For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चिड़िया का निवाला खाकर और भालू से डरकर बालक सो गया था। वह जूठे बरतनों से को ऐसे रगड़ रही थी जैसे कोई अपराधी सबूत मिटा रहा हो।

वह बिस्तर पर लेटा उस पंखे को घूर रहा था जिसके डैने बिजली बिल न देने के कारण थम गये थे । आँचल में हाथ पोंछते हुए वह आई और बिना कोई शोर किए बगल में लेट गई ।
उसने करवट लेते हुए उसके बदन पर हाथ रखा तब उसने धीरे से हाथ हटा दिया " सो जाओ कल से मुन्ने का स्कूल सुबह की पाली में है सबेरे उठना होगा।"
हाथ खींचकर उसने तकिया बना लिया " सो गया अपना शेर ।"
वो धीरे से हँसी " शेर .. भालू आ जाएगा कहकर डराया तब तुरंत सो गया । "
थोड़ी देर की खामोशी के पश्चात वह फुसफुसाई " सुनो कल से तुम आधे धंटे पहले निकलना और मुन्ना को स्कूल छोड़ते हुए जाना।"
वह झुंझलाया "अरे ये काम तुम्हीं करो।"
वह उठकर बैठ गई "क्यों !उधर से ही तो जाते हो ।फिर में पहुंचाने गई तो खाने में देरी होगी और तुम बिना डिब्बा लिए ही जाओगे ।"
उसने नजरों से याचना की " नहीं होगी देरी। मैं सब्जी भाजी करके रखूंगा। तू आकर फुलके सेंक देना।"

"हाँ ! कोई देखेगा तो क्या कहेगा। औरत बाजार घूमती है और मरद चूल्हा चौका कर रहा है ।"
"कहता है तो कहने दो , कोई पीठ पीछे ही कहेगा । मुँह पर बोलेगा तो तोड़ न दें। "
" तुम जाना क्यों नहीं चाहते आखिर तुम पहुंचा दोगे तो घिस जाओगे क्या ?"
उसने साँस छोड़ी "अरे रस्ते में दुकान देखकर अटक जाता है। मैं मना नहीं कर पाता इस चक्कर में फीस से ज्यादा तो ऐसे ही खर्च हो जाता है। मना करो तो लोटने लगता है।"
वह मुसकुराई "हाँ बच्चे का गू मूत तो करती ही थी अब ये पाप भी हमीं से करवाओ। "
उसकी नजरें याचक की भांति उसके चेहरे पर टिकी रही। वह झुंझलाई "सो जाओ सवेरे उठना भी है।" उसकी ये झुंझलाहट उसे अभय दे देती थी।
(मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 516

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on May 15, 2018 at 12:29pm

लघु कथा अच्छी लगी, बधाई।

Comment by Samar kabeer on May 13, 2018 at 9:22pm

जनाब कुमार गौरव साहिब आदाब,अच्छी लघुकथा है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on May 11, 2018 at 12:55pm

हार्दिक बधाई आदरणीय कुमार गौरव जी। मातृदिवस पर माँ की महिमा और मजबूरी दोनों को दर्शाती लघुकथा।

Comment by Neelam Upadhyaya on May 11, 2018 at 12:30pm

आदरणीय कुमार गौरव जी, नमस्कार।  निम्न माध्यम वर्ग की दैनिन्दिनी के यथार्थ को दर्शाती बहुत ही बढ़िया लघुकथा हुई  है। बधाई  स्वीकार करें।   

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
10 hours ago
ajay sharma shared a profile on Facebook
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service