परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 128वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब हसरत मोहानी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"क्या हुआ उन से अगर बात बनाई न गई "
2122 1122 1122 22
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़इलुन/फ़ेलुन
बह्र: रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ रूप
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 फरवरी दिन गुरूवार को हो जाएगी और दिनांक 26 फरवरी दिन शुक्रवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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शुक्रिया आदरणीय जनाब अमीर जी
ग़ज़ल तक आने और हौसला बड़ाने के लिये दिल से आभार स्वीकार करें
सभी गुणीजनों का सहृदय धन्यवाद ग़ज़ल तक आने और मार्गदर्शन करने के लिये
दिल से आभार स्वीकार करें
शुक्रिया आदरणीय अमित जी ग़ज़ल तक आने
और हौसला बड़ाने के लिये दिल से धन्यवाद
2122 1122 1122 22
अपने ही दिल को सज़ा हमसे सुनाई न गई
बे-वफ़ा से तो वफ़ा हमसे निभाई न गई
दर्द-ए-दिल सहते रहे सहते रहे सहते रहे
चोट कुछ ऐसे लगी दिल पे दिखाई न गई
बज़्म-ए-जानाँ में अगर आज़ है फिर चश्म-ए-तर
आज़ फिर दिल की रज़ा हमसे छुपाई न गई
हाल-ए-दिल हमसे छुपाते ही रहे हैं वो भी
क्या हुआ उनसे अगर बात बनाई न गई
क्या हुआ गर जो हुआ है कोई यूँ ही रुसवा
क्या हुआ दिल की लगी गर जो बुझाई न गई
बे-क़रारी में रहा दिल यूँ ही पागल पागल
बे-क़रारी में कभी जान लुटाई न गई
हम भी "आज़ी" थे कभी सपनों के सौदागर पर
इश्क़ में कोई भी कीमत ही लगाई न गई
(मौलिक व अप्रकाशित)
ग़ज़ल दो बार पोस्ट करना नियम के विरुद्ध है ।
माफ़ कीजियेगा गुरु जी नियम ध्यान में नहीं था आगे से ऐसा नहीं होगा
बहुत ही बेहतरीन गजल वाह दिली मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए
सादर प्रणाम डॉ सिंह जी
दिल से धन्यवाद ग़ज़ल तक आने व हौसला अफ़ज़ाई करने के लिये
आभार कुबूल कीजिये
भाई आजी तमाम जी अच्छी तरही ग़ज़ल हुई है बधाई शेष बातें कहीं जा चुकी हैं।
सादर प्रणाम आदरणीय जान जी
ग़ज़ल तक आने और हौसला बड़ाने के लिये
आभार कुबूल कीजिये
आदरणीय dandpani nahak ji दिल से शुक्रिया हौसला अफ़ज़ाई के लिये
आभार स्वीकार करें
2122 1122 1122 22/112
मेरी अच्छाई से भी मेरी बुराई न गई
दोस्ती इसलिये भी मुझसे निभाई न गई।(1)
राह आसान किया साथ वो जब तक ही रहा
हो गया दूर मगर उसकी ख़ुदाई न गई।(2)
कल परिंदों ने की आकर ये शिकायत हमसें
दश्त की आग किसी से भी बुझाई न गई।(3)
ग़म छुपाने के लिए बात बनाना था उन्हें
क्या हुआ उनसे अगर बात बनाई न गई।(4)
आज फिर मुझको शब-ए-हिज्र दुआएं देगा
अब तलक मेरी ये अय्याम-ए-जुदाई न गई।(5)
तंज़ दुश्नाम अदावत ही मिले हैं मुझको
ज़ीस्त की बोझ नवाज़िश से उठाई न गई।(6)
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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