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आपने जो सुधार किया है, वह उचित है, भाई बृजेश जी।
किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने
ख़मोश रात बिताएं उदास हैं कितने
साथ ही, यह सोचने-विचारने के लिए कुछ और आयाम भी प्रशस्त करता दीख रहा है। जैसे, उला-सानी मिसरे को, देखिए, यदि जक्स्टापोज किया जाय -
खमोश पल ये बताएँ, उदास हैं कितने
मगर कहाँ ये सुनाएँ, उदास हैं कितने
अर्थात, इस पर काम करते रहें, जबतक कि सर्वमान्य मिसरे और आश्वस्तिकारी मतला हो नहीं जाता
शुभ-शुभ
अनुज बृजेश
किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने
ख़मोश रात बिताएं उदास हैं कितने ... ठीक लग रहा है , मुझे भी एक हल सूझ है , अगर ठीक लगे तो
किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने
हमी को हम ही बताएं उदास हैं कितने --- अगर जो आप कहना चाहते हैं उसके करीब लगे तो विचार कर सकते हैं
आदरणीय सौरभ सर ओ बी ओ का मेल वाकई में नहीं देखा माफ़ी चाहता हूँ
आदरणीय नीलेश जी, आ. गिरिराज जी ,आ. धामी जी
मतले को ऐसा कहें तो?
किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने
ख़मोश रात बिताएं उदास हैं कितने
ओबीओ का मेल चेक करें
आदरणीय सौरभ सर सादर नमन....दोष तो दोष है उसे स्वीकारने और सुधारने में कोई संकोच नहीं है।
भाई बृजेश जी, आपको ओबीओ के मेल के जरिये इस व्याकरण सम्बन्धी दोष के प्रति अगाह किया था. लेकिन ऐसा लगता है आपने मेल देखा ही नहीं होगा.
प्रयासरत रहें
शुभ-शुभ
आदरणीय धामी जी स्नेहिल सलाह के लिए आपका अभिनन्दन और आभार....आपकी सलाह को ध्यान में रखते हुए जल्द ही कुछ सुधार का प्रयास करूँगा।
आदरणीय गिरिराज जी उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत-बहुत आभार और नमन करता हूँ...आपसे आदरणीय नीलेश जी आदरणीय धामी जी से पूर्णतया सहमत हूँ बस थोड़ी उत्सुकता है जिसे पहले कमेंट में लिखा है।
आदरणीय नीलेश जी सर्व प्रथम रचना पटल पे उपस्थिति के लिए आपका हार्दिक आभार....वैसे ये दोष इतना बारीक़ नहीं है कि नज़र न पड़े लेकिन सच यही है कि आपके इंगित करने पे ही ध्यान में आया।
आ. भाई वृजेश जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
मतले में यदि उन्हें सम्बोधित कर रहे हैं तो "हवाओ" करने से दोष हट जायेगा। यदि इनके उदास होने की बात कर रहे हैं तो जैसे गुणीजन कह रहे हैं क्रिया में लिंग दोष आ रहा है देखिएगा।
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