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तलवों तले सपनो की चुभन, भूल नहीं तुम पाओगे।
अंधकार से जूझोगे जब , नवजीवन तब पाओगे।।
स्वयम की खोज करो तब ही विश्व तुम्हे अपनायेगा।
गोद तिमिर की जब छानोगे आलोक निकल आयेगा।।

.

प्राण भी व्याकुल करेंगे जब साथ अँधेरे पाओगे।
बीज सृजन का पाने को प्रलय के गर्भ में जाओगे।।
जन्म तुम्हे वरदान मिला विशेष .. शेष में पायेगा।
तू चले या रुके फर्क नहीं वक्त चलता जायेगा।।


"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment by अलका 'कृष्णांशी' on December 22, 2016 at 10:17pm
आदरणीय समर कबीर जी ,बहुत बहुत आभार आपका।सादर
Comment by Samar kabeer on November 9, 2016 at 4:56pm
मोहतरमा अलका जी आदाब,बढ़िया छन्द लिखे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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