सभी साहित्य प्रेमियों को
प्रणाम !
साथियों जैसा की आप सभी को ज्ञात है ओपन बुक्स ऑनलाइन पर प्रत्येक महीने के प्रारंभ में "महा उत्सव" का आयोजन होता है, उसी क्रम में ओपन बुक्स ऑनलाइन प्रस्तुत करते है ......
"OBO लाइव महा उत्सव" अंक १२
इस बार महा उत्सव का विषय है "बचपन"
आयोजन की अवधि :- ७ अक्तूबर २०११ दिन शुक्रवार से ०९ अक्तूबर २०११ दिन रविवार तक महा उत्सव के लिए दिए गए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना काव्य विधा में स्वयं लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है |
उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है ...इस १२ वें महा उत्सव में भी आप सभी साहित्य प्रेमी, मित्र मंडली सहित आमंत्रित है, इस आयोजन में अपनी सहभागिता प्रदान कर आयोजन की शोभा बढ़ाएँ, आनंद लूटें और दिल खोल कर दूसरे लोगों को भी आनंद लूटने का मौका दें |
अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन से जुड़े सभी सदस्यों ने यह निर्णय लिया है कि "OBO लाइव महा उत्सव" अंक १२ जो तीन दिनों तक चलेगा उसमे एक सदस्य आयोजन अवधि में अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ ही प्रस्तुत कर सकेंगे | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध और गैर स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकेगा, यह अधिकार प्रबंधन सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा और जिसपर कोई बहस नहीं की जाएगी |
( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो ७ अक्तूबर दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा )
यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें |
( "OBO लाइव महा उत्सव" सम्बंधित पूछताक्ष )
मंच संचालक
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भाई सादर, बहुत सधे में--
क्या-क्या ना कह डाला
मन में सादर भाव भरे हैं
नयन में अश्रु-माला
सच, जिन बच्चों की रातों की
भोर न अबतक आयी
सुख-सुविधा, उन्नति-विकास की
बातें छलना भाई...
अति उत्तम रचना आदरणीय डॉ ब्रजेश त्रिपाठी जी
आद डा. साहब... बहुत बेधक...
इस मर्मस्पर्शी यथार्थपरक संवेदनशील कविता के लिए सादर साधुवाद स्वीकारें....
आज के यथार्थ को बेबाक अभिव्यक्ति देती आपकी रचना अत्यंत मर्मस्पर्शी बन पड़ी है आदरणीय डॉ. त्रिपाठी. जिस तरह से आपने अभावग्रस्त वर्ग के बचपन को रेखांकित किया है, उसके लिए आपकी रचना को नमन करता हूँ. तह-ए-दिल से बधाई स्वीकार कीजिये
बहुत ही कड़वा सच कहती इस बेबाक प्रस्तुति के लिए सादर साधुवाद स्वीकार कर्रें डॉ त्रिपाठी जी !
सही कहा आपने आदरणीय
//कन्या-शिशु बे मौत पेट में
एक अजीब सी स्थिति निर्मित हो जाती है जब देखता हूँ कि आप सब तो इस कदर समय दे रहे हैं कि पोस्ट 50 पृष्ठ से उपर पहुँच चुकी है और मैं रचना पोस्ट करने के बाद एक अभद्र की तरह अनुपस्थित हूँ। बार-बार क्षमाप्रार्थी हूँ इस स्थिति के लिये और इस से बचने कके लिये ही पिछले कुछ आयोजनों से दूर रहा। मेरा इतना दायित्व तो अवश्य बनता है कि किसी रचना पर चलने वाली परस्पर चर्चा से भले ही अनुपस्थित रहूँ लेकिन नयी आने वाली रचनाओं पर अपनी बात अवश्य रखूँ। इतने पृष्ठों में नयी आने वाली रचना को तलाशना भी समय मॉंगता है। शायद अंत में प्रकाशित होने वाली समग्र पोस्ट पर कुछ कह सकूँ।
ओबीओ के आयोजन (नों) को मिले प्रतिसाद से मन सुखी है न, आदरणीय !
भगवान् ने कहा भी है न- शनैः शनैः उपरमेत बुध्या धृति गृहीतया .. . :-))))
(अपनी बुद्धि और धैर्य को धारे व साधे हुए धीरे-धीरे ऊपर की ओर अग्रसरित होते चलो..)
बहुत खूब कहा आदरणीय सौरभ जी
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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