For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"यादें" (आईये लिखे कुछ ऐसी यादों को जो भूलता ही नहीं)

हमारे जीवन मे बहुत सारी ऐसी घटनाये हो जाती है जो भुलाये नहीं भूलती, और कभी सोच सोच कर आँखों मे आंशु तो कभी होंठो पर मुस्कान आ जाती है, ये यादें बचपन, जवानी या बुढ़ापा किसी भी समय की हो सकती है, बाल काल की नादानीया, युवा काल की गलतिया या कुछ अच्छाईया अथवा और भी ऐसी यादें जिसे बाटने का जी करे,


तो आइये ना , ऐसी ही कुछ यादों को ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के बीच बाटें.........

Views: 2679

Reply to This

Replies to This Discussion

जिन्दगी के मोड़ पर एक से एक लोगो से मुलाक़ात होती है , कुछ अच्छे और कुछ बुरे , पर मुझे लगता है कि जब मैं किसी का कभी नहीं बिगाड़े रहूँगा तो मेरा भी नहीं बिगड़ सकता , पुनः एक शिक्षाप्रद संस्मरण प्रस्तुत किये है मनोज भैया ,धन्यवाद,
मनोज भईया आज आप प्रलयंकर की कहानी बता ही दिये बहुत बढ़िया , आप की लिखने की जो शैली है गजब की है यदि शुरू कर दे कोई पढ़ना तो बीच मे छोड़ ही नहीं सकता, आप सही कहे ,बचपन की छोटी छोटी बातो को दिल से लगा कर नहीं रखा जाता है,
पर कुछ घटना ऐसी हो जाती है की जिसे चाह कर भी भुलाया नहीं जा सकता है, मैं क्लास ४ मे पढ़ रहा होऊंगा तब की बात है एक मेरे सबसे प्यारे दोस्त थे और उस समय एक ही थे जो बहुत ही करीब थे और कुछ ज्यादा ही पैसे वाले घर के थे, उनके पापा की बहुत बढ़िया जनरल स्टोर की दूकान थी, हम लोग प्रतिदिन एक साथ ही स्कूल आते जाते थे, एक दिन पता नहीं क्या हुआ की वो गाली देते हुये मुझसे बोले कि आज के बाद मुझसे बोलना नहीं, मैं सोचा शायद मजाक कर रहे होंगे, मैं एक अन्य लड़के से पुछवाया कि पूछो तो कही मजाक तो नहीं कर रहे हैं, वो बोले कि मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ, और कोई कारण भी नहीं बताये, मैं घर जाकर खूब रोया और पापा से बोला कि ऐसी ऐसी बात है, पापा उनके दूकान पर जाकर सारी बात बोले पर उनके पापा कभी पहल नहीं किये कि इन दोनों मे दोस्ती हो जाये शायद वो भी नहीं चाहते थे, खैर आज तक लगभग २५ सालो से बोल चाल बंद है सामना सामनी होती भी है पर बात नहीं होती, वो अपने पापा वाली दूकान चलाते हैं , मजे कि बात तो ये है कि मुझे आज तक वो कारण नहीं पता चल सका |
आज मैं बहुत खुश हूँ,आख़िर क्यूँ नही,आज हमने एक जंग जीत ली है, समाज के ठेकेदारों से, जो अपने आगे किसी की चलते हुए नही देखना चाहते थे,मगर हमारा भरोसा अभी क़ानून पर से नही उठा है,हुआ ये है की ये मेरे परिवार कॅ नही एक सरकारी कर्मचारी के हक की लड़ाई थी, आख़िर तीन साल बाद हाई कोर्ट के फ़ैसले से हमे न्याय मिला,बात सिर्फ़ इतनी नही है ,पूरा वाक़या कुछ इस तरह है,-तब सन 2007 का मार्च का महीना था,बिहार मे उस समय पंचायत शिक्षकों की बहाली जोरों पर थी,मेरी अम्मा (चाची) भी एक योग्य उम्मीदवार के रूप मे अपना फॉर्म भरा , तभी से हमारे साथ लड़ाई की शुरुआत हो चुकी थी,उन्होने लगभग 8 पंचायत मे फॉर्म भरा था, एक पंचायत मे पंचायत समिति के पति ने बहाली कराने के एवज मे मुझसे 50000 रुपय की माँग की जिसको मैने नकार दिया,मामला बहुत आगे बढ़ा ,देख लेने तक की बात आ गयी थी, मैने भी ठान ली थी की अगर हमारी बहाली नही होगी तो हम कोई और भी बहाली नही होने देंगे वहाँ से, क्योंकि हमारा नंबर सबसे उपर था,वही हुआ,इसके वजह से रंजिश आज तक भी है,फिर एक और जगह बात चली तो वहाँ से भी डिमांड हुई मगर रकम का खुलासा नही हुआ,वहाँ का विरोध तो पूरे प्रखंड मे चर्चा का विषय रहा था,फिर बात आकर फाइनल हुआ हमारी ही पंचायत मे ,मगर बात यहीं ख़तम नही हुई , मगर कहानी यहीं से अभी शुरू हुई थी,क्योंकि हमारे पंचायत मे पंचायत सचिव थे सत्यनारायण राय जो एक नंबर के घूसखोर, गिरी हुई प्रवृति के, और नमक हरामों की लिस्ट मे सबसे उपर गिने जाते हैं,उन्होने सबसे पहले नंबरिंग के आधार पर जब देखा की हमलोगों का नंबर सबसे उपर था तो उन्होने एक नई चल चली,हमसे सीधे तौर पर तो वो घुस माँग नही सकते था तो और हमलोग घुस देने वाले नही हैं तो उन्होने एक फर्जी लेटर बनाकर बैक डेट मे मेरे घर बाइ पोस्ट मेरे घर भेज दिया , वो भी बिना किसी पते के की हम कहाँ जाकर किसको रिपोर्ट करें,मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था,हमने वो लेटर लेकर प्रेस मे छपवा दिया ,अख़बार मे ये खबर देखते ही बेचारे सत्यनारायण राय जी की नानी याद आ गयी,और उन्होने आनन फानन मे हमसे संपर्क किया , फिर बहाली की सारी प्रक्रिया हमलोगों ने पूरी कर ली, हमारी अम्मा ने 9 मार्च 2007 को ग्राम पंचायत मलौर के प्राथमिक विद्यालय भैरोदिह मे सहायक शिक्षिका के तौर पर योगदान कर लीं,अब फिर से सब कुछ ठीक तक चल रहा था की एक बार प्रकृति का कहर हमारे परिवार पर बिजली बनकर गिरा,शायद इस परिवार की खुशी भगवान को भी मंजूर नही थी ,हम तबाह हो गये थे क्यूंकी जिस अम्मा की हमने इतनी जद्दोजहद से बहाली कराई थी वो अचानक हमे छोड़कर स्वर्ग सिधर गयीं, उनको मष्टिसकघात (ब्रेन हैमरेज)हो गया और वो 8 जून 2007 को सिर्फ़ तीन महीने नौकरी करने के बाद ही, ज़िंदगी शुरू होने से पहले ही वो हमें और हमारे परिवार को बेसहारा छोड़ गयी,मैं अपनी माँ से ज़्यादा उनको मानता था , क्योंकि उन्होने मुझको अपना बेटा मान लिया था,सोचिए जिस इंसान ने मुझको उंगली पकड़कर चलना सिखाया,जिन्होने मुझे पढ़ना लिखना सिखाया, जिन्होने मुझे काबिल बनते देखने का सपना संजोया, उस इंसान के अचानक बिछड़ने का दर्द कैसा होगा, वो दर्द आज भी मैं सह रहा हूँ,इस वजह से मैं पूरी तरह से टूट गया था,उस समय हम लोगों को कुछ भी नही सूझ रहा था,फिर धीरे धीरे सब कुछ ठीक हुआ तब हमलोगों ने अम्मा के 3 महीने के कार्यकाल का बकाए वेतन के लिए आवेदन दिया,बस मामला यहीं से उलझता चला गया,उस पंचायत सेवक ने हमें बुरी तरह से उलझा दिया , फिर अनेक घोटालों मे नाम आने पर मुखिया के सिफारिश पर उसकी बदली हो गयी,अब उसके पास बहाली के कागजात रह गये थे जो उसने लौटने से सॉफ इनकार तो नही किया मगर पेंच पर पेंच लगाते चला गया,जो अभी तक नही लौटाया है,अब नये आए पंचायत सचिव के हाथ बाँध गये थे बिना उन कागज़ातों के| मगर हम भी कहाँ हार मानने वाले कहाँ थे , हमने डी. एस. ई. से लेकर हर उस अधिकारी से से संपर्क किया जो इस मामले से संबंधित था, मगर किसी ने भी मदद नही किय.इस दरम्यान हमारी लड़ाई बी. डी. ओ (चरपोखरी) से भी हो गयी, बहुत भयंकर लड़ाई हुई थी,खून की गर्मी की वजह से मैने खूब उल्टा सीधा सुनाया,फिर बात न्यायालय तक जा पहुँची,फिर तीन साल बाद जाकर इस साल 25 मई 2010 को हाई कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक फ़ैसला हमारे पक्ष मे सुनाया,अब हमारी लड़ाई है उनके जगह पर खाली हुए स्थान पर एक नये बहाली की दुआ है रब से यही की इस फ़ैसलें पर ज़्यादा समय ना लगे वरना फिर से हमे अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा , इंसाफ़ के लिए, और कल जाकर मेरी अम्मा के तीन महीने के कार्यकाल का बकाया वेतन हमारे हाथ मे आ गया ,हमे थोड़ी खुशी के साथ गम भी है,आख़िर हमने अपने परिवार का वो हीरा खोया है जिसकी भरपाई मेरे ज़िंदगी मे कोई नही कर सकता , यहाँ तक की भगवान भी प्रकट होकर वरदान माँगने को कहें तो मेरा पहला वरदान यही होगा की मेरी अम्मा को मुझे लौटा दो अगर लौटा सकते हो तो,फिर हमारे पास तो सब कुछ है ही, दोनो हाथ से मेहनत करके हम अपने परिवार के गुज़ारे भर का खर्चा तो हम निकाल ही लेंगे,हमने जंग तो जीत लिया मगर अभी उस पंचायत सेवक को सबक सीखना बाकी है,मुखिया से हमे कोई शिकायत नही था और ना ही है क्योंकि उसने हमारी यथासंभव मदद की है, अब आप ही बताइए उस पापी को क्या सज़ा देना सही रहेगा ? उस पंचायत का पता -पंचायत -मलौर,प्रखंड-चरपोखरी,जिला-भोजपुर,(बिहार)802223
अभिषेक जी सलाम है आपके परिवार के जज्बे को जो भ्रष्टाचार के आगे घुटना नहीं टेका और लड़ाई लड़ी, यह लड़ाई और जीत बहुतो के लिये प्रेरणा का काम करेगा,
अभिषेक जी बड़ा ही आसान रास्ता था उस पंचायत सचिव को सबक सिखाने का, आजकल बिहार मे निगरानी विभाग बहुत ही अच्छा काम कर रहा है , वो बकाया राशि को देने के लिये पैसा चाह रहा था तो निगरानी से मिलकर बहुत आसानी से पकड़वा सकते थे ,
दूसरा भ्रष्टाचार से लड़ने हेतु आज हमारे हाथ मे बहुत ही अच्छा हथियार मिल गया है "सुचना का अधिकार" जिसके द्वारा बहुतो को सबक सिखाया जा सकता है,
जी धन्यवाद ,हमने इस बिंदु पर भी हमने सोच रखा था , मगर वो बहुत बड़ा धूर्त था , वो समझ गया था की हम उसे फसाना चाहते हैं इसकी वजह से वो तीन महीने तक भूमिगत हो गया था, फिर जो बी. डी. ओ था वो भी बहुत बड़ा घूसखोर था,उसके पास कम्प्लेन करने गये तो वो भी उसका ही फेवर कर रहा था , अंततः हमने कोर्ट का सहारा लिया और विजयी हुए ,
ढेरों यादें हैं ए.वी. एम्. के इस लोगो को देख पुराने दौर के फ़िल्मी परदे की याद ताज़ा हो आयी .पहली बार ए.वी. ऍम. का पूरा अर्थ जाना .स्व. मयप्पन को श्रद्धांजलि ! और आपको धन्यवाद इस यादगार सूचना को शेयर करने के लिए .
*
ख़याल बढ़िया है l
बागी जी , मैं तो यहाँ आकर इस पेंटिंग में खो सा गया .अपने आप में यादों का मंज़र यही है. अब टी. वी. और अखबारों में तमाम तस्वीरों में कितनी हैं जो हमारा ध्यान खींचती हैं ,और हमें ले जाती हैं ,ख्यालों और यादों की दुनिया में.अच्छी पहल है. मैं भी फुर्सत निकालता हूँ ,यादों की डोंगी के सफ़र पर निकलने को.
डोंगी से मुझे अपना गाँव याद आ गया. बरसात में गाँव की नहर नदी का रूप ले लेती थी . हम छोटे बच्चे खूब धमा चौकड़ी करते. छोटी छोटी चमकीली मछलियाँ पकड़ते. उन्हें घर में लाकर बर्तन में रखते .माना ये ठीक नहीं था पर बचपन को इतनी समझ कहाँ थी .अब शहर में गंगा तो है पर खुशियों के वो छोटे छोटे चहक भरे पल कहाँ?
अरुण भाई बिलकुल सही फरमा रहे है आप, बच्चपन की बाते सोच सोच मन ही मन मे हसी आती है, वापस पुनः उसी दुनिया मे जाने की इच्छा होती है |
वोह ! कोई लौटा दे मेरे बीते हुये पल को .........पर यह संभव नहीं होता शारदा बहन, यें यादें कभी कभी तो सोने भी नहीं देते, एक फ़िल्म सा चलने लगता है आखों के सामने, आपकी यादों को पढ़कर बहुत बढ़िया लगा |
वन्दे मातरम दोस्तों,
यादों की इस कड़ी में मैं भी कुछ यादे आपके साथ बांटना चाहता हूँ .....
बात है 11 सितम्बर 1992 की ....... शाम के लगभग चार बजे का समय था ... मैंने देखा की न्यू उस्मान पुर (जहाँ मैं रहता हूँ उस जगह का नाम है) की गली न.- 12 में एक लड़का घायल अवस्था में पड़ा है... कोई भी उसकी मदद नही कर रहा था ....... उसके सिर में कुछ बदमाशों ने केंची और पेट में चाकू घोंप दिया था ...... मेरे खून में फटे में टांग अड़ाने का शायद कोई कीड़ा है ... मैंने बिना आगा पीछा सोचे 100 न. पर फोन कर दिया .... उस लडके को पानी पिलाकर उसे होश में लाने का प्रयत्न किया ...... कुछ ही मदर में पुलिस आ गई और पुलिस की जिप्सी से ही उस घायल युवक को गुरु तेग बहादुर अस्पताल ले जाया गया.......
मुझे नही मालूम उसके बाद क्या खिचड़ी पकी मगर रात तकरीबन दस बजे मुझे थाने बुलाया गया, थाने पहुंच कर मुझसे एस आई शिव नाथ त्यागी जी द्वारा कहा गया की गुप्ता जी आपको इस क्षेत्र के बारे में काफी जानकारी है ....... इस युवक ने कुछ नाम बताये हैं शायद इन लोगों तक आप हमे पहुंचा सके ... मैं इनमे से कुछ लोगों को जानता था (मेरा जन्म ही न्यू उस्मान पुर का है और मैं उस समय सोसलिस्ट यूनिटी सेंटर(SUCI)  का सक्रिय कार्यकर्ता था और और न्यू उस्मानपुर क्षेत्र में मेरी अच्छी पकड़ के कारण ) इन बदमाशों में से कुछ को रात भर की मेहनत के बाद पुलिस ने पकड़ भी लिया इस प्रक्रिया में सुबह के पांच बज गये थे.... मुझे पुलिस चाय और नास्ता कराया इस दौरान एस आई शिव नाथ त्यागी जी कहीं निकल चुके थे .... मैं चाय पीकर ठाणे से बाहर निकलने लगा तो गेट पर खड़े संतरी ने मुझे बाहर नही निकलने दिया गया..... पूछने पर उस संतरी ने मुझे कहा की आप का नाम 308 के इस मुकदमे में दर्ज है ... आप बाहर नही जा सकते ......
मुझे काटो तो खून नही था ........ पुलिस का ये रूप देहली जैसे शहर में मेरे लिए एकदम नया था...... मेरे लिए सिफारिशों की झड़ी लग गई (यहाँ तक की तत्कालीन MLA भीष्म शर्मा जी ने मेरे लिए बहुत मेहनत की) मगर मुझे पुलिस की मेहरवानी से निर्दोष होते हुए भी पहली बार तिहाड़ जेल के दीदार का मौका मिला .........
हालांकि सच कभी हारता नही है इस बात को मुझे जानने का पहला मौका भी इसी वाकये के दौरान मिला जब मेरे वकील राम वीर गोस्वामी ने इस केस के वास्तविक गवाह वह घायल युवक नरेंद्र वर्मा के मुंह से ये कहलवा दिया की मुझे मरने वाले राकेश गुप्ता नही है पुलिस ने इन्हें वास्तविक अपराधियों को बचाने के लिए फंसाया है .......... और तीसरे ही दिन मुझे  जमानत मिल गई ... पुलिस कोर्ट में मेरे खिलाफ कुछ भी साबित नही कर सकी और मुझे इस केस से लगभग पांच साल बाद बाइज्जत रिहा कर दिया गया और पुलिस को कोर्ट से लताड़ खानी पड़ी ..........
खैर ये तो हुई एक घटना .......... मगर इस घटना ने मेरे जीवन की दशा  और दिशा दोनों ही बदल दी .......   11 सितम्बर 1992 के उस दिन के बाद से ही न्यू उस्मान पुर पुलिस सहित देहली पुलिस को मेरे द्वारा तमाम मोकों पर शिकस्त का सामना करना पड़ा और इस लड़ाई में मेरा साथ दिया मेरी कलम और कानून की ताकत और साथ ही मेरे कुछ पुलिस के ही दोस्तों ने पुलिस की कमजोरियां बताई जो मेने अपने लिए ताकत के रूप में इस्तेमाल किया ........ साथ ही इस लड़ाई में मेरे साथ क्षेत्रीय जनता और मेरे दोस्तों और परिजनों ने मेरा भरपूर साथ दिया ............ इस लड़ाई के चलते पुलिस  के एक आला अफसर ने मुझे बुला कर कहा की गुप्ता जी एक व्यक्ति अगर गलती करता है तो उसके लिए पूरा विभाग कभी दोषी नही हो सकता ...... आपको इस्वर ने एक आला दर्जे का दिमाग दिया आप अगर अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल समाज के लिए करें तो आप समाज से गंदगी साफ़ करने में बेहद कामयाब हो सकते हैं ..........
इसके बाद 08 अक्टूबर 2008  को मैंने एक एन जी ओ संघर्ष जन कल्याण समिति का गठन किया और उसके बाद क्षेत्र में अपराध और अपराधियों साथ ही भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मुहीम चलाई जो आज तक जारी है.........
हालांकि आज मेरे जीवन में बहुत कुछ बदल गया है मगर नही बदला तो अन्याय के खिलाफ (खास कर खाकी के द्वारा) कभी भी किसी के साथ भी कुछ गलत होने पर उसके खिलाफ खड़े होने का जज्बा .......... 
वाह राकेश जी ! हिम्मत इसी को कहते हैं और आप वास्तव में एक योद्धा हैं . आपके बारे में जान के अच्छा लगा . खुश हूँ की आज भी आप जैसे लोग हैं जो दूसरों के लिए कुछ कर गुज़रने का जज़्बा रखते हैं.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
2 hours ago
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
21 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक स्वागत मुहतरम जनाब दयाराम मेठानी साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया उम्दा और भावपूर्ण प्रेरक रचना।…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हाइमन कमीशन (लघुकथा) : रात का समय था। हर रोज़ की तरह प्रतिज्ञा अपने कमरे की एक दीवार के…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service