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गीत ' सदियों से ढूँढूं मैं कान्हा'

तम में छिपते श्याम
घटा से
कभी छिपते सित भौर
सदियों से ढूँढूं मैं
कान्हा
पाऊँ ओर ना छोर
...
घोर तिमिर की छाया
में तुम
क्षण दर्पण देते हो
धुंध कुहासा हट
ना पाये
पल अर्पण लेते हो
तुम अदृश्य अनंत
अविनाशी
बंधें भी कैसे डोर
...
गोपियों के प्रेम में
बसकर
भक्ति में हँसते हो
योगिराज युग युग
से,तंदुल
मित्र कभी रमते हो
ज्ञान भक्ति पथ हो
कोई भी
कर्म बिना नहीं ठौर

सीमा हरि शर्मा 18.08.2014
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by seemahari sharma on September 2, 2014 at 6:29pm
Meena Pathak जी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिये
Comment by seemahari sharma on September 2, 2014 at 6:26pm
ह्रदय से शुक्रिया kalpna mishra bajpai जी। स्नेह बनाए रखिये
Comment by seemahari sharma on September 2, 2014 at 6:23pm
बहुत बहुत आभार laxman dhami जी।
Comment by seemahari sharma on September 2, 2014 at 6:20pm
आदरणीय rajesh kumari जी ह्रदय से आभार आपका इसी तरह स्नेह बनाये रखिये
Comment by seemahari sharma on September 2, 2014 at 6:16pm
बहुत आभार आदरणीय Vijay Nikore जी सादर
Comment by seemahari sharma on September 2, 2014 at 6:13pm
ह्रदय से आभार आदरणीय Saurabh Pandey जी आपकी प्रतिक्रिया से लेखन को प्रोत्साहन मिला सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2014 at 12:51am

गीत प्रयास के लिए अतिशय बधाइयाँ आदरणीया ..  आनन्द  गया..

Comment by vijay nikore on August 21, 2014 at 2:50pm

पढ़ कर आनन्द आया। बधाई, आदरणीया सीमा जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 20, 2014 at 4:28pm

सुन्दर भक्तिमय गीत के लिए हार्दिक बधाई आपको सीमा जी. 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2014 at 11:00am

सुन्दर गीत के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीया l

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