आदरणीय साथियो,
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रचना पर टिप्पणी हेतु बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। लेखक यही जानने को इच्छुक है कि पाठक तक क्या संदेश पहुँच पाया। ...प्रतीत होती लगी... आपको। कृपया स्पष्ट कीजिएगा कि रचना क्या सम्प्रेषित कर रही पाठकों को, ताकि लेखक को पाठकीय राय/ प्रतिक्रिया अधिक स्पष्ट हो सके। रचना की कमियाँ कृपया इंगित कीजिएगा मार्गदर्शन सहित। अर्थात कृपया सम्प्रषणीयता और क्लिष्टता आदि की लघुकथागत पक्षों पर मार्गदर्शन भी प्रदान कीजिएगा इस रचना पर।
रोजगार महोत्सव
कैंपस -चयन हेतु देश -विदेश की कंपनियों के प्रतिनिधि अपने -अपने ऑफर लिए महाकुंभ स्थल पर खड़े हैं।स्नानार्थियों की रेलमपेल में अभ्यर्थियों का रेला थोड़ी दूर रुका हुआ है।
' स्ना.. स्ना ...न करने वाला लोघ भीड लगा डेटा हाय।' एक विदेशी ने गुस्सैल अंदाज में कहा।
'संगम है।मांगो,तो यहां मनोकामना,या कहूं तो विश पूरी होती हाय।' हिंदुस्तानी प्रतिनिधि व्यंग्यात्मक लहजे में बोला।
'ओय खूब!खूब!! माय टो बढ़िया रिक्रूट मांगटा।'विदेशी प्रतिनिधि संगम -तट पर विद्यमान जनसमूह की तरफ मुड़कर नमन करता हुआ बोला।
'मेरे गूगल को मैन डो(दो) डेव (देव)लोग।'
'फेसबुक पर नजर करें, डेव जी।'
मेरी मोबाइल कंपनी को भी मैन (आदमी)चाहिए, डेवो!'
सभी विदेशियों ने अपनी अपनी मन्नत के लिए मिन्नत करने के बाद एक साथ ही हिंदुस्तानी प्रतिनिधि से पूछ डाला,'टूम ने इहां किया मांगा, मैन?'
'यही कि हियां का मेरिट(लोग) हियां ही रुक जाता।'हिंदुस्तानी का जवाब सुन सारे विदेशी एक -दूसरे का मुंह देखने लगे।
"मौलिक व अप्रकाशित"
जनाब मनन साहिब, दिए विषय पर अच्छी लघुकथा
मुबारकबाद कुबूल फरमाएं
आभार जनाब तसदीक साहिब।
आभार आ.उस्मानी जी।
हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार जी।व्यवस्था पर सीधा प्रश्न चिन्ह। बहुत सुन्दर लघुकथा।
आभार आ.तेजवीर जी।
मेरा देश महान - लघुकथा-
"क्या नाम है तुम्हारा नौजवान?"
“ईश्वर।"
“क्या तुम सच में ही ईश्वर हो?"
"जी साहब।"
"तो यहाँ क्या लेने आये हो?”
"नौकरी जनाब।”
"हम ईश्वर को नौकरी कैसे दे सकते हैं।”
"तो जनाब मुझे नौकरी कौन देगा?”
"किसी नेता को पकड़ो। ”
"जनाब मैं पहले नेता जी के पास ही गया था। उन्होंने ही मुझे आपके पास भेजा है। एक सिफ़ारिशी खत भी दिया है।”
“दिखाओ।"
"ये लीजिये जनाब।”
"ये तो मंत्री जी का खत है। वे तो खुद ही नौकरी देने में सक्षम हैं।”
"मगर जनाब उन्होंने कहा कि हम नौकरी नहीं देते, हम तो केवल सिफ़ारिशी खत ही देते हैं।"
मौलिक एवं अप्रकाशित
सादर नमस्कार। व्यवस्था पर, विडम्बनाओं पर.तंजदार रचना विषयांतर्गत। हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी। शीर्षक कोई नया व छोटा भी तदनुसार हो सकता है मेरे विचार से।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद जी।
जनाब तेज वीर साहिब, दिए विषय पर अच्छी लघुकथा हुई है
मुबारकबाद कुबूल फरमाएं
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