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आँगन का एक छोटा सा
पौधा
जो बढ़ना चाहता है
छटपटाता है बढ़ने को
पर
बड़े पेड़ का बडप्पन
रोकता है उसे
टोकता है उसे
न बढ़ने देने का डर
देता है उसे
हौसला व चाहत फिर भी
जीवित है उसमे
आगे बढ़ने का साहस
निहित है उसमे
कुछ करने ललक है उसमे
एक उम्मीद
उस छोटे से पौधे की
कि
एक दिन वह छोटा सा पौधा
भी
उस बड़े से पेड़ से कही
आगे होगा
वो छोटा सा पौधा
तो बढा जा रहा है
खड़ा हो रहा है
वो छोटा सा पौधा.......



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Comment

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Comment by Rash Bihari Ravi on September 5, 2011 at 4:59pm

bahut kgubsurat soch

Comment by Ravi Prabhakar on August 22, 2011 at 8:04pm

Afreen!

Comment by Yogyata Mishra on August 22, 2011 at 2:59pm

thnku so mch...bas koshish me kuchh likh pane ki


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2011 at 12:47pm

उम्मीद की कोंपल यदि उग गयी है. यह भरोसे के लिये बहुत है.  अच्छी कविता. शुभकामनाएँ.

 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 22, 2011 at 11:03am

आगे बढ़ने की चाह, कुछ ह्रदय में असमंजस, दिल में कुछ दबा दबा सा डर, किन्तु यह हमेशा याद रखने की जरुरत कि कभी ना कभी वो बड़ा पेड़ भी छोटा पौधा हुआ करता था, और बेतरतीब बढ़ते शाखाओं को आज भी काट छाट किया जाता है, जरुरत बढ़ते रहने की है, समय खुद बड़ा कर देगा |

 

एक खुबसूरत और संदेशपरक अभिव्यक्ति हेतु बधाई आपको |

Comment by आशीष यादव on August 20, 2011 at 11:53pm

सच यही कविता है.
किस तरह से व्यंजना दी जाती है, इस रचना से मिलती है|
नमन है आपकी लेखनी को.

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