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तुम्हारी ख़ामोशी तुम्हारा पयाम हुई // अलका

एक प्रयास
***********
कान्हा की मैत्री मेरा मान हुई
तुमसे जुड़ा जो नाता मेरी शान हुई

इसे जोड़ा है गिरधर ने बड़े प्रेम से
हमारी खुशियां ही मुरली की तान हुई

मैं उलझी थी शब्दो की उलझन में
तुम्हारी ख़ामोशी तुम्हारा पयाम हुई

धूप में बादल से तुम, अंधेरों में किरण सी मैं
तुम्हारी बाहें हर तूफ़ां में मेरी मचान हुई

कई दांव देखे है रिश्तों के हमने
निष्ठा हमारी लोबान हुई

बीते बरस इम्तहानों के जैसे
हर परीक्षा हमारा गुमान हुई

ललितमय हुई बरसो से अलका
"अलका ललित" मेरी पहचान हुई

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 16, 2016 at 9:05pm

आभार आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी ......... रचना के भाव आपको पसन्द आए ये जान कर ख़ुशी हुई । विधा तो पता नहीं किन्तु पढ़ने में अच्छी लगी तो पोस्ट कर दी।
गुणीजन ही कृपया कर बताने का कष्ट करे की क्या  इस प्रकार की रचनाएँ भी स्वीकार्य है ? सादर।

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 16, 2016 at 8:59pm

आभार आदरणीय समर कबीर जी ....................गुणीजनों से क्षमा निवेदन के साथ ही बताना चाहती हूँ की कुछ दिन पहले 2 दिन तक मात्राओं की गिनती में सर धुनने पर भी मैं कुछ सही नहीं बना पाई थी। तीसरे दिन बिना टेंशन के लिखना शुरू किया तो आधे घण्टे में ही ये पक्तियां जैसे खुद-ब-खुद ही कलमबद्ध हो गई । विधा तो पता नहीं किन्तु पढ़ने में अच्छी लगी तो पोस्ट कर दी।
गुणीजन ही कृपया कर बताने का कष्ट करे की इस प्रकार की रचनाएँ भी स्वीकार्य है या नहीं।

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 16, 2016 at 8:53pm

आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी  रचना पसंद करने के लिए आभार। सादर। 

Comment by नाथ सोनांचली on October 16, 2016 at 4:45pm
भावपूर्ण रचना, अलका चंगा जी।

अगर आप विधा भी लिख दें तो शिलो समझने में आसानी हो
Comment by Samar kabeer on October 16, 2016 at 3:23pm
मोहतरमा अलका जी आदाब, इस प्रस्तुति पर बधाई ।
ये रचना किस विधा में है ?
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 16, 2016 at 10:45am
आदरणीया अल्का चंगा जी सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है । सादर ।

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