आदरणीय साथियो,
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"विश्वास का धागा टूट चुका है",तो शीर्षक कुछ और हो,तो कैसा हो,भाई तेजवीर जी?गलतफहमी ...वगैरह।वैसे यह मेरा व्यक्तिगत विचार है।बढ़िया लघुकथा है।बधाई लीजिए।
जी, आदरणीय मनन जी मैं भी यह कहना चाहता था कि शीर्षक बेहतर व सटीक चुना जा सकता है। पुलिस और सेना की सेवा करने वाले व्यक्ति आदतन किस तरह के फ़ैसले लेते हैं और किस तरह घरेलू सेवकों के/पर विश्वास टूटते हैं, इससे संबंधित शीर्षक। 'ग़ुरूर' नहीं लगता यहाँ।
बहुत बेहतरीन पथकथा, मजा आया पढ़कर। बधाई आद0 तेजवीर जी। सादर अभिवादन।
आ. भाई तेजवीर जी, अच्छी लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।
शुक्रिया। उम्मीद अनुसार वर्ष 2022 की यह अंतिम गोष्ठी भी विषयांतर्गत हमारे लिये उद्देश्य पूरा करती हुई और मार्गदर्शक रही। हार्दिक बधाई। आने वाले नववर्ष की तहेदिल से मुबारकबाद और शुभकामनाएं सभी सहभागी साथियों को, मंच व ओबीओ परिवार को।
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