For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दुर्मिल सवैया.

 

 

बदली - बदली मुख फेर लिया जब सूरज लालमलाल हुआ,

वन शुष्क हुआ हर एक हरा सच शुष्क भरा हर ताल हुआ,

तन शुष्क हुआ मन शुष्क हुआ हर ओर भयंकर हाल हुआ,

जब घाम बढ़ा तब सत्य कहूँ यह हाल बड़ा विकराल हुआ ||

 

 

तन ताप लिए तन आग लिए सब व्याकुल हैं तन प्यास लिए,  

दिन मानव के खग के वन के पशु के कटते बस आस लिए,

सब सोच रहे अब ग्रीष्म टले बरसे बदली मृदु भास लिए,  

निकले फिरसे बरसात लिए दिन सावन भादव मास लिए ||

 

मौलिक/अप्रकाशित.

Views: 616

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 25, 2016 at 6:53pm

आदरणीय सुशील सरना जी सादर, आपसे प्रस्तुत सवैया पर प्रतिक्रिया से मेरा उत्साहवर्धन हुआ है. बहुत-बहुत आभार.सादर.

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 25, 2016 at 6:52pm

भाई रवि शुक्ल जी सादर, आपको यह छंद रचना सुंदर लगी मेरे रचनाकर्म को मान मिला.हार्दिक आभार.सादर.

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 25, 2016 at 6:50pm

आदरणीया कान्ता रॉय जी सादर, सच है सवैया का आनंद तो गाकर ही आता है.आपको यह दुर्मिल सवैया अच्छे लगे मेरा रचनाकर्म सफल हुआ. इस ग्रीष्म में कुछ और भी सवैया छंद रचे हैं. किन्तु नियमों के बंधन के कारण उनको पोस्ट के रूप में प्रस्तुत नहीं कर सकूँगा. आप सवैया छंद का आनंद गाकर ले रही हैं इसलिए इस ग्रीष्म में रचा एक मत्तगयन्द सवैया भी आपके लिए प्रस्तुत है.

सूख रहा सरिता जल पावन सूख रहा हर ताल किनारा |

मूक सभी पशु व्याकुल होकर खोज रहे बहती जल धारा,

तप्त हुआ धरती तल भीतर लुप्त हुआ जल रक्षित सारा,

और कहीं पर मानव व्याकुल खोद धरा निज जीवन हारा ||  प्रस्तुत छंद पसंद करने के लिए बहुत-बहुत आभार.सादर.

Comment by Sushil Sarna on May 25, 2016 at 1:54pm

आदरणीय रक्ताले साहिब ग्रीष्म ऋतु को केंद्रित कर आपने बहुत  ही सुंदर भावों का सृजन किया है। दिल से बधाई स्वीकार करें सर। 

Comment by Ravi Shukla on May 25, 2016 at 1:04pm

आदरणीय अशोक रक्‍ताले जी बहुत ही सुन्‍दर दुर्मिल सवैया छंद की रचना हुई है बधाई स्‍वीकार करें

Comment by kanta roy on May 25, 2016 at 9:30am

वाह  !  क्या  गज़ब का  ताल- लय प्रवाहित  हुई  है पंक्तियों  में  !   छंद का  सौंदर्य  यहाँ  अपने  चरमोत्कर्ष  पर  है .  सूरज का  लालमलाल होना और बदली  के  मुख  फेरना  तो वाकई  में  कमाल  की  प्रस्तुति  है ! 

तन ताप लिए तन आग लिए सब व्याकुल हैं तन प्यास लिए,  

दिन मानव के खग के वन के पशु के कटते बस आस लिए,------ शानदार  पद है  सभी , गुनगुनाते  हुए  वाकई  में  मन  आनंद  -आनंद  हुआ  जाता  है  . अबकी  गर्मी  के  बाकी बचे हुए  दिन  इन  पंक्तियों  के  सहारे  ही  कट  जायेंगे .:)))

 ह्रदय  से  बधाई  आपको  आदरणीय  अशोक  जी  इस  सार्थक  रचना  के  लिए  . 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service