For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

221 2121 1221 212
सुन इश्क जादू-टोने में कुछ वक़्त लगता है/1
ये प्यार-व्यार होने में कुछ वक़्त लगता है

मैं चाहती हूँ रोना बड़ी जोर से मगर/2
दिल खोल कर के रोने में कुछ वक़्त लगता है

ये सर्द रातें दर्द बयां करती है मेरा*
अंधेरे कमरें में मैंने पैकर का घर देखा/3
तन्हा अकेले सोने में कुछ वक़्त लगता है

पड़ जाएं हम किसी के यूं ही इश्क़ में कैसे/4
हमको किसी का होने में कुछ वक़्त लगता है

हम तो ज़मीं पे सोते हैं तारों की छांव में/5
समझो हमें बिछौने में कुछ वक़्त लगता है

गर लाश दूजे की हो तो फिर ग़म नहीं होता/6
अपनों की अर्थी ढोने में कुछ वक़्त लगता है

हर शब्द शब्द एक अलग अर्थ क्या लिखूं/7
ये मोती हैं पिरोने में कुछ वक़्त लगता है

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 495

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dimple Sharma on August 28, 2020 at 5:39am

आदरणीय आशीष यादव जी ग़ज़ल तक आने और हौसला अफजाई के लिए हृदय तल से आभार आपका आदरणीय,आगे भी यूं ही हौसला बढ़ाते रहें।

Comment by आशीष यादव on August 26, 2020 at 12:43am

एक सराहनीय प्रयास है गजल कहने का। बाकी गुरुजनों की सलाह मिलती रहेगी तो गजल और अच्छी बनती जाएगी। good effort पर congratulations  स्वीकार कीजिए।

Comment by Dimple Sharma on August 22, 2020 at 11:26am

आदरणीय उस्ताद मोहतरम समय कबीर साहब आदाब चरण स्पर्श, उस्ताद मोहतरम आपके आशीर्वाद से इन दो शेरों में कुछ फेर बदल करने का प्रयास किया है, कृप्या कृपा दृष्टि डालें और मतले का कुछ समझ नहीं आ रहा है उसपर आपका आशीर्वाद और मार्गदर्शन चाहती हूँ कृप्या उद्धार करें ।

221 2121 1221 212
हर शब्द शब्द एक अलग अर्थ क्या लिखूं
अब शब्दों को पिरोने में तो वक़्त लगता है

मैं चाहती हूँ रोना बड़ी जोर से मगर
सुन दर्द दिल का रोने में कुछ वक़्त लगता है

आशीर्वाद बनाए रखें उस्ताद मोहतरम, आपके मार्गदर्शन के बगैर कुछ भी सम्भव नहीं इस नाचीज़ के सर पर अपना स्नेह भरा हाथ यूं ही बनाए रखें।

Comment by Dimple Sharma on August 22, 2020 at 11:08am

आदरणीय उस्ताद मोहतरम समय कबीर साहब आदाब चरण स्पर्श,आपने ग़ज़ल तक आ कर जो मार्गदर्शन किया है वो मेरा सौभाग्य है,जी उस्ताद मोहतरम आपकी कहीं बातों का मैं आगे से ध्यान रखूंगी और कोशिश करुंगी बड़े शायरों की ज़मींन पर कुछ कोशिश कर सकूं फिलहाल आपने जो कमियां दर्शाई हैं उन्हें सुधारने का प्रयास करती हूं, आपका आशीर्वाद यूं ही बना रहे कृपा दृष्टि बनाए रखें उस्ताद मोहतरम।

Comment by Samar kabeer on August 21, 2020 at 3:11pm

मुहतरमा डिम्पल शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'सुन इश्क जादू-टोने में कुछ वक़्त लगता है/1
ये प्यार-व्यार होने में कुछ वक़्त लगता है'

मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,देखियेगा ।

'दिल खोल कर के रोने में कुछ वक़्त लगता है'

इस मिसरे में 'कर' के साथ 'के' का प्रयोग उचित नहीं ।

'ये सर्द रातें दर्द बयां करती है मेरा*
तन्हा अकेले सोने में कुछ वक़्त लगता है'

ये शैर कुछ ठीक है ।

'हम तो ज़मीं पे सोते हैं तारों की छांव में
समझो हमें बिछौने में कुछ वक़्त लगता है'

ये शैर भर्ती का है ।

'हर शब्द शब्द एक अलग अर्थ क्या लिखूं
ये मोती हैं पिरोने में कुछ वक़्त लगता है'

इस शैर में आप जो कहना चाहती हैं, कह नहीं पाईं ।

आपको एक मशविरा देता हूँ कि अपनी ज़मीन पर ग़ज़ल कहने के बजाय,पुराने उस्ताद शाइरों के मिसरे लेकर अभ्यास करें ,तो बहतर होगा ।

Comment by Dimple Sharma on August 20, 2020 at 3:29pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी'मुसाफिर'जी नमस्ते, बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय, जी क्षमा करें भुल हुई अब सुधार ली जाएगी जिसका श्रेय पूर्णतः आपको जाता है, आपका मार्गदर्शन यूं ही बनाए रखें,एक बार फिर हृदय तल से आभार।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 20, 2020 at 4:20am

आ. डिम्पल जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई । 

अंधेरे कमरें में मैंने पैकर का घर देखा/3

में "अँधेरे" की मापनी १२२ है इससे मिसरा बेबहर हो रहा है देखिएगा । साथ ही "कमरें" को कमरे कर लीजिएगा । सादर...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
14 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
yesterday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service