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ग़ज़ल: सुख दुख जीवन के हैं साथी क्यों रोता है तू यार

22 22 22 22 22 22 22 1

कोई करता है उद्धार कोई करता अत्याचार  

इस रंगमंच दुनिया में है सबका अपना किरदार

सुख दुख जीवन के हैं साथी क्यों रोता है तू यार

मिट ही जायेंगे सारे दुख जब छूटेगा संसार

जी भर के जीले हर इक पल ज़िद करना है बेकार

तन्हाई में कितने मौसम गुजरे हैं कितनी बार

कोई तो मिल जाये दिल कस्ती वाला इस पार

बैठे हैं साहिल पर कब से लेकर खाली पतवार

ऐसे भी तो ना घूमा कर लेकर दुख का बाज़ार

खुद से भी संभलने के तू कुछ खोजा कर उपचार

जब ढल जायेंगी उम्रें समझोगे तब ये सार

दो दिन की रानाई है ये चाहत वाला प्यार

टिक टिक चलती रहती है इक सूई कांटेदार

हर पल जीने में कितनी सब सांसें जायें हार

होगा घबराने से भी "आज़ी" अब क्या हर बार

मौसम तो बदलेगा ही मौसम का है अधिकार

मौलिक व अप्रकाशित

आज़ी तमाम

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Comment

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Comment by Aazi Tamaam on May 31, 2021 at 7:49pm

सादर प्रणाम गुरु जी

जी गुरु जी आगे से ऐसा नहीं होगा

ये गजलें हाल ही में पोस्ट की हैं ये काफी समय पहले की लिक्खी हुई हैं

इन्हें दुरुस्त करने की कोशिश की थी एक

सादर

Comment by Samar kabeer on May 31, 2021 at 2:47pm

जनाब आज़ी तमाम जी आदाब, आपने जो अरकान लिखे हैं ऐसी बह्र के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है, कृपया प्रचलित बह्र पर ही प्रयास करें तो उचित होगा ।

कृपया ध्यान दे...

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