For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बचपन में
हजार बुरी बलाओं पर 
पर भारी था
मेरी माँ का टोटका
माँ के हाथों से
माथे पर छोटा सा
काला टीका लगते ही
भयमुक्त हो जाता था 
एक असीम ताकत 
दे जाता था मन को
वो ममता में लिपटा 
माँ का टोटका
अब तो मैंने कैसे कैसे 
कृत्यों से कर लिया है
पूरा मुँह काला
मगर फिर भी 
भय से व्याप्त मन 
हमेशा व्याकुल रहता है

मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा



Views: 688

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by umesh katara on May 2, 2015 at 5:25pm

आदरणीय Saurabh Pandey जी मैंने आपकी प्रतिक्रिया को अन्यथा कतई नहीं लिया है गौर से पढ़ा और समझा है आभार 
मगर सर 
मैंने इस कविता के पहले हिस्से में
माँ के छोटे से काले टीके की ताकत को दिखाया है 
और दूसरे हिस्से में 
पूरा मूँह काला होने पर भी 
भय की स्थिति से पीडित होना बताया है
ऐसी स्थिति में 
माँ के टीके की ताकत की तुलना 
पूरा मुँह काला करने से की है
इसलिये 
मगर फिर भी 
लिखा है 
आप कतई अन्यथा न लें 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2015 at 12:12pm

आदरणीय उमेश कटाराजी, आपको मेरी प्रतिक्रिया में ऐसा अनूठापन क्या लगा है ? या, प्रस्तुत रचनाकर्म की समृद्धि हेतु मेरी सहयोगात्मक एवं आत्मीय सलाह आपको अपने रचनाकर्म पर अतिक्रमण लगी है ?
आदरणीय, मुझे भी जानने की उत्सुकता है. अन्यथा, इस मंच पर प्रतिक्रियाओं की ऐसी ही परिपाटी रही है. यदि सुझाव रचनाकार को अतुकान्त और अन्यथा लगे, तो हम सदस्य उसे बलात मनवाने में कोई रुचि नहीं रखते.
सादर

Comment by umesh katara on May 2, 2015 at 11:29am

आदरणीय shree suneel जी आपको रचना पसन्द आई आपका आभार

Comment by umesh katara on May 2, 2015 at 11:28am

आदरणीया भावना तिवारी जी आपको रचना पसन्द आई आभार

Comment by umesh katara on May 2, 2015 at 11:27am

आदरणीय Saurabh Pandey जी आपकी अनूठी प्रतिक्रिया के लिये तहेदिल से आभार व्यक्त करता हूँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2015 at 9:28am

आदरणीय उमेश कटाराजी, आपकी प्रस्तुति के भावशब्द सरल शब्दों में हैं और सीधे हृदय में उतरते चले जाते हैं. इस अत्यंत भावमय प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ. 

एक बात संप्रेषणीयता के लिहाज से अवश्य साझा करना चाहूँगा. शायद आप भी उसे अनुमोदित करें या मुझे बताइयेगा, यदि मैं गलत हूँ.

अब तो मैंने कैसे कैसे
कृत्यों से कर लिया है
पूरा मुँह काला
मगर फिर भी
भय से व्याप्त मन
हमेशा व्याकुल रहता है

इस भावशब्द में ’कैसे-कैसे’ की जगह ’अपने’ तथा ’मगर फिर भी’ की जगह ’और’ लिखें. शायद कहन में व्यापी लाक्षणिकता रचना के लिए एक स्तर आगे बढ़ निखर जाने का कारण बन जाये.
अर्थात,
अब तो मैंने अपने  
कृत्यों से कर लिया है
पूरा मुँह काला
और

भय से व्याप्त मन
हमेशा व्याकुल रहता है

शुभेच्छाएँ

Comment by shree suneel on May 1, 2015 at 11:57pm
क्या बात! आदरणीय उमेश कटारा जी, इस सुन्दर कविता के लिए बधाई.
Comment by भावना तिवारी on May 1, 2015 at 11:44pm

वाह ...कुछ पंक्तियों में आज की कुटिलताओं का समावेश और उससे व्याप्त भय का चित्र ..!!

Comment by umesh katara on May 1, 2015 at 9:57pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आपको रचना पसन्द आयी इसके लिये तहेदिल से आभारी हूँ

Comment by umesh katara on May 1, 2015 at 9:56pm

आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी आपको रचना पसन्द आयी इसके लिये तहेदिल से आभारी हूँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
3 hours ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
3 hours ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
5 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
7 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
16 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service