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है जहाँ में सदा तन के चलता पिता।
हँस दूँ इक बार में घोड़ा बनता पिता।
वो जगत का पिता ये है मेरा पिता।
नाम इससे लिया उसने लगता पिता।

दिन मिरे थे कभी बेफिकर वो सभी
मौज करता रहा कर्ज भरता पिता

इम्तहानों का जब भी पड़ा दौर है
नींद सोया कभी, रात जगता पिता

ठोकरें जब कभी भी लगीं हैं मुझे
दर्द मुझको हुआ आह भरता पिता

कब मेरे नाम से उसकी पहचान हो
ख्वाहिशें हैं सदा रब से करता पिता

देखता है पिता बढ़ रहा कद मिरा
देखती है नजर रोज ढलता पिता

इस जहाँ का पिता देख पाया न मैं
कुछ नहीं वो अलग तुझसे लगता पिता

.
सीमा हरि शर्मा 15.09.2014

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 716

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Comment by seemahari sharma on September 18, 2014 at 10:18am
आदरणीय मैं मतला बदल रहीं हूँ बहुत बहुत आभार आपका मार्गदर्शन के लिये ।
Comment by khursheed khairadi on September 18, 2014 at 10:06am

आदरणीया दीदी सीमा हरि जी अनुज भी अभी ग़ज़ल का एक नवसाधक ही है ,मेरी अल्प जानकारी के अनुसार मतले में ही तुक की छूट ली जाती है ,तथा मतले में चयनित तुक ही शेष अशहार में रवां होता है |शेष आप मंच के विद्जनों की इस्लाह पर संशोधन कर सकती हैं ,मैं अभी इस काबिल नहीं हूं कि अपने अग्रजों की रचनाओं में हस्तक्षेप करूं |कृपया अन्यथा न लें और अनुज पर पूर्ववत स्नेह बनाये रखें |

Comment by seemahari sharma on September 17, 2014 at 3:09pm
आदरणीय khursheed Khairadi बहुत शुक्रिया आपने मेरी गजल को इतना समय दिया मैंने इस गजल में रदीफ़..आ पिता और काफिया .नत रत गत आदि लिया है गजल के बारे में मैं ज्यादा कुछ नहीं जानती हूँ तुकान्त के हिसाब से मुझे भी थोड़ा खल रहा है विद्वजन कहें तो मैं ऐसा भी कर सकती हूँ
धूप सहकर सदा छाँह करता पिता।
मुश्किलों में सदा ढाल बनता पिता।
Comment by seemahari sharma on September 17, 2014 at 2:46pm
आभार Laxman dhami जी।
Comment by seemahari sharma on September 17, 2014 at 2:43pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी बहुत बहुत आभार आपकी प्रतिक्रिया अत्यंत उत्साहवर्धक है अभिभूत हूँ।सादर
Comment by seemahari sharma on September 17, 2014 at 2:32pm
ह्रदय से शुक्रिया जितेन्द्र'गीत'जी उत्साहवर्धन के लिये
Comment by seemahari sharma on September 17, 2014 at 12:33pm
डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी ह्रदय से बहुत बहुत आभार आपका आपकी प्रतिक्रिया से प्रोत्साहन मिला है सादर
Comment by seemahari sharma on September 17, 2014 at 12:26pm
आदरणीय Shyam Narain Verma जी बहुत बहुत आभार
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2014 at 11:17am

आदरणीया बहन सीमा हरि जी ,इस बहुत ही भावुक एवं मर्मस्पर्शी रचना के लिए हार्दिक बधाई l

Comment by khursheed khairadi on September 17, 2014 at 9:50am

कब मेरे नाम से उसकी पहचान हो
ख्वाहिशें हैं सदा रब से करता पिता

आदरणीया सीमा हरि जी ,बहुत ही भावुक एवं मर्मस्पर्शी रचना है |कोटि अभिनन्दन ,काव्य पक्ष सशक्त है |मतले में काफ़िये का शब्द (रवी ) यानि तुक -उ +नता है और मतले के तुक 'उनता' का सभी अशहार में निर्वहन होता तो ग़ज़ल और अधिक सुन्दर बन पड़ती |वैसे मैं ख़ुद अभी ग़ज़ल का एक नवसाधक हूं ,मेरा मंतव्य रचना की श्रेष्टता तथा आपकी विद्वता पर संदेह करना नहीं है ,चूँकि यह एक ओपन मंच है अतः रचनाकर्मी आपस में सोहार्दपूर्ण टिप्पणी कर सकते हैं ,कृपया अन्यथा न लेते हुए अपने अनुज पर स्नेह बनाए रखियेगा |सादर 

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