For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हिंदी दिवस पखवाड़े पर एक नवगीत

संस्कृत बृज अवधी
से सुवासित,
मैं हिंदी हूँ हिन्द
की शान।
बीते सात दशक
आजादी,
अब तक क्यों ना
मिली पहचान।

दुनियाँ के सारे
देशों में,
मातृभाषा का प्रथम
स्थान।
उर्दू, आंग्ल, फ़ारसी
सबको,
आत्मसात कर दिया
है मान।
हिंदी दिवस मनाता
अब भी,
मेरा लाडला हिन्दुस्तान
बीते सात दशक......

मैं हूँ स्वामिनी अपने
घर की,
भाषा पराई करती
राज।

लज्जा आती मुझे
बोलकर,
इंगलिश के सर धरते
ताज।
मातृभाषा भले
तुम्हारी,
करते इंगलिश का
सम्मान।
बीते सात दशक....

उच्च पढाई अंग्रेजी में,
कैसे हो मेरा विस्तार?
समृद्ध सबसे व्याकरण मेरा,
बना न प्रान्तों का आधार
बैर न किसी भाषा
बोली से,
मूल बिना ना सकल
उत्थान।
बीते सात दशक.....

जाने बिना दवाई
खाते,
जो इंगलिश से है
अनजान।
विद्यालयों की खस्ता
हालत,
कान्वेंटों की जगमग
शान।
सारे भारत अलख
जगाओ,
भरतखंड की आर्य
सन्तान।
बीते सात दशक आजादी,
अब तक क्यों ना
मिली पहचान।

सीमा हरि शर्मा 2.9 2014
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 759

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by seemahari sharma on September 7, 2014 at 10:54pm
आदरणीय Saurabh Pandey जी अभिभूत हूँ आपके नये रचनाकारों के प्रति असीम स्नेह को देखकर हम निश्चय ही आश्वस्त हैं आपकी छत्रछाया में बहुत कुछ सीख पायेंगे इसी तरह अपना स्नेह आशीर्वाद बनाये रखिये सादर आभार
Comment by seemahari sharma on September 7, 2014 at 10:44pm
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आप बड़े भाई की तरह है आपका क्षमा मांगना अच्छा नही लग रहा है मैंने हिंदी पर एक आम आदमी की सोच को आम भाषा में एकदम सहज रूप से व्यक्त करने का प्रयास किया है गलतियाँ निश्चय ही हैं आप जैसे अनुभवी साहित्यकारों का स्नेह आशीर्वाद और मार्गदर्शन मिलता रहेगा एसी आशा करती हूँ सादर आभार आदरणीय।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 6, 2014 at 12:01pm

आदरणीय सौरभजी

महनीया सीमा जी के हिन्दी नवगीत पर मेरी टिप्पणी के निहितार्थ भी होंगे  इस सम्भावना  पर मैंने शायद उस समय विचार नहीं किया I  जो बात मन में आयी  वैसे ही कह दी I इससे सीमा जी को भी अवश्य आघात लगा होगा i  इसमें कोई शक नहीं कि इस मंच से हम सब सीखते है i  मै स्वयं  सीखता आया हूँ i   कृपया मेरे कथन को  अन्यथा ले i इसमें एक भाई की बहन को सलाह  मात्र है  और   एक ही विषय  की  रचनाओ में तुलना तो  स्वभावतः होती ही  है i  मै आपसे और सीमा जी  दोनों से क्षमा प्रार्थी हूँ I  मेरा अनुरोध है कि -'' सार सार को गहि रहे थोथा देय उडाय i''

सादर i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2014 at 8:40am

आदरणीया सीमा जी , खूब सूरत सामयिक रगीत रचना के लिए आपको दिली बधाइयाँ |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 6, 2014 at 1:45am

आदरणीय गोपाल नारायनजी, आपने आदरणीया सीमाजी को उनके इस सकारात्मक प्रयास पर सलाह दिया है.
मैं ऐसी किसी सलाह से सन्न हूँ. इसे पढ़ कर न केवल मुझे दुख हुआ है, बल्कि अत्यंत क्षोभ हो रहा है. मैं समझ नहीं पारहा हूँ कि ऐसी किसी प्रतिक्रिया के परिप्रेक्ष्य में कहा क्या जाय !

आदरणीय, इसमें शक नहीं कि ऐसी कोई सलाह किसी रचनाकार को हतोत्साहित तो करती ही है, इस मंच के उद्येश्य और इस मंच की अवधारणा के स्पष्ट प्रतिकूल है.


इस मंच के कई वरिष्ठजन कई-कई कारणों से उस तरीके से सक्रिय नहीं है. जैसी उनसे अपेक्षा हुआ करती है. अन्यथा, व्यक्तिगत तौर पर मुझे कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं होती.

मैं स्वयं एक विद्यार्थी हूँ. गलतियाँ करना, सीखना तथा सतत प्रयासरत रहना ही किसी रचनाकार को रचनाप्रक्रिया के क्रम में संयत कर सकता है. आपभी अपने अनुभव तथा रचनाप्रक्रिया के संदर्भ में अपनी गहन समझ से उचित सुझाव दे सकते थे. यही उचित होता.

आदरणीया सीमाजी ने कोई प्रतियोगिता नहीं की है इसके प्रति मैं आश्वस्त हूँ. मैं इसे पूरी जानकारी के आधार पर कह रहा हूँ.
हिन्दी पखवारे या हिन्दी दिवस के अवसर हिन्दी साहित्य से सम्बद्ध हर रचनाकार का यह धर्म होता है कि वह इस विषय पर एक बार अवश्य रचनाकर्म करे. यही आदरणीया सीमाजी ने किया है. मैंने उनकी इस रचना को सादर मान दिया है. यही मैंने अपनी प्रतिक्रिया में लिखा भी है. उनके प्रति मेरी तीसरी बात का मतलब इतना ही है कि रचना अच्छी है, अलबत्ता, उसके प्रस्तुतीकरण यानि प्रस्तुत करने के ढंग को और साधा और सुधारा जा सकता है. 

आदरणीय गोपाल नारायनजी, हमसभी ऐसे ही तो एक-दूसरे से सीखते हैं.

मैंने तो जो कुछ सीखा है ऐसे ही सीखा है. इसी मंच से सीखा है. मेरी यह प्रक्रिया अब भी निरंतर है.

और, इसी विषय पर क्यों. सभी रचनाकारों को सभी विषय पर रचनाकर्म करना चाहिये. कोई रचना तभी सार्थक है जब वह अन्यान्य को सुप्रेरित करती है.

विश्वास है, आप मेरे हार्दिक कष्ट को समझ कर मुझे उबारने का प्रयास करेंगे तथा भविष्य में रचनाकारों के सार्थक तथा सात्विक प्रयास को प्रोत्साहित करते हुए सम्मान देने का भाव रखेंगे. 
सादर

Comment by seemahari sharma on September 5, 2014 at 9:15pm

आदरणीय Saurabh Pandey जी बहुत आभार आपने रचना को इतना समय दिया प्रस्तुतिकरण में जो गलतियाँ हों यदि कुछ मार्गदर्शन दें तो आपके अनुभवों का लाभ मिल सके सादर।

Comment by seemahari sharma on September 5, 2014 at 9:03pm
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आपने रचना पर ध्यान दिया बहुत आभार एक निवेदन करना चाहूंगी कि प्रतियोगिता और वो भी ओ बी ओ के मंच पर इतने बड़े बड़े विद्वानोसे मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकती हूँ। मैंने बस अपने भावों को व्यक्त किया है शिल्प के मामले में तो अभी क ख ग भी नही जानती। प्रतियोगिता में शामिल होने का दुस्साहस कैसे कर सकती हूँ। सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 4, 2014 at 3:35pm

पहली बात, गीत के लिए बधाई, आदरणीया सीमाजी. एक गंभीर प्रयास हुआ है. अतः दिल से दुबारा बधाई

दूसरी बात, आपकी और आदरणीय विजयशंकर जी की टिप्पणियाँ समीचीन सार्थक हैं. 

तीसरी बात, किसी रचना के प्रस्तुतीकरण का एक ढंग होता है, जो उसकी संप्रेषणीयता को बढ़ाता है. हमें उसे अवश्य समझने की कोशिश करनी चाहिए.

सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 4, 2014 at 1:48pm

आदरणीय

जब एक ही विषय पर कई रचनाये एक साथ आती है तो एक अवांछित प्रतियोगिता जन्म लेती है i सौरभ जी के गीत ने सबको बौना कर दिया है  i  ऐसी अवांछित प्रतियोगिता से बचना चाहिए i आपको ** देता  हूँ  i   सादर i

Comment by seemahari sharma on September 2, 2014 at 11:02pm
बहुत बहुत आभार आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी आपने रचना को मान दिया। आपने बिल्कुल सही कहा पहचान स्वयम ही बनाना पडती है लेकिन लम्बे समय तक गुलाम रहने के कारण हमारी मानसिकता जड़ हो गई जैसा चल रहा है चलने दो ओर इसमें उच्च वर्ग का लाभ है मेकाले की शिक्षा पद्दति सेउन्हें गुलाम बाबू आराम से मिल रहें।न्यूटन का एक नियम कभी पढ़ा था जो वस्तु जिस अवस्था में है उसी में रहना चाहती है जब तक उस और बाहरी बल ना लगाया जाय इसीलिए सामूहिक प्रयास करना होगा इस स्थिति से उबरने के लिये

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब जब मलाई लिख दिया गया है यानी किसी प्रोसेस से अलगाव तो हुआ ही है न..दूध…"
15 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, पहलगाम की जघन्य आतंकी घटना पर आपने अच्छे दोहे रचे हैं. उस पर बहुत…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, महाकुंभ विषयक दोहों की सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. एक बात…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"वाह वाह वाह !  आदरणीय सुरेश कल्याण जी,  स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे महान व्यक्तित्व को…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"जय हो..  हार्दिक धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  जिन परिस्थितियों में पहलगाम में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया गया, वह…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी left a comment for Shabla Arora
"आपका स्वागत है , आदरणीया Shabla jee"
Monday
Shabla Arora updated their profile
Monday
Shabla Arora is now a member of Open Books Online
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय सौरभ जी  आपकी नेक सलाह का शुक्रिया । आपके वक्तव्य से फिर यही निचोड़ निकला कि सरना दोषी ।…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"शुभातिशुभ..  अगले आयोजन की प्रतीक्षा में.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"वाह, साधु-साधु ऐसी मुखर परिचर्चा वर्षों बाद किसी आयोजन में संभव हो पायी है, आदरणीय. ऐसी परिचर्चाएँ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service