For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2 2 2 2 2 2 2

-.-
पन्नो में घुल जाती हूँ
स्याही सी बह जाती हूँ

.

नाता बस मन से मेरा
भावो को कह जाती हूँ

.

जानूँ न* मैं छंद पिरोना
मन की तह बताती हूँ

.

न सुर है न लय सलीका
पाबन्दी तज जाती हूँ

.

खिलती भी हूँ सावन सी
पतझड़ सी झड़ जाती हूँ

.

सजा कर खुद को फिर से
पन्नो पर सज जाती हूँ

-.-
 "मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 897

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on November 8, 2016 at 4:56pm

आदरणीय समर कबीर जी ,सादर प्रणाम ।  क्षमा कीजियेगा बहुत दिन बाद रिप्लाई कर रही हूँ , बिटिया बीमार थी।

आपकी बात का मुझे बिलकुल भी बुरा नहीं लगा मैं बहुत अच्छे से जानती हूँ की मैं शब्दो को स्वछंद छोड़ देती हूँ उन्हें बांध नहीं पाती, इसीलिए केवल मन के भाव ही लिख पाती हूँ। 
इस मंच की सबसे अच्छी बात यही है की यहाँ गुणीजन सिखाने और दोष सुधार करने में पीछे नहीं हटते। मैं भी यहाँ सिखने की इच्छा से ही आई हूँ। आपकी सीख पर ध्यान देते हुए मैं प्रयासरत हूँ। चकित कर पाऊँगी या नहीं ये तो मैं नहीं जानती क्योंकि मेरा लेखन बेलगाम सा हो जाता है,पर मैं कोशिश जरूर करती रहूंगी ।  धन्यवाद । सादर।

Comment by Samar kabeer on October 25, 2016 at 9:00pm
मेरी बात का बुरा न मानियेगा,ये सिर्फ़ तुकबन्दी है और कुछ नहीं ।
मैने जब ग़ज़ल के सफ़र की इब्तिदा की थी तब मेरे स्व.पिताजी(जो एक अच्छे शैर5 थे)ने मुझे यही सलाह दी थी कि बेटा ख़ूब पढो फिर लिखो,तो तुम कुछ कर पाओगे वरना बेकार में समय वियर्थ न करो,उस वक़्त हमारे पास इतने वसाइल नहीं थे,जो कुछ था वो सिर्फ़ किताबें थीं,आज के युग में तो बटन दबाते ही आप जो पढ़ना चाहें पढ़ सकते हैं,कितना आसान हो गया है सब,बस दृढ़ निश्चय करना होगा,कोई भी विधा हो बिना अध्यन के उसमे आप एक क़दम नहीं चल सकतीं ।
और अध्यन के बाद जो कलाम पर निखार आएगा उसे आप ख़ुद महसूस करेंगी,फिर आपको ये नहीं पूछना पड़ेगा कि,ये रचना किस विधा की है ?क़ाफ़िया क्या होता है ?कई सदस्य इसी मंच पर बहुत कुछ सीखे और आज उनकी लेखनी पर जो निखार है उसे देख कर हम चकित रह जाते हैं कि ये वही सदस्य है जिसे कुछ दिन पहले बह्र की कोई समझ नहीं थी और आज कितनी उम्दा ग़ज़ल कह रहा है,और सोने पर सुहागा ये कि अब दूसरों की इस्लाह भी कर देता है,और ये सब उसकी लगन और मिहनत का नतीजा है,और ओबीओ की देन,में पूरे वसूक़ से ये बात कहता हूँ कि ओबीओ से बहतर दूसरा कोई मंच नहीं,ये चाँद और सूरज की तरह अकेला मंच है ।
आप मेरी ही मिसाल ले लीजिए,मैने उर्दू विधाओं के अलावा हिन्दी। विधाओं में कभी नहीं लिखा,लेकिन ओबीओ से जुड़ने के बाद नतीजा सबके सामने हैं,मैं सार छन्द भी लिखने लगा, दोहे भी लिखने लगा, और अब लघुकथा भी लिखने लगा हूँ,और ये सब ओबीओ से सीखा है,ये मैं सीखना चाहता था इसलिये सीख रहा हूँ,वरना ओबीओ का सिर्फ़ सदस्य बना रहता तो कुछ न सीख पता ।
आपसे हमारी बहुत सी उम्मीदें वाबस्ता हैं,और हम चाहते हैं आप ख़ूब प्रयास करें और कुछ दिनों बाद हमें चकित करें,उम्मीद है बात आपने समझ ली होगी ?।
Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 25, 2016 at 7:02pm

जी,  आदरणीय  समर कबीर जी , नेक सलाह के लिए शुक्रिया ,वैसे ये जो भी लिखा है इसे किस श्रेणी में रखा जा सकता है। सादर।  

Comment by Samar kabeer on October 25, 2016 at 5:48pm
आपको अध्यन करना चाहिये, ओबीओ पर सब कुछ मिल जायेगा ।
Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 25, 2016 at 5:44pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी ,बहुत धन्यवाद,बहुत अच्छे से बताया आपने ,अब  दुबारा कोशिश करती हूँ।  सादर। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 25, 2016 at 5:33pm

आदरणीया अलका जी --   रच, बस, तह, तज, झर, सज.   ये हमकाफिया नही हो सकते , अ की छोटी मात्रा की समानता को काफिया नही मानते ! वहीं अगर  रचा , बसा, मिला , रहा  ले लें हो   आ काफिया मान सकते हैं ।

पन्नो में घुली जाती हूँ     घुल + ई
स्याही सी बसी जाती हूँ   -  बस + ई         करें तो ई काफिया मान सकते हैं ।  ये केवल समझाने के लिये है , अर्थ न देखें ।

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 25, 2016 at 4:18pm

 आदरणीय सुनील प्रसाद(शाहाबादी) जी ,हौसला अफ़ज़ाई के लिए धन्यवाद। सादर। 

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 25, 2016 at 4:16pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी  जी नेक सलाह के लिए धन्यवाद मैंने कक्षा में ही सीखा है ....पर मुझसे गलती हो गई ,जब लिखने बैठती हु तो कुछ न कुछ भूल जाती हूँ। सुधार का  प्रयास कर रही हूँ  

क्या यह काफिया सही बन रहा है  

रच, बस, तह, तज, झर, सज. 

  आभार। सादर। 

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 25, 2016 at 4:09pm

आदरणीय गुणीजन  कृपया बताने  का कष्ट  करे  क्या यह काफिया सही बन रहा है  

रच, बस, तह, तज, झर, सज. 

। सादर आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 25, 2016 at 11:28am

आदरनीया अलका जी, गज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है , पर आपकी ग़ज़ल मे  काफिया ही नही है , और बिना फाफिया के गज़ल होती ही नही , हाँ बिना रदीफ ग़ज़ल हो सकती है । मुझे लगता है आपको मंच मे उपलब्ध '' गज़ल की बातें ''  का गंभीरता से अध्ययन करना चाहिये एक दो बार ।

प्रयास के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ , प्रयास ज़ारी रखियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
21 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service