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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-154

विषय : "अपनी माटी अपना देश"

आयोजन अवधि- 12 अगस्त 2023, दिन शनिवार से 13 अगस्त 2023, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन 'घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 12 अगस्त 2023, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें

मंच संचालक

ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम परिवार

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Replies to This Discussion

आयोजन में आप सभी साहित्य प्रेमियों का स्वागत है ।

जय-जय .. सुस्वगतम् .. 

सादर अभिवादन।

सुस्वागतम्।

साहित्य के महा उत्सव में आप सभी की रचनाओं की प्रतीक्षा है।

अपनी माटी अपना देश

चौपई छंद आधारित रचना;

अपनी माटी अपना देश, अपनी भाषा अपना वेश
कण-कण में ये ही सन्देश, राष्ट्र हमारा है अखिलेश 
अपने ही है सारे लोग, मिलकर सुख-दुःख लेंगें भोग

आते-जाते मिलते यार, बातचीत में बिखरे प्यार
चाहे मिलते सालों बाद, हर लेते सारा अवसाद 

गली-मुहल्ला अपना गाँव, छूने को उड़ते हैं पाँव

त्यौहारों पर भर उल्लास, सभी मनाएँ आमो-ख़ास
पकवानों में अपना स्वाद, ऋतुएँ भी करती आह्लाद
रीत-रीत के अपने गीत, साज़ों में अपना संगीत

अपनी नदियाँ अपना नीर, अपने सागर अपने तीर
अपने पर्वत अपने खेत, मरुस्थलों में अपना रेत 
वन उपवन तृण शाखा पत्र, अपना ही कण-कण सर्वत्र

अपनी पुस्तक अपना पाठ, फैला है बचपन का ठाठ
अपने शिक्षक अपना ज्ञान, परम्परा का रखते ध्यान 
उच्च भविष्य करें सायास, भूले नहीं मगर इतिहास

अपना झण्डा अपना दण्ड, करें विरोधी को शतखण्ड 
किये चल रहे और प्रयास, शिखर रहेगा अपना दास 
अपने बच्चे अपने खेल, करें सफलता से अब मेल

अपने योगी अपना योग, अपना जीवन अपना भोग
अपने ऋषि अपने दरवेश, जिनका जीवन इक सन्देश 
नृप भी अपने हुए महान, किया प्रजा का हित उत्थान

नई बनाते अपनी लीक, अपनाई है नव तकनीक
चले गगन का छूने छोर, विश्व देखता अपनी ओर
भरे मनस में नव आवेश, अपनी माटी अपना देश


# मौलिक व अप्रकाशित

वाह वाह वाह ..

आदरणीय अजय गुप्ता ’अजेय’ जी, आपकी प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

चौपई छंद का सार्थक और रोचक निर्वहन मुग्ध कर रहा है। 

हार्दिक शुभकामनाएँ 

रचना पर उत्साहवर्धक टिप्पणी कर के प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी 

आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुन्दर छन्द हुए हैं। हार्दिक बधाई।

बहुत आभार लक्ष्मण भाई

अपनी माटी अपना देश

धोती कुर्ता चूड़ीदार
तुर्की टोपी की भरमार
युवा पैन्ट-शर्ट हैं पहने
कि दक्षिण में लुंगी बहार

भारतवासी का गणवेश

अपनी माटी अपना देश

एक हिन्दू दूजा मुस्लिम
ब्राह्मण पर सबके आलिम
पारसी बहुत दिनों से हैं
नहीं कहे किसी को जालिम

भिन्न भिन्न लोग यहाँ रहते
अपनी माटी अपना देश

उत्तर से दक्षिण तक रेख
समुच्चय बन जाता आलेख
बंगाल गुजरात दिशा तक
देश एक लिखता है लेख

हिमालय से कन्याकुमारी
अपनी माटी अपना देश

एक बोलता हिन्दी सदा
दूजा बंगाली है फँसा
उर्दू हम ने ही बनाई
संस्कृत बचाये आपदा

देश की भाषा-डाल एक
अपनी माटी अपना देश

कि मर मिटते आन बान पर
मात भारती की शान पर
बलिदानी हम रहे शुरु से
चाहता हर कोई मान पर

गाँधी हो या भगत अनेक
अपनी माटी अपना देश

भाग्य का मानते आदेश
करके कर्म छोड़ते शेष
भाग्य विधाता हम रणछोड़
कर्ता है, तो वही सुरेश

सोच समझ अपनी है एक
अपनी माटी अपना देश

मौलिक व अप्रकाशित

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छी प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त शीर्षक पर आपकी रचना का स्वागत है। गीतात्मक प्रकृति की इस रचना मेंं माँ भारती के विभिन्न प्रारूपों की चर्चा हुई है। हार्दिक बधाई। 

 

एक बात अवश्य कहना चाहूँगा। आप अपनी रचनाओं के कथ्य को साधने के साथ-साथ उसके प्रस्तुतीकरण पर भी ध्यान दें। आपकी रचनाओं के कथ्य वस्तुतः तार्किक होते हैं। बिना सार्थक प्रस्तुतीकरण के कोई रचना अपना कलेवर नहीं पा सकती। न ही उसकी बुनावट सध पाती है। कहने का अर्थ है, कि विधा-विधान, मात्रिकता, शब्द-विन्यास का वैधानिक निर्वहन आदि भले ही रचना प्रस्तुतीकरण हेतु माध्यम मात्र हों, परन्तु इनके बिना कोई गेय रचना तार्किक ढंग से संप्रेष्य नहीं हो पाती। 

विश्वास है, मेरे कहे को आप उदार भाव से स्वीकर करेंगे। हम आपस में ही सीखते-सिखाते हैं। हम सभी इस मंच के अभ्यासी हैं। 

सादर  

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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