For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दफन है बहुत आग सीने में जिसके ------ग़ज़ल उमेश कटारा

122 122 122 122

बहुत हो चुकी हैं शराफत की बातें
चलो अब करें कुछ व़गाव़त की बातें
....
हसद है उन्हें अब मेरी शौहरतों से
जो करते कभी थे रियाज़त की बातें
.....
दफन है बहुत आग सीने में जिसके
वो कैसे   करेगा नज़ाकत की बातें
.....
बुजुर्गों की सेवा जरूरी बहुत है
करो सिर्फ इनकी इवादत की बातें
......
मुआफी के काबिल नहीं बेवफाई
न मुझसे करो तुम नदामत की बातें
......
जिसे जिन्दगी देके मैंने बचाया
वो करने लगा है खिलाफत की बातें

रियाजत --समर्पण
हसद-जलन
नदामत--पश्चाताप
अदावत -दुश्मनी

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 624

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by umesh katara on April 2, 2015 at 10:05pm

आदरणीय krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी सादर आभार

Comment by umesh katara on April 2, 2015 at 10:05pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सादर आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 2, 2015 at 1:05pm

बहुत खूब , आदरणीय कटारा भाई जी , हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 2, 2015 at 12:48pm

जिसे जिन्दगी देके मैंने बचाया
वो करने लगा है खिलाफत की बातें

बहुत खूब आ०उमेश जी!बधाईयां!

Comment by umesh katara on April 2, 2015 at 9:00am

आदरणीय मिथिलेश वामनकरजी शुक्रिया

Comment by umesh katara on April 2, 2015 at 9:00am

आदरणीय Mohan Sethi 'इंतज़ार' जी शुक्रिया

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 2, 2015 at 5:42am

आदरणीय बढ़िया ग़ज़ल हुई है बधाई

दफन है बहुत आग सीने में जिसके
वो कैसे   करेगा नज़ाकत की बातें

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 1, 2015 at 11:46pm

आदरणीय उमेश जी सुन्दर ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई.

Comment by umesh katara on April 1, 2015 at 9:52pm

आदरणीय pratibha tripathi जी शुक्रिया

Comment by umesh katara on April 1, 2015 at 9:52pm

आदरणीय vandana जी शुक्रिया

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
3 hours ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
3 hours ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
5 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
7 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
16 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service