आदरणीय साथियो,
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आदरणीया प्रतिभा जी, प्रस्तुति नम कर गयी. रक्तपिपासु या हैवान या राक्षस कोई अन्य प्रजाति के नहीं होते. हम-आप जैसे ही मानवों में से कोई निरंकुश निकल आता है. जिसकी प्रवृति ही अमानवीय हुआ करती है, अमानुषिक.
आपकी प्रस्तुति के प्रति हार्दिक धन्यवाद और बधाई.
शुभ-शुभ
"मौलिक व अप्रकाशित"
सादर नमस्कार। प्रदत्त विषय को एक नया अहम आयाम देती बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया विभारानी श्रीवास्तव जी। हैवानियत का एक रूप यह भी। रचना में आपकी क्षेत्रीय बोली का प्रभाव दिखा। अनावश्यक कसावट या काट-छॉंट से पाठकों के लिए रचना का प्रवाह बाधित होता है। मेरे विचार से रचना थोड़ा विस्तार मांग रही है स्पष्ट दृश्यात्मकता हेतु। सादर
बहुत-बहुत धन्यवाद उस्मानी जी
-सहमत हूँ आपकी बातों से : सुधार करने का पूरा प्रयास रहेगा.
कार्यालयों में अपना काम करवाने की एवज में इस तरह का शोषण एक दुखद स्तिथि है। बधाई आदरणीया एक अच्छी रचना के लिये।
आदरणीया विभा रानी जी, प्रस्तुति में पंक्चुएशन को और साधा जाना चाहिए था. इस कारण संप्रेषणीयता तनिक कमतर प्रतीत हो रही है. .
भावांतरों को पाराग्राफ के माध्यम से दिखाना एक आम तरीका है. इसका उपयोग किया जाना उचित होता.
जहाँ तक प्रस्तुति का प्रश्न है, व्याकरण सम्मत भाषा को सदा प्रश्रय दें यदि वह किसी पात्र के कथोपकथन का हिस्सा न हो तो.
जैसे, नकल स्त्रीलिंग होने से उसके नकल नहीं, उसकी नकल होगा.
मेज कुर्सी लगा हुआ ... नहीं, मेज कुर्सियाँ लगी हुईं बहुत बड़ा कमरा था.
आपके अनुमति के स्थान पर आपकी अनुमति होना चाहिए.
बाकी, अन्य विद्वान-सदस्य प्रस्तुति पर अपनी बात रखें. मैं भी सीख सकूँगा.
सादर
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