For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काश मैं ऐसा कर पाती .....गीत

'काश मैं ऐसा कर पाती'

जाने अनजाने पीड़ा ,
जो दी थी मैने माँ को
सारे दुःख वो हर पाती
काश मैं ऐसा कर पाती।....

पाई सुरक्षा तन तेरे , माँ लहू से पोषण मिलता
मुझसे पीड़ा पाकर भी , मुखड़ा तेरा खिल उठता
उफ कितनी पीड़ा दी जब , जगती में मुझे था आना
भूल असह्य वेदना माँ , कहती थी मुख दिखलाना
माँ तेरा वह दिव्य रूप
मैं सदैव याद रख पाती।......काश..

आदत पड़ी पुरानी माँ , तुझसे सब कुछ पाने की
तेरा जीवन कैसा भी , है महिमा बस गाने की
तेरी पीड़ा में शामिल , मैं भले नहीं हो पाती
सलवट मेरे माथे की , तेरे आंसूं बन जाती
माँ की मौन वेदना पर
मैं कभी मरहम धर पाती ।.......काश

नीड़ अमिट ना रह पाते , ना ही पंछी रूकते हैं
तृण के हर एक जोड़ों को , माँ के सपने बुनते हैं।
मानव से कमतर प्राणी , भी नहीं मांगते प्रतिफल
कद छोटा ना करती माँ , फैलाकर अपना आँचल
दुनियाँ की खुशियाँ तेरे
सभी आँचल में भर पाती ।........काश

कितनी रातें जागी माँ , कितने दिन खोए प्यारे
गणित लगाऊँ कैसे मैं , हैं जोड़ बाकि सब हारे
है विधान ना कोई माँ , मुक्ति का तेरे ऋण से
माँ बस केवल माँ होती , तू परे है ऋण उऋण से
माँ तेरे सभी सजीले
वो दिन औ रात लौटाती ।..........काश
सीमा हरि शर्मा 27.09.2014
मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 1006

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by seemahari sharma on October 5, 2014 at 8:35pm
ह्रदय से आभार आपका Laxmam Dhamiजी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रोत्साहन मिला
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 2, 2014 at 12:19pm

आदरणीया सीमाहरि जी इस बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by seemahari sharma on September 30, 2014 at 4:21pm
बहुत बहुत शुक्रिया Mahima Shree जी आपकी भावनाओं को मेरी रचना ने प्रभावित किया
Comment by seemahari sharma on September 30, 2014 at 4:03pm
Pawan Kumarजी बहुत बहुत धन्यवाद आपने रचना को सराहा
Comment by MAHIMA SHREE on September 30, 2014 at 12:02pm

कितनी रातें जागी माँ , कितने दिन खोए प्यारे
गणित लगाऊँ कैसे मैं , हैं जोड़ बाकि सब हारे
है विधान ना कोई माँ , मुक्ति का तेरे ऋण से
माँ बस केवल माँ होती , तू परे है ऋण उऋण से.....बेहद ह्रदयस्पर्शी ..सच में मान के ऋण से कभी भी उऋण नहीं हुआ जा सकता ..हार्दिक बधाई आदरणीया सीमाहरी जी 

Comment by Pawan Kumar on September 30, 2014 at 11:20am

माँ के प्यार और समर्पण का कोई मोल नही, उसके सारे दुःख दर्द हर लेने की चाह तो होती ही है!
काश सभी में ऐसी भावना होती, ऐसी चाह होती!
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, मन को छु गया!
आदरणीया, सादर बधाई!

Comment by seemahari sharma on September 30, 2014 at 2:21am
मेरी रचना के भावों ने आपके ह्रदय को छुआ रचनाकर्म सफल हुआ बहुत बहुत आभार भाई जितेन्द्र 'गीत' जी।
Comment by seemahari sharma on September 30, 2014 at 2:17am
बहुत बहुत आभार Shyam Narain Verma जी।
Comment by harivallabh sharma on September 30, 2014 at 12:58am

माँ के ऋण से कौन कब उऋण हो पाया ...माँ को समर्पित उत्तम नवगीत..आपका...बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 29, 2014 at 11:06pm

बहुत सुंदर पंक्तियाँ लिखी आपने आदरणीया सीमा हरी जी. शायद! हम अपनी खाल की जूतियाँ भी बनाकर माता-पिता को पहना दे, तब भी उनका कर्ज नही उतार सकते. बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service