आदरणीय काव्य-रसिको !
सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ अड़तालिसवाँ आयोजन है.
इस बार के आयोजन के लिए दो छंद लिये गये हैं - दोहा छंद या / और कुण्डलिया छंद
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
19अगस्त’ 23 दिन शनिवार से 20 अगस्त’ 23 दिन
रविवार तक
हम आयोजन के अंतर्गत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
दोहा छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
कुण्डलिया छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 19 अगस्त’ 23 दिन शनिवार से 20 अगस्त’ 23 दिन रविवार तक ही रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए मंच खुला रहेगा.
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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उत्साहवर्धन के लिये हार्दिक आभार आदरणीय अशोक जी।आपसे सहमत हूँ कि चित्र के कई बिन्दु छूट गये हैं।
कैसे खाली पेट, करे सपनों से यारी।
मन को देती डाँट, शोर जब करता भारी .. अत्यंत मार्मिक पंक्तियाँ बन पड़ी हैं, आदरणीया प्रतिभा जी.
इस सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई व अशेष शुभकामनाएँ
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी
छंद पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिये हार्दिक आभार
जय-जय
दोहे-
***
पाये इस तस्वीर ने, दुनिया के दो रंग।
इक दूजे को देख जो, होते दिखते दंग।।
*
एक रंग में धूप है, और एक में छाँव।
यह छवि सही प्रतीक है, नगर रहे या गाँव।।
*
दो रिक्शे इक राह पर, दोनों में ही बाल।
दोनों की विपरीत पर, इक दूजे से चाल।।
*
शिक्षा पाने जा रहा, कोई रिक्शे बैठ।
कोई उससे कर रहा, न्यून भूख की पैठ।।
*
शिक्षा भले निःशुल्क है, पर निर्धन से दूर।
उसके बच्चे कौर को, अब तक हैं मजबूर।।
*
आठ दसक स्वाधीन हो, कितना बदला देश।
उठता यही सवाल मन, देख चित्रित परिवेश।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
शिक्षा भले निःशुल्क है, पर निर्धन से दूर।
उसके बच्चे कौर को, अब तक हैं मजबूर।।// सत्य बात...सारे दावों के बावजूद हाल ये ही है। चित्र को सार्थक शब्द देती इस दोहावली के लिये हार्दिक बधाई आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी
*
आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।
आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, प्रदत्त चित्र पर अच्छे और सार्थक दोहे रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. दसक/दशक .सादर
आ. भाई लक्ष्मण सिंह मुसाफिर, दोहा छंद का आपका प्रयास अच्छा है किन्तु (1) // शिक्षा भले नि: शुल्क है // मात्राएं अधिक हैं !
// आठ दसक (दशक) स्वाधीन हो // पर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ ।
ता
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,
आठ दसक स्वाधीन हो, कितना बदला देश
उठता यही सवाल मन, देख चित्रित परिवेश ... वाह वाह. हार्दिक बधाई.
दसक की शुद्ध अक्षरी दशक होती है.
शुभातिशुभ
कुण्डलिया
भर झोला रिक्शा लिए, जाते बच्चे तीन।
हक्के-बक्के शक्ल से, थोड़े हैं ग़मगीन।।
थोड़े हैं ग़मगीन, किन्तु हैं मन में सपने।
बनना है कुछ ख़ास, तभी खुश होंगे अपने।
रहे बैठ यदि गाँव, नहीं जो छोड़ा ये घर।
तो बनकर मजदूर, रहेंगे हम जीवन भर।।
मौलिक/अप्रकाशित.
आदरणीय अशोक भाईजी, सुन्दर कुण्डलिया के लिए हार्दिक बधाई
बनना है कुछ ख़ास, तभी खुश होंगे अपने .. बहुत सही
रहे बैठ यदि गाँव, को यदि रुके रहे यदि गाँव .. किया जाय तो संभवतः पदों की सम्प्रेषणीयता तनिक और सटीक हो सकती है.
बताइएगा.
शुभातिशुभ
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