आदरणीय साथियो,
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आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर कसी हुई रचना हुई है। हार्दिक बधाई।
आदरणीय भाई मनन कुमार जी, सादर अभिवादन।बहुत सुंदर, कसी हुई, प्रतीकात्मक शैली की रचना प्रस्तुत हुई है। हार्दिक बधाई।
आपका आभार आदरणीय भाई तेजवीर सिंह जी।नमन।
आपका आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण जी।नमन।
* रानी बड़ी सयानी *
मुँगस पुर , बिहार के मध्य वर्गीय परिवार की इकलौती मेधावी संतान कक्षा 12 वीं की छात्रा । सब कुछ ठीक ठाक था उसके जीवन में । अभी उसने फाइनल वर्ष की परीक्षा दी ही थी । रिजल्ट आने ही वाला था । एक दिन वो माँ के साथ रसोई में काम करा रही थी । उसकी माँ ने उससे पूँछा , तेरे बापू जी अब तुझे आगे नहीं पढ़ाना चाहते हैं । वो चाहते हैं की तेरी शादी उनके पुराने मित्र के एक मात्र सुपुत्र जो की दिल्ली में सरकारी पद पर कार्यरत है, से कर दी जाये । रानी को एक दम झटका सा लगा । वो बोली माँ तू अपनी बेटी के मन को नहीं जानती क्या । तूने टोंका नहीं उनको । माँ बोली जानती हूँ , लेकिन वो मुझे ही समझाने लगे वोले , रानी की माँ हमारे परिवार में लड़कियों की शादी 17 -18 की उम्र में ही कर दी जाती है , और ये बहुत अच्छा रिश्ता है रानी सुख से रहेगी अगर उसका आगे पढ़ने का मन है तो वो शादी के बाद अपने पति की सहमति से पढ़ सकती है , रमेश अच्छा लड़का है हम सबका , रानी का देखा भाला है , और क्या चाहिए ऐसे रिश्ते संयोग से मिलते है । मैं और क्या करती चुप रह गई , बेटी हम सब तेरे सुन्दर भविष्य के लिए चिंतित रहते हैं सदा सो इस से अच्छा अवसर क्या होगा , फिर एक बात और , रमेश बहुत ही सुशील संस्कारी लड़का है । उसके विचार आधुनिक समय के अनुसार हैं । वो तुझे समझता भी है उसके पिता ने जब तेरे वारे में उससे बात की तो वो तुरंत मान गया । अन्यथा पढ़ लिख कर लड़के कहाँ सुनते हैं , अपने बडों की । तू चाहे तो उससे बात कर लेना । 2 दिन बाद हफ्ते की छुट्टी पर अपने घर पटना आने वाला है हम सब उससे मिलने चलेंगे । और यथेष्ट समय देख * तेरा रोका भी कर देंगे जब तुम दोनों सहमत हो जाओगे तब * रानी को कुछ भी ना सूझा चुपचाप माँ की आँखों में देखती रही । मानवीय जीवन अवसरों के अनुरूप मनुष्य को विचार शून्य कर देता है । या यूं कहिए प्रारब्ध के खेल अवसर देते हैं और मानव उनके योग अनुसार अनजाने में या उचित अनुचित का ख्याल कर सहमत हो जाता है । इति
मौलिक व अप्रकाशित
आदाब। शायद मैं पहली बार आपकी प्रविष्टि पढ़ रहा हूँ। बढ़िया प्रेरक रचना। हार्दिक बधाई आदरणीयडॉ. अरुण कुमार शास्त्री जी। हालाँकि मेरे विचार से यह लघु कहानी हो सकी है, लघुकथा विधा तहत लघुकथा नहीं। समापन पंक्तियाँ लेखकीय अभिव्यक्ति/दखल है। इस रचना में से कोई एक.पल/विसंगति उभार कर, एक कालखण्ड में, पात्रों के बीच बढ़िया संवाद युक्त मिश्रित शैली की लघुकथा आप कह सकते हैं।
प्रिय शेख साहिब - आदाब - आपका आभारी हूँ , आपकी समीक्षा आपके विवेक व ज्ञान अनुसार, न्यायोचित - मैं उसका सम्मान करता हूँ सादर नमन , तथोक्त हेतु कोई आपत्ति नहीं । मुझ में जैसी लेखन व सृजनात्मकता , क्षमता है वही लिख पाया हूँ , सादर । हाँ सीखना एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन पर्यन्त रहेगी , आपके भाव अनुसार प्रयास जारी रहेगा ।
मेरी पाठकीय टिप्पणी को यूँ मान देने हेतु शुक्रिया। यह विधा ही ऐसी है कि विधा पर आलेखों के और विशेषज्ञों/ गुरुजन की उत्कृष्ट लघुकथाओं के सतत अध्ययन और लेखन अभ्यास की हम से माँग करती है। आशा है कि इसी मंच पर उपलब्ध आदरणीय सर जनाब योगराज प्रभाकर जी के आलेख आप पढ़ते रहते होंगे जैसे कि लघुकथा विधा : तेवर और कलेवर
आ. भाई अरुण जी, सादर अभिवादन।अच्छी लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।
भाई लक्ष्मण जी सादर अभिवादन , आपके शब्द मुझ से शिक्षार्थी हेतु प्रोत्साहन , ऊर्जा का निमित्त हुए ।
मैं भी शायद पहली बार ही आपकी प्रविष्टि पढ़ रहा हूँ।आपका स्वागत है। बढ़िया प्रेरक रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ. अरुण कुमार शास्त्री जी।
आदरणीय अरुण जी,प्रयास सफलता की कुंजी है।जारी रहे। इति शुभम्।
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