For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 174 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा 'जॉन एलिया' साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |

"रूठते अब भी हैं मुरव्वत में''
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन
2122 1212 22/112

बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ मुसद्दस सालिम मख़बून महज़ूफ

रदीफ़ --में

काफिया:- (अत का)
महब्बत, अदावत,इमारत,वहशत,आदत,इनायत आदि ।

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 27 दिसंबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 28 दिसंबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 दिसंबर दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

जनाब समर कबीर 

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 275

Reply to This

Replies to This Discussion

//चूँकि देवनागरी में लिखता हूँ, इसलिए नस्तालीक़ के

नियमों की पाबंदी नहीं हो पाती है।

उर्दू भाषा और लिपि की जानकारी सीमित है। //

आदरणीय आपका उक्त कथन तर्कसंगत नहीं है क्योंकि "नस्तालीक़" यानी "कैलीग्राफी" लेखन या पत्राचार का एक कलात्मक और स्टाइलिश रूप है, इसे सुलेख भी कहते हैं। कैलीग्राफी या नस्तालीक़ में अक्षरों को डिज़ाइन किया जाता है और उन्हें लिखा जाता है। यह फ़ारसी - अरबी लिपी की एक सुलेख शैली है, इसका उपयोग मुख्य रूप से कविता, पांडुलिपियों और कलात्मक लेखन और डिज़ाइन के लिए किया जाता है।...आपके मिसरे में अलिफ़ वस्ल नहीं हो सकता है क्योंकि यह एक ग्रामेटिक मिस्टेक है।  

... और अमित जी ने जो बिंदु उठाया है वह अलिफ़ वस्ल के ग़लत इस्तेमाल का है, इसमें "नस्तालीक़" के नियमों की बात करना बे-मानी है।

साथ ही मेरा मानना है कि आप इस दोष को दूर करने में सक्षम हैं। सादर... 

आदरणीय अमीर जी, मेरा आशय है कि लिख रहा हूँ एक भाषा में और नियम लागू हों दूसरी भाषा के, तो कुछ त्रुटियाँ आ सकती हैं। जैसे कोई स्कूटर के नियम से ट्रक चलाए तो दुर्घटना हो सकती है। हाँ, त्रुटि दूर की जा सकती है और वो मैं कर भी लूँगा। 

आ. संजय जी,/

शाम को पुन: उपस्थित होऊंगा.. फिलहाल ख़त इस ग़ज़ल का काफ़िया नहीं बनेगा ... ते और तोय का फर्क है .

सादर 

आ. भाई संजय जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

आदरणीय लक्ष्मण जी, बहुत धन्यवाद

.
हम भटकते रहे हैं वहशत में
और अपने ही दिल की वुसअत में.
.
याद फिर उस को छू के लौटी है
वो जो शामिल है मेरी आदत में.
.
इक तिलस्मी जहान सा कुछ है
उस की आँखों में उस की सूरत में.
.
सांस दर सांस हम जो मरते हैं
यानी शामिल हैं अपनी मय्यत में.
.
उम्र गुज़री तो ये समझ पाए  
इश्क़ करना था वो भी फ़ुर्सत में.
.
जौन साहिब ये कह गए मिसरा
“रूठते अब भी हैं मुरव्वत में.”
.
अब अँधेरा भी माँगता है दुआ
“नूर” आ जाए मेरी ज़ुल्मत में.   
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, उम्दा ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता हूँ।

हम भटकते रहे हैं वहशत में

और अपने ही दिल की वुसअत में.  "और" की वज्ह से रब्त टूट रहा है। 

"अपने दिल की दक़ीक़ (या अथाह) वुसअत में" जैसा कुछ... से मिसरों में समन्वय के लिए। 

.

याद फिर उस को छू के लौटी है

वो जो शामिल है मेरी आदत में..... बहुत ख़ूब।

.

इक तिलस्मी जहान सा कुछ है

उस की आँखों में उस की सूरत में..... क्या बात है! 

.

सांस दर सांस हम जो मरते हैं

यानी शामिल हैं अपनी मय्यत में.... उफ़! क्या तख़य्युल है। 

.

उम्र गुज़री तो ये समझ पाए  

इश्क़ करना था वो भी फ़ुर्सत में.... या... पहली फ़ुर्सत में ? 

.

जौन साहिब ये कह गए मिसरा

“रूठते अब भी हैं मुरव्वत में.”..... सही है। 

.

अब अँधेरा भी माँगता है दुआ

“नूर” आ जाए मेरी ज़ुल्मत में.....ग़ज़ब।

धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन जी 
और कई तरह से बरता जाता है .. जैसे 
हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे 
कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़ ए बयाँ और ....
यहाँ दोनों मिसरों में और का ही सारा खेल है ... 
मेरे शेर में और वहशत में भटकने वाले भाव के वेर्चुअल नेचर को और पुख्ता कर रहा है. 
आपके सुझाव का शुक्रिया लेकिन मैं मिसरा नहीं बदल रहा. 
पहली फ़ुर्सत में ? 
पहली फ़ुर्सत में कर के क्या स्टॉप कर देना है??
पता नहीं आपने क्या सोच के पहली फ़ुर्सत वाला सुझाव दिया है ..
विस्तृत टिप्पणी हेतु आभार 
सादर 

आदरणीय निलेश जी अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें। अमीर जी का "पहली फ़ुर्सत" वाला सुझाव अच्छा है। 

धन्यवाद आ. संजय जी 

ग़ज़ल

वो दगा दे गए महब्बत में
लुट गए आज हम शराफत में

इश्क की वो बहार बन आये
था रिझाया हमें नफासत में

छोड़ना था तो छोड़ ही जाते
क्यों फसाया हमें मुसीबत में

बेवफा इस तरह न बनते तुम
आज लड़ते नहीं अदालत में

प्यार से कुछ बड़ा नहीं होता
रहते हम प्यार की इमारत में

गिरह
है मज़ा प्यार में मनाने का
रूठते अब भी हैं मुरव्वत में
- दयाराम मेठानी
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर'  जी  अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार करें।सादर "
16 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"धन्यवाद आ. संजय जी "
20 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन जी और कई तरह से बरता जाता है .. जैसे हैं और भी दुनिया में सुखनवर…"
20 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय निलेश जी अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें। अमीर जी का "पहली फ़ुर्सत" वाला सुझाव…"
30 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय लक्ष्मण जी, बहुत धन्यवाद"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमीर जी नमसकार बहुत ही ख़ूब हुई आपकी ग़ज़ल बधाई स्वीकार कीजिये गिरह भी ख़ूब सादर"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय लक्षमण जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों ने बेहतर इस्लाह की है, ग़ज़ल…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"कृपया देखियेगा सादर जान फँसती है जब भी आफ़त में सर झुकाते हैं सब इबादत में 1 और किसका सहारा होता है…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीया रचना जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका, गुणीजनों की सलाह से ग़ज़ल सुधार करती हूँ सादर"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय संजय जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका सुझाव बेहतर हैं सुधार करती हूँ सादर"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमित जी नमस्कार बहुत मुआफ़ी चाहती हूँ आगे से ख़याल रखूँगी, सच है आपने बहुत बार बताया है, इतनी…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमीर जी नमस्कार बहुत बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए, 8th शेर हटा देती हूँ सादर"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service