आदरणीय साथियो,
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अहसास (लघुकथा):
कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को ध्यान से देख रहा था। कबूतर के दोनों अण्डों से चूजे जन्म ले चुके थे और उनके माता-पिता उनकी विधिवत देखभाल कर रहे थे। कनिका घोंसले वाले तिनके और घासफूस जुटा कर लायी और धीरे से गमले में सरका दिए। कबूतरनी तुरंत उड़ कर भाग गई और कनिका के वहां से हटते ही लौट कर आ गई। घोंसले की सामग्री का न तो पालना या बिस्तर बनाया गया और न ही घोंसले जैसा कुछ भी।
"भैया, गमले की मिट्टी कितनी गर्म है। उसमें तो चूजे बेचारे मर जायेंगे। कुछ कॉटन के टुकड़े वगैरह वहां जमा दो चुपके से।" कनिका ने कन्नू से ऐसे अनुरोध किया कि कन्नू मना न कर सका। कॉटन के छोटे-छोटे टुकड़े कुछ उसी गमले में और कुछ पास के गमले में होशियारी से डाल दिए गये चूजों के माता-पिता की अनुपस्थिति में। पानी का इंतज़ाम तो पहले से ही था।
"भैया, ये लोग कितने बेवकूफ हैं, हमारी मदद को समझ ही नहीं पा रहे!" अबकी बार कनिका तनिक गुस्से में बोली।
"बेवकूफ वे नहीं हम हैं अपने मम्मी-पापा की तरह। तुम्हें याद है न जब मेरी तबियत बिगड़ी थी, तो साइकियाट्री और प्रिंसिपल मैडम ने मम्मी-पापा से क्या कहा था?" कन्नू ने कनिका को बालकनी से दूर ले जा कर कहा।
"क्या कहा था, भैया?"
"कनिका यह कहा था न कि बच्चों की पैम्परिंग करने से बच्चे लाड़ के लड्डू बन जाते हैं, ज़िद्दी भी! कन्नू टीचर की डांट-डपट और पिटाई से अपने मानसिक संतुलन बिगड़ने वाले दिन याद करते हुए बोला, "ये पक्षी अपने बच्चों को उतने ही सुख-सुविधा अपने चूजों को देते हैं, जितने ज़रूरी हैं। वे उन्हें जन्म से ही स्ट्रोंग और सेल्फ़-डिपेंडेंट बनाते हैं। पैम्परिंग नहीं करते। देख लिया न अपन लोगों ने!"
(मौलिक व अप्रकाशित)
आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।
आदाब। हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और प्रतिक्रिया मेरे लिए और गोष्ठी सहभागिता हेतु बहुत महत्वपूर्ण है।
इस रचना पर अभी और काम करना चाहता हूं। सुझावों व खामियां जानने को इच्छुक हूॅं लघुकथा विधागत सटीकता हेतु।
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