For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सभ्यता की पहचान

दिन,प्रतिदिन,
हर एक पल,
हमारी सभ्यता और संस्कृति में
निखार आ रहा है,
हम हो गए हैं,
कितने सभ्य,
कौआ यह गीत गा रहा है.
पहले बहुत पहले,
जब हम इतने सभ्य नहीं थे,
चारों तरफ थी खुशहाली,
लोगों का मिलजुलकर,
विचरण था जारी,
जितना पाते,
प्रेम से खाते,
दोस्तों पाहुनों को खिलाते,
कभी-कभी भूखे सो जाते.
आज जब हम सभ्य हो गए हैं,
देखते नहीं,
दूसरे की रोटी,
छिनकर खा रहे हैं,
और अपनों से कहते हैं,
छिन लो,दूसरों की रोटी,
न देने पर,
नोच लो बोटी-बोटी,
क्योंकि हम सभ्य हो गए हैं,
पिल्ले हो गए हैं.
बहुत पहले घर का मालिक,
सबको खिलाकर,
जो बचता रुखा-सूखा,
उसी को खाता,
भरपेत ठंडा पानी पीता,
आज जब हमारी सभ्यता,
आसमान छू रही है,
घर का क्या ?
देश का मालिक,
हींकभर खाता,
भंडार सजाता,
चैन से सोता,
बेंच देता,
देशवासियों का काटकर पेट,
क्योंकि हम सभ्य हो गए हैं.

-------प्रभाकर पाण्डेय

Views: 394

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on July 6, 2010 at 12:06am
बिल्कुल सत्य........ बदलते सामाजिक परिवेश में ...परिवार...अतिथि.....मित्र...प्रेम..... दान.......सहायता.....जैसे शब्द बेमानी नज़र आते हैं....सबको अपने स्वार्थ की साधाना जो करनी है.........एक सुन्दर कवित के माध्यम से एक बार पुनः याद दिलाने हेतु धन्यवाद..

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 5, 2010 at 5:44pm
जितना पाते,
प्रेम से खाते,
दोस्तों पाहुनों को खिलाते,
कभी-कभी भूखे सो जाते.
आज जब हम सभ्य हो गए हैं,
देखते नहीं,
दूसरे की रोटी,
छिनकर खा रहे हैं,

Bahut hi sunder rachna, sawal yah uthata hai ki kyaa ham sachmuch sabhya ho gayey hai, kyaa yahi sabhyata hai, ham kaha they aur ab kaha jaa rahey hai, Prabhakar bhaiya ees vicharutejak aur sargarbhit abhivyakti hetu Badhai swikaar karey, Dhanyavad,

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on July 2, 2010 at 4:23pm
प्रभाकर पाण्डेय भाई, बहुत ही विचारोत्तेजक कविता कही है आपने ! हरेक शब्द और हरेक पंक्ति एक कड़वा सच बोल रही है और सोचने पर मजबूर कर रही है ! मानवीय मूल्यों और संवेदनायों का जो दिन प्रतिदिन ह्रास हो रहा है उसका बहुत ही सजीव चित्रण किया है आपने ! बधाई स्वीकार कीजिये इस सारगर्भित रचना के लिए ! 2-3 जगह बर्तनी सम्बंधित त्रुटियाँ हैं, कृपया उनको ठीक कर लीजिए !
Comment by Rash Bihari Ravi on July 2, 2010 at 3:55pm
देश का मालिक,
हींकभर खाता,
भंडार सजाता,
चैन से सोता,
बेंच देता,
देशवासियों का काटकर पेट,
क्योंकि हम सभ्य हो गए हैं.
bahut badhia

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service