For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मंथर गति से

थमा नहि पल कोई सुहाना
बीत सदा जाता है।
मंथर गति से घट जीवन का
रीत सदा जाता है।

सींचा एक एक पौधा तब
वन उपवन लहराते।
अनजाने से सन्नाटे ये
चुपके चुपके आते।
बड़ा तिलस्मी मरूथल
पग पग
जीत सदा जाता है

अल सुबहा के स्वपन सजीले
दिन भर धूम मचाते।
ऊषा के स्वर्णिम चंचल रँग
साँझ ढले थक जाते।
श्याम निशा के रँग
से जीवन
भीत सदा जाता है
मंथर गति से घट जीवन का
रीत सदा जाता है।

.
सीमा हरि शर्मा 30.09.2014
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 721

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by seemahari sharma on October 5, 2014 at 8:31pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी बहुत बहुत आभार आपका आपने रचना पसंद की रचना कर्म सफल हुआ सादर
Comment by seemahari sharma on October 5, 2014 at 8:29pm
आदरणीय Sulabh Agnihotri जी ह्रदय से आभार आपका आपने रचना को पसंद किया सादर
Comment by seemahari sharma on October 5, 2014 at 8:25pm
आदरणीय Vijay Prakash Sharma जी बहुत बहुत आभार आपका सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2014 at 9:47pm

सींचा एक एक पौधा तब
वन उपवन लहराते।
अनजाने से सन्नाटे ये
चुपके चुपके आते।
बड़ा तिलस्मी मरूथल
पग पग
जीत सदा जाता है -------- बहुत सुन्दर , आदरणीया सीमा हरि जी , हार्दिक बधाई |

Comment by Sulabh Agnihotri on October 2, 2014 at 9:13pm

पूरा गीत बहुत सुन्दर है सीमा जी। मुझे निम्नलिखित पंक्तियां विशेष प्रभावी लगीं।
बधाई !

अल सुबहा के स्वपन सजीले
दिन भर धूम मचाते।
ऊषा के स्वर्णिम चंचल रँग
साँझ ढले थक जाते।
श्याम निशा के रँग
से जीवन
भीत सदा जाता है
मंथर गति से घट जीवन का
रीत सदा जाता है।

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on October 1, 2014 at 6:49pm

"मंथर गति से घट जीवन का
रीत सदा जाता है।" बहुत बधाई सीमा जी ,
वाह!! जीवन के सत्य का अद्भुत चित्रण,परन्तु दुर्भाग्य मनुष्य इसे पर ध्यान कहाँ दे पाता है,वह तो जीवन की आपाधापी में ही उलझा रह जाता है.

Comment by seemahari sharma on October 1, 2014 at 10:37am
ह्रदय से धन्यवाद भाई जितेन्द्र'गीत' जी इसी तरह पूरा जीवन कब बीत जाता है पता नहीं चलता
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 1, 2014 at 10:17am

पूर्ण रचना में बड़े सुंदर भाव उभर कर आये है , आदरणीया सीमा जी. सच! सब कुछ धीमे-धीमे पलों में बीत जाता है जीवन की खुशिया भी और गम भी. बहुत-२ बधाई आपको

Comment by seemahari sharma on October 1, 2014 at 10:09am
Pawan Kumar जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका
Comment by seemahari sharma on October 1, 2014 at 10:07am
आदरणीय Shyam Narain verma बहुत बहुत आभार आपका

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service