Tags:
Replies are closed for this discussion.
विकलांग मानसिकता पर तीखा व्यंग्य करती हुई लघुकथा । विकलांगता शरीर से ज्यादा मन की होती है ।बधाई आदरणीय.।
आदरणीया कनक जी, आपकी सराहना युक्त प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार व्यक्त करता हूँ।
दिव्यांग विमर्श पर बहुत शानदार लघुकथा . हार्दिक बधाई आदरणीय गणेश जी
आदरणीया प्रतिभा पांडे जी, आपकी सराहनायुक्त प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार व्यक्त करता हूँ। .
आदरणीय गणेश बागी जी आपने विकलांग व्यक्ति के माध्यम से बहुत ही शानदार लघुकथा कही है ।आपको हार्दिक बधाई एक तीर से कई निशाने लगाने के लिए।
आदरणीय ओमप्रकाश भाई साहब, आपकी प्रतिक्रिया पाकर लघुकथा पूर्ण हो गयी, बहुत बहुत धन्यवाद।
आदरणीय गणेश बाग़ी जी, आपको इस बेहतरीन लघुकथा के लिए दिली मुबारक़बाद।
हमसफ़र - लघुकथा -
दयाल बाबू द्वारा इस बार फिर से कुंभ मेले जाने की जिद से उनके बेटे और बहुएं परेशान और खिन्न थे।
पिछली बार दयाल बाबू अपनी पत्नी की इच्छा पूरी करने के लिये कुंभ मेले ले गये थे।उस वक्त भी बेटे बहुओं में से कोई उनके साथ नहीं जा सका था | हालांकि पड़ोस के दो अन्य परिवार अवश्य साथ गये थे।
उस बार कुंभ मेले में दयाल बाबू की पत्नी बिछुड़ गयी थीं।जिनका आजतक भी कोई पता नहीं चला। मीडिया में अनगिनत इश्तहार और घोषणायें कराये जाने के बावज़ूद परिणाम शून्य रहा।
दयाल बाबू पत्नी के पुनः मिलने की एक आधी अधूरी आस लिये जी रहे थे।पिछले कुंभ मेले की उस दिल दहलाने वाली घटना को वे आज तक भुला नहीं पाये थे।दोनों पति पत्नी एक दूसरे का हाथ थामे, हर हर महादेव के नारे लगाते, खुशी खुशी घूम रहे थे कि अचानक नागा साधू संतों की एक भीड़ के रेले ने दोनों को सदैव के लिये जुदा कर दिया। गहन छानबीन और खोज खबर के उपरांत केवल निराशा ही हाथ लगी।
उनके साथ गये सब लोग वापस चले आये थे परंतु दयाल बाबू कुंभ मेले की समाप्ति के बाद भी वहीं टिके रहे।अपनी जीवन संगिनी के मिलने की एक उम्मीद लिये।
बाद में उनके बेटे जैसे तैसे उन्हें समझा बुझा कर वापस ले आये थे| लेकिन इतने वर्ष बाद भी दयाल बाबू का मन वहीं भटक रहा था।वे एक पल को भी अपने जीवन साथी को भुला नहीं पाये थे।उन्हें बार बार ऐसा लगता था कि वह मुझे वहाँ अवश्य ढूंढ रही होगी।
इसी भावना को लेकर अब वे पुनः कुंभ मेले जाने की रट लगा रहे थे।लेकिन बेटों में कोई भी इस बात से सहमत नहीं था। बेटों की एक ही चिंता थी कि उनके पास समय नहीं था।और अकेले वे उन्हें जाने नहीं देना चाहते थे।
दयाल बाबू का कुंभ मेले जाने का मात्र एक ही उद्देश्य था कि शायद उनका बिछुड़ा जीवन साथी पुनः मिल जाय।बच्चों की नज़र में पिता की इस सोच का कोई तार्किक धरातल नहीं था।समस्त परिवार ने दयाल बाबू को समझाने की भरपूर कोशिश की लेकिन दयाल बाबू का इरादा अटल था।इसलिये वे सब उनकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहते थे।
अतः सभी तरह की सुख सुविधाओं का प्रबंध कर दयाल बाबू को एक विश्वास पात्र घरेलू नौकर के साथ कुंभ मेले भेज दिया।
मगर हुआ वही जिसकी आशंका सबके मन में घर कर चुकी थी।दयाल बाबू का वह सफर आखिरी सफर साबित हुआ।वे फिर कभी नहीं लौटे।
मौलिक,अप्रकाशित एवम अप्रसारित
प्रदत्त विषय पर लघुकथा कहने का अच्छा प्रयास है आ० तेजवीर सिंह जी, पर मुझे लगता है कि यह कथानक लघुकथा की अपेक्षा कहानी के लिए कहीं ज्यादा मुफ़ीद था. बहरहाल इस सद्प्रयास हेतु हार्दिक अभिनन्दन स्वीकार करेंl
हार्दिक आभार आदरणीय भाई योगराज जी।
विषय पर प्रस्तुति तो अच्छी हुयी है भाई तेज वीर सिंह जी, लेकिन जैसा कि आदरणीय योगराज सर ने कहा, मैं भी इस बात से सहमत हूँ कि यह कथ्य कहानी के लिए बेहतरीन रहेगा। यहाँ प्रस्तुत रचना भी एक कथा का संक्षिप्त विवरण जैसा ही लग रहा है जो लेखक यानि आप द्वारा सुनाया जा रहा है। रचना का अंत प्र्भावी है। बरहाल बधाई स्वीकार करे।
हार्दिक आभार आदरणीय भाई वीर मेहता जी।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |