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एक बाँसुरी, एक ही धुन से, स्नेह सुधा बरसाते हैं,

सूरदास, मीरा – रसखान, रहीम को एक बनाते हैं।

ले लकुटी संग ग्वाल बाल के, नंद की गाय चराते हैं,

त्रस्त प्रजा को क्रूर कंस से, राजा मुक्त कराते हैं।

हैं प्रेरक श्रीकृष्ण नीति, गीता और प्रेम सिखाते हैं,

सुधि जन निर्मल मन से सादर, सहज प्रेरणा पाते हैं।

.

किशोर करीब (मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 15, 2017 at 8:15pm
सादर नमस्कार जनाब समर कबीर साहब और मोहम्मद आरिफ साहब।
प्रोत्साहन के साथ-साथ मार्गदर्शन के लिए हृदय से आभारी हूँ।
Comment by Mohammed Arif on August 15, 2017 at 7:54pm
आदरणीय किशोर जी आदाब, कृष्ण जन्माष्टमी को रेखांकित करती बढ़िया रचना । हार्दिक बधाई स्वीकार करें और आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की बातों का संज्ञान लें ।
Comment by Samar kabeer on August 15, 2017 at 6:32pm
जनाब किशोर'क़रीब'जी आदाब,जन्माष्टमी पर बढ़िया रचना हुई,बधाई स्वीकार करें ।
आख़री पंक्ति में आपने 'प्रेरणा पाया है',लिया है जबकि "प्रेरणा"शब्द स्त्रीलिंग है, देखियेगा ।

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