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कवि घाघ और उनकी बहू के बीच परिसंवाद

उत्तर भारत में घाघ नामक एक बहुत प्रसिद्ध किसानी कवि हुए थे.
उनकी रचनाएँ आज भी ग्रामीणों द्वारा कही-सुनी जाती हैं.
उनकी बहू भी बहुत बुद्धिमान थीं.
नीचे की संकलित रचनाओं में उनके परिसंवाद हैं :-

1.
घाघ कहते हैं :-

पउआ पहिन के हर जोते,
सुथनी पहिन के निरावे,
कहें घाघ उ तीनों भकुआ,
सिर बोझा ले गावे.

घाघ की बहू कहती हैं :-

अहिरा हो के हर जोते,
तुरहिन हो के निरावे,
छैला होके कस न गावे,
हलुक बोझा जो पावे.

2.
घाघ कहते हैं :-

बिन माघ घी खीचड़ खा,
बिन गौने ससुरारी जा,
बिना रीतु के पहिने पउआ,
कहें घाघ उ तीनों कउआ.

घाघ की बहू कहती हैं :-

मन मागें घी खीचड़ खा,
प्रित लगे ससुरारी जा,
नहा धो के पहिने पउआ,
कहे पतोहिया घाघे कउआ.

घाघ की अन्य रचनाएँ :-

1.

रात निबदर दिन निबदर,
पुरुआ बहे झमर - झमर,
कहें घाघ की बीज मत खोअ,
अगहनी की खेते में उरीद बोअ.

भावार्थ :- अगर दिन-रात आसमान साफ रहे
और बराबर पुरुआ बहती रहे तो बारिश कतई
नहीं होगी.

2.

सुक सनिचरी बादरी ,रहे गगन में छाय,
घाघ कहें सुनु घाघिनी,बिन बरसे न जाय.

भावार्थ :-अगर शुक्र और शनिवार को आकाश में बादल छा
जाएँ तो बारिश अवश्य होगी.

3.

धान,पान व खीरा,इ पानी के कीड़ा.

भावार्थ -धान,पान व खीरा को अत्यधिक
पानी की आवश्यकता होती है.

4.

छोटा मुँह और ऐंठा कान,
यही बैल की है पहचान.

भावार्थ -
छोटा मुँह और ऐंठे कानवाला
बैल अच्छा होता है.

5.

छोटी सिंग और छोटी पूँछ,
ऐसा बरधा लो बे पूछ.

भावार्थ -छोटी सींग और छोटी पूँछवाला
बैल अच्छा होता है.


संकलनकर्ता-
प्रभाकर पाण्डेय

प्रभाकर पाण्डेय
Prabhakar Pandey

हिंदी अधिकारी, सी-डैक पुणे
Hindi Officer, C-DAC PUNE

पुणे विश्वविद्यालय परिसर, गणेशखिंड,
पुणे- 411007, भारत
Pune University Campus, Ganeshkhind,
Pune - 411007, India
मोबाइल- 8975941372
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Editor-in-chief 'Bhojpuri Express'- www.bhojpuriexpress.com
State President (Maharashtra) 'Young Indian Organization'- http://youngindian.org
treasurer- Ashirbad (आशिर्वाद)..NGO
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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 5, 2010 at 5:47pm
Kyaa doordarsita thaa pahley key logo mey jo hawaa ka rookh bina koi yantra sayantra key bhap letey they, aur aaj ham ati aadhunik yantro sanyantro sey yukt hokar bhi sahi sahi aaklan karney mey asmarth hai,
Bahut hi sarthak rachna,

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on July 2, 2010 at 10:47pm
शुक्रवार की बादरी
शनिवार तक छाय
घाघ कहे सुन भड्डरी
बिन बरसे ना जाये

दिन मैं बद्दर रात निबद्दर
बहै पुरैवैया झब्बर झब्बर
घाघ कहे कुछ होनी होई
कुवां के पानी धोबी धोई

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on July 2, 2010 at 3:58pm
प्रभाकर पाण्डेय भाई, बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख है आपका ! दरअसल ज्योतिष विद्या से जुड़ा होने की वजह से मुझे भी कवि "घाघ" के बारे में काफी कुछ पढने का मौका मिला है ! इनकी पत्नी का नाम "भड्डरी" बताया जाता है, कवि "घाघ" ने बहुत सी भविष्यवाणियाँ अपनी पत्नी को संबोधित करके भी की है ! सदियों पहले बिना किसी यंत्र कि मदद के किसी साधारण मनुष्य द्वारा इस प्रकार की भविष्यवाणियाँ करना सचमुच आपने आप में किसी चमत्कार से कम नहीं है ! यह इस बात की भी पुष्टि करता है कि प्रारंभ से ही भारत विद्या और ज्ञान का घर रहा है ! इस सुंदर आलेख के लिए मेरा साधुवाद स्वीकार करें !
Comment by Rash Bihari Ravi on July 2, 2010 at 3:54pm
bahut badhia prabhakar bhai

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