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आदरणीय मित्रों !

सर्वप्रथम "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-३ की अपार सफलता के लिए आप सभी मित्रों को हृदय से बधाई ! जहाँ पर आप सभी के सहयोग से ओ बी ओ के सारे कीर्तिमान ध्वस्त हो सके हैं !

आप सभी का एक बार पुनः हार्दिक स्वागत है ! आज के इस चित्र में जहाँ एक ओर आधुनिक भारत का वर्तमान स्वरुप दिखाई दे रहा है तो वहीं दूसरी ओर खेत में काम करे हुए किसान का परिवार आज भी पचास साल पहले वाली स्थिति में ही काम कर रहा है फिर भी यह किसान परिवार प्रसन्न दिख रहा है और अपने कार्य में पूरे मनोयोग से व्यस्त है |  यह तो सच है कि हमनें जो आज इतनी तरक्की की है उसके पीछे हमारी लगन मेहनत व कार्यनिष्ठा ही है परन्तु वास्तव में यदि देखा जाय तो इस सम्बन्ध में हमारे देश के  किसानों का योगदान कहीं से भी कम नहीं है क्योंकि इन्होनें ही अपना खून पसीना बहाकर हमारे पेट की क्षुधा को शांत करने के पूरे प्रबंध किये हैं ...हमनें तो अपनी आवश्यकतानुसार बहुत सी आधुनिक सुख-सुविधाएँ जुटा लीं हैं परन्तु यह बेचारें क्या करें ......इन्हें तो ठीक से दो वक्त का भोजन तक नसीब नहीं हो पाता है ...हमारी सरकार भी बेचारे किसान-मजदूर को पूरे वर्ष में मात्र १०० दिन के लिए मात्र १२० रूपये प्रतिदिन की मजदूरी  ही मुहैया कराती है वह भी बहुत हद तक सिर्फ कागजों पर, इस हेतु भी किसान के पूरे परिवार से मात्र एक व्यक्ति ही चुना जाता है |

 

दोस्तों ! जब-जब हमारे मुख में अन्न का एक भी दाना जाय तब-तब हमें इन किसानों के प्रति ऋणी होना चाहिए क्योंकि इन्हीं के परिश्रम से हम जीवित हैं, साथ-साथ यह भी अत्यंत विचारणीय विषय है कि हम इनकी बेहतरी के लिए व्यक्तिगत स्तर पर क्या-क्या प्रयास कर सकते हैं |

आइये तो उठा लें अपनी-अपनी कलम, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण, क्योंकि हम साहित्यकारों के लिए यह नितांत आवश्यक है कि इस मुद्दे पर कुछ न कुछ सृजन अवश्य करते रहें ताकि इस समाज में इस सम्बन्ध में भी कुछ जागरूकता आये और इन किसानों का कुछ कल्याण हो सके !

नोट :-

(1) १५ तारीख तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, १६ से २० तारीख तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट करने हेतु खुला रहेगा |

(2) जो साहित्यकार अपनी रचना को प्रतियोगिता से अलग  रहते हुए पोस्ट करना चाहे उनका भी स्वागत हैअपनी रचना को"प्रतियोगिता से अलग" टिप्पणी के साथ पोस्ट करने की कृपा करे 

(3) नियमानुसार "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-३  के प्रथम व द्वितीय स्थान के विजेता इस अंक के निर्णायक होंगे और उनकी रचनायें स्वतः प्रतियोगिता से बाहर रहेगी |  प्रथम, द्वितीय के साथ-साथ तृतीय विजेता का भी चयन किया जायेगा |  


 सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना पद्य की किसी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओ बी ओ  के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक रचना ही स्वीकार की जायेगी  |

विशेष :-

(१) यदि आप ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सदस्य है और किसी कारण वश प्रतियोगिता के दौरान अपनी रचना पोस्ट करने मे असमर्थ है तो आप अपनी रचना एडमिन ओपन बुक्स ऑनलाइन को उनके इ- मेल admin@openbooksonline.com पर १६ जुलाई से पहले भी भेज सकते है, योग्य रचना को आपके नाम से ही प्रतियोगिता प्रारंभ होने पर पोस्ट कर दिया जायेगा, ध्यान रखे यह सुविधा केवल OBO के सदस्यों हेतु ही है |


(२) यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें|  संचालक :- अम्बरीष श्रीवास्तव


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Replies to This Discussion

अरुण भाई सभी क्षणिकाएं बहुत ही खुबसूरत भाव ली हुई है | आभार आपका |
आपके स्नेह का आभार बागी जी !

हर क्षणिका अलग-अलग परिचय के साथ सामने आती है.

 

लील रहे

हमारे खेत - तुम्हारे तार

पेट पर वार !

’तुम्हारे तार’ में तार शब्द से उभरता भय बखूबी तारी हो जाता है..बहुत सफल प्रयोग.

 

यहाँ चक्की

वहाँ बिजली - वहाँ सबकुछ

गए हम लुट !

कहने को अब बचा ही क्या? वहाँ सबकुछ .. इस ’अफ़सोस’ की अभिव्यक्ति पर मैं हैरान हूँ.. बधाई

 

विकास ?

छोड़ दी आस

नहीं विश्वास

सत्यानाश !

कहने को क्या रहही गया अब? जिसे विकास का नाम दिया जा रहा है उसका असल रूप यही है.. कइयों के लिये रंग-रास तो क्इयों के लिये सर्वनाश. ..!

 

तुम्हारा छल

तुम्हारा बल

हमारा आज ?

हमारा कल ??

इन इंगित करती पंक्तियों को मेरा साधुवाद. शब्दों के लिहाज से मितव्ययिता को निभाना और सार्थक कह पाना, सतत अभ्यास वहभी दीर्घकाल तक किया जाय तभी संभव हो पाता है. आपकी अभ्यास-प्रक्रिया को मेरा नमन.

 

हमारी खुरपी हंसिया

हमारे हल - रहट  सब

ये कॉलर खा गए हैं

कि हालर आ गए हैं !

इस विस्थापन प्रक्रिया पर कुछ कहना उचित नहीं. अलबत्ता महसूस करें.

 

तुम्हारी घुड़कियों से

डर रहे हैं

है मजबूरी तभी तो ,

किसानी कर रहे हैं

मर रहे हैं !

खेत-खलिहानों, खेतिहरों, किसानों को लेकर बड़ी-बड़ी रुमानी बातें करना. किताबों से सैद्धांतिक शब्द नोच-नोच कर देश-गाँव की बात करना अभिजात्य जीवन को जीते लोगों के लिये मन-रंजन का कारण हो सकता है, सचाई को महसूसना इतना आसान नहीं. 

किसानी को जिस खाने में आपने रखा, अरुणजी, मैं जानता था, पर पढ़कर नम हो गया हूँ. इस स्प्ष्टवादिता के लिये आभार.   

 

हमीं हम बो रहे हैं

नफे में वो रहे हैं

नियति है ढो रहे हैं !

खेत और हाट या बाज़ार के बीच का फासला कुछ और विद्रुपता के साथ अट्टहास करता दिखाई दे रहा है.

 

भाई अभिनव अरुणजी, आपकी इन क्षणिकाओं ने बहुत गहरे, अंदर तक, अपना होना महसूस कराया है. आप इसीतरह संवेदनाओं को स्वर देते रहें और हम कुछ और सबल होते रहें.  मेरा हार्दिक धन्यवाद स्वीकार करें.

 

आदरणीय श्री सौरभ जी आपकी टिप्पणी में आपका स्नेह आपकी शुभेच्छा छलक रही है , अभिभूत हूँ ! आप जैसे साथियों और गुरुजनों की आशीष ज़रूरी है मेरे लिए | साहित्य पथ पर एक सशंकित पथिक हूँ कुछ सीखने की अभिलाषा है | जानता हूँ अपनी कमज़ोरिओं को भी उन्हें दूर करने का प्रयास जारी है | स्नेह मिलता रहे यही कामना है !!

बहुत ही खूबसूरती से लिखा है आपने अरुण भाई...बहुत ही बढ़िया...
preetam jee shukriya abhaaree hoon !

आभारी हूँ वंदना जी !!

jai ho sabhi ek se badh kar ek
//तुम्हारा छल

तुम्हारा बल

हमारा आज ?

हमारा कल ??//

 

बेहतरीन बेहतरीन बेहतरीन - आफरीन !


{1}.

//लील रहे

हमारे खेत - तुम्हारे तार

पेट पर वार !//

वाह वाह!  अभिनव जी ! क्या सधी हुई क्षणिका कही है ............"पेट पर वार"

{2}.

//यहाँ चक्की

वहाँ बिजली - वहाँ सबकुछ

गए हम लुट !//

अय हय हय .......बहुत मार्मिक !

{3}.

//विकास ?

छोड़ दी आस

नहीं विश्वास

सत्यानाश !//

इन चंद पंक्तियों के माध्यम से इस व्यवस्था पर करार प्रहार किया है  आपने  !!!!

{4}.

//तुम्हारा छल

तुम्हारा बल

हमारा आज ?

हमारा कल ??//

बहुत ही शानदार व सशक्त पंक्तियाँ ! आपने बिलकुल सही कहा कल का तो कुछ पता ही नहीं ........

{5}.

//हमारी खुरपी हंसिया

हमारे हल - रहट  सब

ये कॉलर खा गए हैं

कि हालर आ गए हैं !//

किसानों की व्यथा का सटीक वर्णन करती हुई इस बेहतरीन क्षणिका के लिए बधाई स्वीकार करें !

{6}.

//तुम्हारी घुड़कियों से

डर रहे हैं

है मजबूरी तभी तो ,

किसानी कर रहे हैं

मर रहे हैं !//

बहुत ही मार्मिक ! सारा दर्द उभर कर सामने आ उपस्थित हुआ है !

 

{7}.

//हमीं हम बो रहे हैं

नफे में वो रहे हैं

नियति है ढो रहे हैं !//

यही स्थिति है आज के किसान की !

इन शानदार क्षणिकाओं के लिए कृपया हृदय से बधाई स्वीकार करें !

आदरणीय श्री अम्बरीश जी यह आपका स्नेह है जो इस मंच आपलोगों के बीच कुछ लिख पाने का साहस कर पाटा हूँ !! ओ बी ओ पर मिले स्नेह के लिए आभारी हूँ पूरी टीम का ! और आपका विशेष रूप से इस विस्तृत समीक्षा ने काव्य की सार्थकता बढ़ा दी !! congrats for your sanchaalan too !!

thanks a lot aroma jee !!

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