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वो चार पहियां गाड़ी कहाँ मिलेगी कोई हमें  बता दे,
एक हमसफ़र के  साथ चलायें जिसे , ऐसी कोई खता दे 

जिसमे न खिड़की हो,
जिसमे न दरवाज़ा ,
जो चले ज़रा धीरे-धीरे , 
बादलों को चीरे-चीरे |

वो चार पहियां गाड़ी  कहाँ मिलेगी कोई हमें  बता दे,
एक हमसफ़र के  साथ चलायें जिसे , ऐसी कोई खता दे 

पहियां बड़ा ज़ालिम हो, 
रस्ते में  पंचर हो जाए ,
सूरज भी खता में शामिल हो ,
जल्दी से डूब जाए |

वो चार पहियां गाड़ी  कहाँ मिलेगी कोई हमें  बता दे,
एक हमसफ़र के  साथ चलायें जिसे , ऐसी कोई खता दे 

चन्द्रिका भी लुका-छुपी करे ,   
छिपा-छाई का खेल दिखाए ,
सड़क से दूर , किसी शेर की आवाज़ आये 
घबरा कर वो हमसे लिपट जाए |

वो चार पहियां गाड़ी  कहाँ मिलेगी कोई हमें  बता दे,
एक हमसफ़र के  साथ चलायें जिसे , ऐसी कोई खता दे 

शीतल हवाएँ अपना रास्ता भूल कर ,
उनसे बार-बार टकराये ,
चुनरी उनकी उड़ कर , 
एक ऊँचे से ठण्ड से ठिठुरते वृक्ष को शीत से बचाये 

वो चार पहियां गाड़ी  कहाँ मिलेगी कोई हमें  बता दे,
एक हमसफ़र के  साथ चलायें जिसे , ऐसी कोई खता दे |

....मौलिक एवं अप्रकाशित रोहित दुबे 

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Comment by Rohit Dubey "योद्धा " on June 26, 2015 at 9:56am

बहुत बहुत धन्यवाद कांताजी |

Comment by kanta roy on June 26, 2015 at 8:22am
बहुत सुंदर अंदाज़ है ये चार पहिया गाड़ी चलाने का । अच्छा लगा पढकर ... बहुत खूब आदरणीय रोहित जी
Comment by Rohit Dubey "योद्धा " on June 24, 2015 at 8:05pm

हरी प्रकाश जी एवं गोपाल जी .......बहुत बहुत धन्यवाद मेरी कविता पढ़ने के लिए |

Comment by Hari Prakash Dubey on June 24, 2015 at 5:20pm

भाई  रोहित जी  आपकी  पहली रचना  पढ़ रहा  हूँ , शायद मैं ही मंच पर  इधर सक्रिय  नहीं  रह  पाया , सुन्दर प्रयास  है  ,बधाई  एवम् शुभकामनायें  !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 24, 2015 at 4:30pm

अच्छा  प्रयास है . सादर .

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