भुल्ली के वी कदीं कोई, दिल नहियों तोडना
रुस्सयाँ नूँ हत्थ पैर, फड़ी के मनौणा जी !
मत्ती देया मारेया वे, गल्ल कीहाँ भुल्ली तींजो
जाणा ओनू पैणा एथों, जेने इथे औणा जी
कच्ची मिट्टी दा है बावा, इक्क दिन खुरी जाणा
चार दिनां दा ही बंदा, इथे है परौणा जी ! .
रुक्खी सुक्की खाईके ते, पाणीए दा घुट्ट पीके,
बद्दलाँ दी खेसी लैणी, भोईं दा बछौणा जी !
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सरलार्थ :
भुल्ली के वी कदीं कोई = भूल कर भी कोई
दिल नहियों तोडना = दिल नहीं तोडना
रुस्सयाँ नूँ हत्थ पैर = रूठे हुयों को हाथ पाँव
फड़ी के मनौणा जी = जोड़ कर मना लेना !
मत्ती देया मारेया वे = अरे मंद्बुधि
गल्ल कीहाँ भुल्ली तींजो = ये बात कैसे भूल गया
जाणा ओनू पैणा एथों = उसको यहाँ से जाणा होगा
जेने इथे औणा जी = जो यहाँ आया है
कच्ची मिट्टी दा है बावा = कच्ची मिट्टी का खिलौना है
इक्क दिन खुरी जाणा = एक दिन गल जाएगा
चार दिनां दा ही बंदा = इन्सान चार दिन का
इथे है परौणा जी = महमान है यहाँ ! .
रुक्खी सुक्की खाईके ते = रूखी सूखी खाकर
पाणीए दा घुट्ट पीके = पानी का घूँट भरकर ,
बद्दलाँ दी खेसी लैणी = बादलों की चादर ओढ़ ले
भोईं दा बछौणा जी = धरती को बिस्तर बना ले !
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सराईकी घनाक्षरी)
नीत कूँ मुराद लग्गे, चंगा भला पता तेकूँ ,
फेर बावजूद हुँदै, नीत हे बुरी क्यऊँ !
मेंडे हमसाये तेकूँ, चिढ़ हिस गल्ल कोलूँ
तेंडे घर भौख़ बड़ी, मेंडे घर ख़ुशी क्यऊँ !
असां ते उड़ान्दे रहे, चिटड़े कबूतराँ कूँ
तेंडी आसतीने सदा, लुक्की हे छुरी क्यऊँ !
याद रक्खीं हेक्क दे डू, पैलां तेंडे थी वंजे ने ,
बीया टोटे थीसी तेंडे, जिद्द हे फड़ी क्यऊँ !
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सरलार्थ :
नीत कूँ मुराद लग्गे = जैसी नीयत वैसी मुराद होती है
चंगा भला पता तेकूँ = याह बात तुम भली भांति जानते हो ,
फेर बावजूद हुँदै = पर उसके बावजूद भी
नीत हे बुरी क्यऊँ = तुम्हारी नीयत में खोट क्यों है ?
मेंडे हमसाये तेकूँ = मेरे पडोसी तुझको
चिढ़ हिस गल्ल कोलूँ = इस बात की ईर्ष्या है
तेंडे घर भौख़ बड़ी = कि तुम्हारे घर में तो भूख है
मेंडे घर ख़ुशी क्यऊँ = मेरे घर में ख़ुशी क्यों है
असां ते उड़ान्दे रहे = हम तो उड़ाते रहे
चिटड़े कबूतराँ कूँ = सफ़ेद कबूतर
तेंडी आसतीने सदा = मगर तेरी आस्तीन में
लुक्की हे छुरी क्यऊँ = खंजर क्यों छुपा रहा
याद रक्खीं हेक्क दे डू = याद रख तुम्हारे दो टुकड़े
पैलां तेंडे थी वंजे ने = पहले ही हो चुके हैं
बीया टोटे थीसी तेंडे = अब और टुकड़े हो जायेंगे
जिद्द हे फड़ी क्यऊँ = ये जिद्द क्यों पकड़ी है ?
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आदरणीय योगराजभाई साहब, आपकी मानसिक और भाषाई प्रौढ़ता तथा दत्त-चित्त संलग्नता को मेरा सादर अभिनन्दन.
कमाल की बात यह है कि प्रत्येक कवित्त अपनी भाषा की तासीर के अनुरूप विस्तारित हुआ है. ..
जहाँ पंजाबी घनाक्षरी से पंजाब की मिट्टी का ओज छलक-छलक पड़ रहा है, तो, हरियाणवी घनाक्षरी उस समाज के विद्रुप व्यवहार और वहाँ की हृदयद्रावक विड़ंबना पर खूब मुखर है. हिमाचली घनाक्षरी उस मिट्टी-समाज में व्यापे परस्पर सम्बन्ध पर सुझावभरे बोल कहती दीख रही है तो आखिरी घनाक्षरी ने जिस तेवर को अपनाया है उसमें अपने राष्ट्र की आवाज़ अनुगुँजित हो रही है.
आपकी सफल साधना पर मुझे अतिशय गर्व की अनुभूति हो रही है. पुनश्च बधाई.
पुछल्ला - अब हम समझे आपके चुप होने का मतलब.. आपकी चुप तो बेहिसाब कमाल करती है..
प्रभाकर जी!
सादर वन्दे मातरम.
आपकी घंक्षारियां अपनी मिसाल आप हैं. हम कलमकारों को इसी तरह एकता की मशाल जलानी है. हिंदी, बुन्देली, भोजपुरी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, निमाड़ी, राजस्थानी में मैंने भी कुछ कोशिश की है. देखिएगा. आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है. हिंदी का हर रूप मिलकर इसे विश्व भाषा बनाएगा.
//हम कलमकारों को इसी तरह एकता की मशाल जलानी है. हिंदी, बुन्देली, भोजपुरी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, निमाड़ी, राजस्थानी में मैंने भी कुछ कोशिश की है. देखिएगा. आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है. हिंदी का हर रूप मिलकर इसे विश्व भाषा बनाएगा.//
आचार्यवर, आपके इस कथन को मेरा हार्दिक अनुमोदन है.
आदरणीय योगराज सर,
इस प्रकार चार भाषाओं में एक से बढ़कर घनाक्षरी छंद प्रस्तुत करना, विभिन्न भाषाओं पर आपकी सामान पकड़ को परिलक्षित करता है. (वस्तुतः 'सराईकी' तो मैंने पहली बार सुना). बाकी, जहां आपकी कोई रचना हो वहाँ गुणवत्ता तो स्वतः ही आ जाती है. उदाहरणार्थ-
//रुक्खी सुक्की खाईके ते, पाणीए दा घुट्ट पीके,
बद्दलाँ दी खेसी लैणी, भोईं दा बछौणा जी !// - एकदम सीधी-सादी बात और वो भी इतने सरल शब्दों में.
कुल मिलाकर यही कहूँगा... "आनंद आ गया..!!"
सादर
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