आदरणीय साथिओ,
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कम शब्दों में उम्दा व बेहतरीन लघुकथा। हार्दिक बधाई आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रीय जी।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहजाद उस्मानी जी।
अलग मिज़ाज़ की एक अलग लघुकथा प्रस्तुत हुई है, अच्छी लगी, बहुत बहुत बधाई आदरणीय ओमप्रकाश जी.
** गुरुदक्षिणा**
"प्रणाम आदरणीय गुरुवर ." उसने अंदर प्रवेश करते ही तोहफ़े का पैकेट उनकी और बढ़ाते हुए कहा
"अरे! इसकी क्या जरुरत थी ." हँसते हुए वे बोले
" आप इसके हकदार है ." वो बोली
"अच्छा जल्दी से ये बताओ चाय लोगी या कॉफी? "
"आपका समय लूँगी सर . कुछ भी चलेगा ." सोफे पर बैठते वह बोली
"वैसे मैं चाय नहीं लेता . हा खालिस दूध की कॉफी ही लेता हूँ ." रसोइये को दो कप कॉफी बनाने का आर्डर देते वे भी सामने वाली सीट पर बैठ गए
"आदरणीय ! मैं ये कुछ लेखन लेकर आयी थी कुछ सुझाव दे सके तो ." उसने कागजों का पुलिंदा उनकी और बढ़ाते हुए कहा
.... ...
कॉफी आने तक कुछ कागज़ ऊपर-नीचे किए गए . तभी नौकर दो कप रखा गया . कप से उठती भाप से उसकी खुशबू में वह खो गयी
"एक बात बताओ तुम्हें प्रसिद्धी की इतनी जल्दी क्यों है . कुछ समय तो...." लो ना ठंडी हो जाऐगी कप पकड़ाते वे बोले
" कुछ समय मतलब...मैं समझी नहीं "
"अरे यही कोई आठ -दस साल . विषय को गहराई से समझने में इतना वक्त तो लगता ही है . तुम नवोदितों को बड़ी जल्दी होती है " उनकी आवाज में अकड़ थी
" लेकिन तब तक मैं जिन्दा ना रहा पाई तो. मैंने तो वैसे ही लेखन का आरंभ उम्र के पचासवें दशक के बाद आरम्भ किया है ."
"अपने जीवन में तुम जो काम कर रही हो वह कब तक जीवित रहेगा इसी में तुम्हारी कसौटी है ."
" इसका मतलब आपका कहना है हम किसी बात की लालसा ही ना रखे ."
" तुम वो रहो जो तुम हो . महत्वाकांक्षा निगेटिव वैल्यू है वह इंसान को संवेदनहीन बना देती है . शॉर्टकट सिखाती है
" शॉर्टकट "?
"हां अधीरता , जल्दी-जल्दी की चकल्लस ". उनके बोलने में गरूर था
" सर एकबार देख लेते तो.....अपने कागज के पुलिंदे की ओर ध्यान आकृष्ट करते उसने कुछ कहना चाहा
" छोड़ जाओ छ: महीने बाद फिर मिलाना " उन्होंने कहा
" जी महोदय ! कुछ किताबें सुझा सके पढ़ने के लिए तो ...."
" तो चम्पक,चाचा चौधरी , बिल्लू-पिंकी , एलिस इन वंडर लैंड , पंचतंत्र ... "उसकी बात पुरी होने से पहले ही वे ये सब नाम बोल गए. उठे और अंदर निकल लिए
वह ट्रे में खाली पड़े कप देखती रह गयी बस!
मौलिक व अप्रकाशित
हार्दिक बधाई आदरणीय नयना जी । लाजवाब लघुकथा । सत्य तथा यथार्थ दर्शाती रचना।
आदरणीय
'जल्दी जल्दी की चकल्लस' रोचक शब्दावली है। गुरू और शिष्या दोनो ही अपनी जगह थोड़े सही थोड़ॆ गलत हैं मेरे अनुसार,। सामयिक विषय और शानदार तानाबाना। हार्दिक बधाई नयना जी
आदाब। गोष्ठी में बिल्कुल ही भिन्न और विचारोत्तेजक प्रविष्टि। हार्दिक बधाई आदरणीया नयना आरती कानिटकर जी। प्रवाह व कथनोपकथन पाठक को बाँधे रखता है। हाँलाकि इस विषय पर.अन्य लेखकों ने भी अपनी तरह से क़लम चलाई है। लेकिन यह बेहतर बन पड़ी है। शीर्षक बढ़िया है शीर्षक आदि में * जैसे केरेक्टर चिह्न न लगाने को मंच पर कहा जाता है।
एक टंकण त्रुटि रह गई - /नौकर दो कप रखा (रख) गया/
आभार उस्मानी जी. शीर्षक में ** नही लगाया जाता. इस नियम का मुझे पता नहीं था. मंच से इस हेतु क्षमापार्थी हूँ.
एक टंकण त्रुटि रह गई - /नौकर दो कप रखा (रख) गया/--- ओह! ठीक करती हूँ सर
अच्छी लघुकथा प्रस्तुत हुई है आदरणीया नयना जी. बधाई स्वीकार करें।
कोमल भावुक शब्दों से सजी रचना अच्छी लगी। हार्दिक बधाई आदरणीय
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