पुष्प सभी हैं खिल उठे, जल की पड़ी फुहार।
भ्रमरों ने गुंजन किया, तितली ने मनुहार।
जल निमग्न धरती हुई, जन जीवन फिर…
Added by seemahari sharma on July 29, 2014 at 10:30am — 10 Comments
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