गौर वर्ण पर नाचती, सावन की बौछार।
श्वेत वसन से झाँकता, रूप अनूप अपार।। १
चम चम चमके दामिनी, मेघ मचाएं शोर।
देख पिया को सामने, मन में नाचे मोर।।२
छल छल छलके नैन से, यादों की बरसात।
सावन की हर बूँद दे, अंतस को आघात।।३
सावन में प्यारी लगे, साजन की मनुहार।
बौछारों में हो गई, इन्कारों की हार।। ४
कोरे मन पर लिख गईं, बौछारें इतिहास।
यौवन में आता सदा, सावन बनकर प्यास।।५
भावों की नावें चलीं, अंतस उपजा प्यार।
बौछारों ने देह पर, रचा नृत्य संसार।। ६
कहीं गीत है प्रीत का, कहीं मधुर संगीत।
सावन में अच्छा नहीं, रूठे रहना मीत।। ७
श्याम रंग के मेघ का, श्यामल श्यामल वेश।
केश खोल विचरण करे, गौरी अंबर देश।। ८
मेघों ने गागर भरी, सागर से कल रात।
ठुमक -ठुमक अंबर चले, करने को बरसात।।९
टप टप टपके झोंपड़ी, बुरी लगे बरसात।
जलते ही चूल्हा बुझा, कटी जागते रात।।१०
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी सृजन को मान देने का दिल से आभार। विलम्ब के लिए क्षमा।
आदरणीय सुशील जी। बहुत मनभावन दोहों के लिए तहे दिल बधाई सादर। हिली की शुभकामनॉए
जनाब सुशील सरना जी आदाब, आपको 550 वीं रचना की हार्दिक बधाई ।
अच्छे दोहे रचे आपने,बधाई स्वीकार करें ।
पारिवारिक कारणों से कुछ समय ओबीओ पर हाज़िर नहीं हो सकूँगा,सिर्फ़ तरही मुशाइर: में हाज़िरी हो सकैगी, मेरी कहीं ज़रूरत महसूस हो तो फ़ोन पर सम्पर्क कर सकते हैं ।
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