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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 
(घर-आँगन) 
अवधि : 29-06-2024 से 30-06-2024 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
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5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
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7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।

समाधि के फूल
वे लड़के बापू की समाधि से एक फूल उठा लाए।घर खुशबू से नहा गया।उनकी खुशियों का ठिकाना न था। गांव - मुहल्ले भी गुलजार थे। मुफ्त की सुगंध उनपर तारी थी।एक दिन  भाइयों की आपसी खींचातानी में फूल की पंखड़ियां छितरा गईं। कुछ आंगन में रहीं, कुछ इधर- उधर हुईं।अंतर्कलह इतना बढ़ा  कि छोटा लड़का घर छोड़ चला।बड़े वाले के व्यवहार से घरवाले परेशान होते, पड़ोसी क्षुब्ध रहते।
पुलिस समाधि के फूल चुरानेवालों की तलाश करती हुई उनके घर पहुंची। बड़ा लड़का गिरफ्तार हुआ।अपने कर्मों की चक्की पीस रहा है।बार -बार की पुलिसिया पूछताछ में घरवाले और पड़ोसी पिस रहे हैं। छोटा वाला ' श्री हरि, श्री हरि ' का जाप करता फिरता है।कहता है,"जैसी करनी,वैसी भरनी। समाधि का फूल लाए ही क्यूं?"
"मौलिक एवं अप्रकाशित"

आदाब। गोष्ठी का आग़ाज़ अनुपम रचना से करने के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। रचना को बार-बार पढ़ कर सांकेतिक या समझने की कोशिश रहा हूं। दरअसल सफ़र में हूॅं। कोशिश करता हूॅं कि टिप्पणी कर सकूं।

आपका आभार आदरणीय उस्मानी जी।

गुत्थी आदरणीय मनन जी ही खोल पाएंगे।

आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर

आपका आभार आदरणीय वामनकर जी।

मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार 

आदरणीय मनन सिंह जी

जितना मैं समझ पाई.रचना का मूल भाव है. देश के दो मुख्य दलों द्वारा बापू के नाम को अपने अपने ढंग से भुनाने की कोशिश..देश को घर आँगन का प्रतीक मानते हुए बहुत अच्छे भाव हैं हार्दिक बधाई आदरणीय..

अनकहा आवश्यकता से अधिक हो गया है जो संप्रेषण को बाधित कर रहा है।

आदरणीया प्रतिभा जी,आपका आभार।

आदरणीया प्रतिभा जी आपने रचना के मूल भाव को खूब पकड़ा है। हार्दिक बधाई। फिर भी आदरणीय मनन जी से प्रतिक्रिया अपेक्षित है। सादर

जुतयाई (लघुकथा):


"..और भाई बहुत दिनों बाद दिखे यहां? क्या हालचाल है़ंं अब?"
"तू तो ऐसे पूछ रहा है जैसे तेरे बढ़िया हालचाल हों?" तू भी पिट रहा है और मैं भी? तौर-तरीके अलग-अलग हैं, बस!"
"सही कहते हो! मैं जूतों से ही पिटता रहा और इस घर के लोग जूतों के फ़ैशन और ऑनलाइन शॉपिंग से!"
"हाॅं, पिटाई ही तो है नये फ़ैशन के जूतों से। मुझे भी कभी ऑंगन में, तो कभी स्टोर रूम में और कभी शू-रैक में धर दिया जाता था या डिब्बों में या बोरियों में क़ैद कर दिया जाता था या कभी नये जूतों के नीचे!"
"हमारे कुछ साथी तो रद्दी में चले गए थे या दान वगैरह में। लेकिन सुना है कि उनके भी अंततः बुरे हाल ही हुए सेहतमंद होते हुए में भी।"
"हॉं, हम जूतों की जुताई कम और जुतयाई ज़्यादा ही होती है!"
"लेकिन असली जुताई और जुतयाई तो इस घर के लोगों की होते देख रहा हूॅं भाई होड़बाज़ी, दिखावे, फ़ैशनपरस्ती और ऑनलाइन शॉपिंग से!"


(मौलिक व अप्रकाशित)

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"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार "
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"मेरे कहे को मान देने के लिए आपका आभार।"
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"आशा है अवश्य ही शीर्षक पर विचार करेंगे आदरणीय उस्मानी जी।"
21 hours ago

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"गुत्थी आदरणीय मनन जी ही खोल पाएंगे।"
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"धन्यवाद आदरणीय उस्मानी जी, अवश्य प्रयास करूंगा।"
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
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