किस तरह का ये कहो नाता है
उनके बिन पल न रहा जाता है
लूट ले जाता है खुशियाँ सारी
उसका जाना न हमें भाता है
रात लाती है उम्मीदें लेकिन
दिन का सूरज हमें तड़पाता है
धूल हो जाते हैं अरमां सारे,
चैन इस दिल को नहीं आता है
रात आती है सितारे लेकर
चाँद रातों की नमी लाता है
मौलिक/अप्रकाशित.
Comment
प्रस्तुत गजल पर उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीय रवि शुक्ला जी. सादर.
आदरणीय अशोक जी , बढ़िया गज़ल कही है आपने बधाई स्वीकार करें ।
उचित कहा है आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपको यह गजल अच्छी लगी मेरा प्रयास सफल हुआ. सादर आभार.
गजल पर मेरे प्रयास को सराहने के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीया राजेशकुमारी जी. सादर.
आदरणीय अशोक रक्ताले सर, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. हार्दिक बधाई. निवेदन है कि ग़ज़ल की बह्र या वज़्न लिखना अब परिपाटी से आगे बढ़कर अनुशासन हो गया है. कृपया लिख दीजिये. सादर
रात आती है सितारे लेकर
चाँद रातों की नमी लाता है---वाह्ह्ह बहुत सुन्दर
बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने आ० अशोक रक्ताले जी दिल से बधाई आपको |
आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब सादर नमस्कार, आपको गजल अच्छी लगी मेरा प्रयास सफल हुआ. सादर आभार.
आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, आपको प्रस्तुति को सादगी अच्छी लगी मेरा उत्साहवर्धन हुआ. सादर आभार.
आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, मेरी प्रस्तुति को आपकी प्रतिक्रिया का सम्बल मिला, रचनाकर्म सफल हुआ. सादर आभार.
आदरणीय अशोक भाई , बढ़िया गज़ल कही है आपने , दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें ।
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