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मंद चलती पवन , शांत रहती अगन,
भोर सा उल्लास प्रभु आठों याम चाहिए,
तप्त धरती गगन , और जलता बदन,
ग्रीष्म प्रभू और नहीं ना ही घाम चाहिए,
आयें घन लिए नीर हरें व्याकुलों कि पीर,
एक वरदान भगवान राम चाहिए,
एक बनें नेक बनें, हिलमिल सब रहें,
वसुधा पे ऐसा प्रभु सुखधाम चाहिए ||


मौलिक/अप्रकाशित.

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Comment by Ashok Kumar Raktale on June 5, 2016 at 3:10pm

आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी !  घनाक्षरी के पद  समकल से  प्रारंभ करने का आपका सुझाव उत्तम है. त्रिकल के पश्चात त्रिकल रखकर रचने से मैं समकल वाली चूक को पकड़ नहीं पाया. अवश्य ही मैं इस बात का ध्यान रखूंगा. कथ्य में मेरा प्रयास सूखा पीड़ितों को भी समेटना था, किन्तु आपकी प्रतिक्रिया से सहज समझ आ रहा है उसमें भी सफलता नहीं मिली है.इस पर भी अवश्य ही ध्यान दूंगा. सादर आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 1, 2016 at 10:51am

घनाक्षरी विधा पर आपकी कोई रचना अरसे बाद आयी है, आदरणीय अशोक जी। इस निमित्त आपको हार्दिक शुभकामनाएँ व बधाइयाँ। 

परन्तु, आपने जिस ढंग से पंक्तियों का विन्यास रखा है, वह नियमों की महीनी के अनरूप नहीं है। यह अपने आप में कोई गलती नहीं है। लेकिन सर्वमान्यता यही है कि घनाक्षरी के पद समकलों से प्रारम्भ हुए तो वाचन प्रवाह सहज ही नहीं पारम्परिक भी होता है। आपका प्रथम दो पंक्तियों का प्रारम्भ त्रिकल से होने से उन शब्दों के उच्चारण के साथ ही या तो प्रवाह रुक जाता है, या उन शब्दों के लघु वर्ण पर बलाघात कम से कम कर आगे के शब्द के समकल की मौज़ूदग़ी का लाभ लेना पड़ता है। पुनः, यह कोई बहुत बड़ी गलती नहीं है लेकिन घनाक्षरी विधा के सही स्वर को जानने वालों के लिए वाचन ढंग को बदलना पड़ता है। आप प्रति पंक्ति का प्रारम्भ समकलों से करें। देखिये, वाचन प्रवाह में गुणात्मक सुधार होगा। 

दूसरी बात, घनाक्षरी छन्द शास्त्र में घोषित मुक्तक हैं। अतः, एक मुक्तक में विषय एक ही रहे तो वह अधिक विधाजन्य माना जाता है। ध्यातव्य है, प्रस्तुत रचना ग्रीष्म की चर्चा से शुरु हो कर जन-जनार्दन की नैतिक ऊँचाई की कामना करनेलगतती है। वर्णन के क्रम मे ऐसी छलांग उचित नहीं है। विश्वास है, आप मेरे कहे का मूल समझ रहे हैं।

बहरहाल छन्द पर हुआ आपका प्रयास निस्संदेह आश्वस्तिकारक है।

सादर

Comment by babita choubey shakti on June 1, 2016 at 9:28am
बहुत सुंदर छंद बधाई आ जी
Comment by Ashok Kumar Raktale on May 29, 2016 at 10:36pm

आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, आपको छंद अच्छा  लगा मेरे रचनाकर्म को मान मिला. सादर आभार.

Comment by Samar kabeer on May 29, 2016 at 6:43pm
जनाब अशोक कुमार रक्ताले जी आदाब,बहुत सुंदर है आपकी रचना,इस प्रस्तुति पर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
Comment by Ashok Kumar Raktale on May 29, 2016 at 5:19pm

बहुत-बहुत आभार आदरणीय सुरेश कुमार जी.सादर.

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 28, 2016 at 11:43am
वाह वाह बहुत ही सुन्दर विनती आदरणीय बधाई

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