दुर्मिल सवैया.
बदली - बदली मुख फेर लिया जब सूरज लालमलाल हुआ,
वन शुष्क हुआ हर एक हरा सच शुष्क भरा हर ताल हुआ,
तन शुष्क हुआ मन शुष्क हुआ हर ओर भयंकर हाल हुआ,
जब घाम बढ़ा तब सत्य कहूँ यह हाल बड़ा विकराल हुआ ||
तन ताप लिए तन आग लिए सब व्याकुल हैं तन प्यास लिए,
दिन मानव के खग के वन के पशु के कटते बस आस लिए,
सब सोच रहे अब ग्रीष्म टले बरसे बदली मृदु भास लिए,
निकले फिरसे बरसात लिए दिन सावन भादव मास लिए ||
मौलिक/अप्रकाशित.
Comment
आदरणीय सुशील सरना जी सादर, आपसे प्रस्तुत सवैया पर प्रतिक्रिया से मेरा उत्साहवर्धन हुआ है. बहुत-बहुत आभार.सादर.
भाई रवि शुक्ल जी सादर, आपको यह छंद रचना सुंदर लगी मेरे रचनाकर्म को मान मिला.हार्दिक आभार.सादर.
आदरणीया कान्ता रॉय जी सादर, सच है सवैया का आनंद तो गाकर ही आता है.आपको यह दुर्मिल सवैया अच्छे लगे मेरा रचनाकर्म सफल हुआ. इस ग्रीष्म में कुछ और भी सवैया छंद रचे हैं. किन्तु नियमों के बंधन के कारण उनको पोस्ट के रूप में प्रस्तुत नहीं कर सकूँगा. आप सवैया छंद का आनंद गाकर ले रही हैं इसलिए इस ग्रीष्म में रचा एक मत्तगयन्द सवैया भी आपके लिए प्रस्तुत है.
सूख रहा सरिता जल पावन सूख रहा हर ताल किनारा |
मूक सभी पशु व्याकुल होकर खोज रहे बहती जल धारा,
तप्त हुआ धरती तल भीतर लुप्त हुआ जल रक्षित सारा,
और कहीं पर मानव व्याकुल खोद धरा निज जीवन हारा || प्रस्तुत छंद पसंद करने के लिए बहुत-बहुत आभार.सादर.
आदरणीय रक्ताले साहिब ग्रीष्म ऋतु को केंद्रित कर आपने बहुत ही सुंदर भावों का सृजन किया है। दिल से बधाई स्वीकार करें सर।
आदरणीय अशोक रक्ताले जी बहुत ही सुन्दर दुर्मिल सवैया छंद की रचना हुई है बधाई स्वीकार करें
वाह ! क्या गज़ब का ताल- लय प्रवाहित हुई है पंक्तियों में ! छंद का सौंदर्य यहाँ अपने चरमोत्कर्ष पर है . सूरज का लालमलाल होना और बदली के मुख फेरना तो वाकई में कमाल की प्रस्तुति है !
तन ताप लिए तन आग लिए सब व्याकुल हैं तन प्यास लिए,
दिन मानव के खग के वन के पशु के कटते बस आस लिए,------ शानदार पद है सभी , गुनगुनाते हुए वाकई में मन आनंद -आनंद हुआ जाता है . अबकी गर्मी के बाकी बचे हुए दिन इन पंक्तियों के सहारे ही कट जायेंगे .:)))
ह्रदय से बधाई आपको आदरणीय अशोक जी इस सार्थक रचना के लिए .
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