2122/१२१२/२२
 ***
 दिल की कालिख सँवार आँखों में
 कह  रहे  सब  खुमार  आँखों में।१।
 *
 फिर सुहाता न कोई भी उस को
 उग गया जिस के खार आँखों में।२।
 *
 वार  करती  है  जानलेवा  वो
 क्या लिए है  कटार  आँखों में।३।
 *
 दिल तो बेचैन उस की बातों से
 दिख रहा पर  करार  आँखों में।४।
 *
 सिर्फ दुख से न होती नम लोगो 
 हर्ष भी  लाता  धार  आँखों में।५।
 *
 मन की चाहत सुबास सरसों की
 खिल गयी  पर  जवार आँखों में।६।
 *
 खाइए  नित्य  आप भी गाजर
 चाहिए  गर  सुधार  आँखों में।७।
 *
 मैं 'मुसाफिर' हूँ अजनवी पथ का
 व्यर्थ  रखना   उतार  आँखों  में।८।
 *
 मौलिक/अप्रकाशित
 लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आपका अनोखा लेखन मुझे बहुत अच्छा लगता है सुंदर ग़ज़ल हुई बधाई आ
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
    © 2025               Created by Admin.             
    Powered by
     
    
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online