आज की तारीख में नेट पर समाज के हर क्षेत्र में ऐसा बहुत कुछ सकारात्मक हो रहा है जो अधिक नहीं मात्र दसेक वर्ष पूर्व इस तरह की गतिविधियों के बारे में सोचा तक नहीं जा रहा था. साहित्य-सृजन के क्षेत्र में जो गति इधर के समय में आयी है वह स्थापित और नव-हस्ताक्षरों दोनों को एकसाथ अभिभूत करती है. भले ही अधिकांश रचनाओं का मौज़ूदा स्तर बहस का मुद्दा है, लेकिन इस बात से कोई गुरेज़ नहीं कि इसी दौर में ऐसी-ऐसी इलेक्ट्रॉनिक पत्रिकाएँ और ऐसे-ऐसे ब्लॉग्स हैं जहाँ स्तरीय साहित्य पर विशेषकर हिन्दी साहित्य में बहुत गंभीर काम हो रहे हैं जहाँ रचनाकर्म और भाव-शब्द सृजन का अन्यतम वातावरण बन और व्याप रहा है.
इलेक्ट्रॉनिक पत्रिका ओपेन बुक्स ऑनलाइन (ओबीओ) ने अपने प्रकाशन के आरम्भ से ही अपने सदस्यों और रचना-कर्मियों के लिये जिस सीखने-सिखाने का माहौल बनाया है वह हिन्दी के साहित्यांगन में सकारात्मक चर्चा का विषय बन चुका है. मात्र कुछ महीनों में ही ओबीओ के मंच पर चल रहे इस विन्दुवत् प्रयास के सफल परिणाम आने लगे हैं.
एक बात जो एक अरसे से महसूस की जा रही थी, वह यह कि, आभासी दुनिया के रचनाकारों का भौतिक सम्मिलन भी होना चाहिये. ओबीओ के कई प्रबुद्ध सदस्यों के साथ-साथ ओबीओ प्रबन्धन का भी मानना रहा है कि शहर-दर-शहर छोटी-छोटी साहित्यिक-गोष्ठियों का समयबद्ध आयोजन उक्त शहर में साहित्यिक गतिविधियों में आशातीत त्वरण का कारण हो सकता है. साथ ही साथ, आपसी भावनात्मक सम्बन्धों के प्रगाढ़ होने मे ऐसे सम्मिलनों और सम्मेलनों की महती भूमिका हुआ करती है. इस सबका सकारात्मक प्रभाव रचनाकारों के साहित्यिक-कर्म पर खूब पड़ता है. कहना न होगा, इस तरह के आयोजनों की प्रबल संभावनाओं के बावज़ूद, उनके प्रारम्भ होने में आसन्न कठिनाइयाँ अधिक हावी हो रही थीं. इसी दौरान वाराणसी में सम्पन्न पिछले महीने की साहित्यिक-गोष्ठी का आयोजन सभी के लिये सकारात्मक उत्प्रेरण का कारण बन गयी.
मुझ खाक़सार के सादर अनुरोध पर ऊर्जस्वी वीनस केसरी के सुप्रयासों से ओबीओ के कई सदस्य और नेट की दुनिया से जुड़े साहित्यकार जोकि आभासी दुनिया में मेरे साथ-साथ कइयों के लिये महज़ सक्रिय नाम भर थे, ने वास्तविकता के धरातल पर आ कर भौतिक रूप से एक जगह मिलने का विचार किया.
दिनांक 26 नवम्बर 2011 का अपराह्न कई मायनों में ओबीओ के लिये ऐतिहासिक घड़ियाँ ले कर आया. वीनस केसरीजी, जो कि आभासी तथा वास्तविक दुनिया कई हस्ताक्षरों के सीधे सम्पर्क में हैं, ने शहर के कतिपय साहित्यप्रेमियों को इस शहर के ऐतिहासिक चन्द्रशेखर आज़ाद पार्क (कम्पनी बाग) के प्रांगण में काव्य-गोष्ठी होने की सूचना दे दी. किसी आयोजन के पूर्व मानव सुलभ चिंता और उसके ’सफल होने या न होने’ की मनोदशा और दुविधाओं से घिरे होने के बावज़ूद वीनसजी काव्य-गोष्ठी के आयोजन के प्रति जी जान से जुट गये. आज परिणाम सामने है -- साहित्यिक-गोष्ठियों के लिये पिछली पीढ़ियों में सुप्रसिद्ध प्रयाग शहर इन गोष्ठियों की आवश्यकता तक भूल चुका था, मानों जैसे जागृत हो गया.
राणाप्रतापजी, जयकृष्णजी ’तुषार’, श्रीमती लता आर. ओझा, विवेकजी, इम्तियाज़ अहमदजी ’ग़ाज़ी’, वीनसजी और मुझ ख़ाकसार के नामों की सूची लिये पार्क की मनमोहती हरीतिमा की पृष्ठभूमि में अशोक के एक विशाल छायादार वृक्ष की छाँव में वीनसजी के संचालन में गोष्ठी आरम्भ हुई. गोष्ठी की सदारत का जिम्मा मुझ ख़ाकसार पर डाल दिया गया.
विवेकजी से काव्य-पाठ का श्रीगणेश हुआ. आपकी ’मैं कौन हूँ’ रचना ने प्राकृतिक रहस्यों के अबूझपन के मध्य मानवीय संज्ञा को खँगालने का प्रयास किया. आपकी दूसरी रचना में गुरबत की ज़िन्दग़ी जी रहे लोगों का शब्द-चित्र बखूबी उतर आया था -
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गणेश, तब तो बड़ी अच्छी बात है.
मेरी जिंदगी का इतना बड़ा हिस्सा यहाँ गुजर गया किन्तु काव्य-गोष्ठी के बारे में बहुत उत्सुकता रहती थी. लेकिन मैं जिंदगी के झमेलों में इस तरह उलझी कि अपनी रुचियों को ही भूल गयी. और अब उम्र के इस मुकाम पर पहुँची तो कुछ कोशिशों से पता लगा कि यहाँ भी काव्य-गोष्ठी होती हैं. अब तक दो में ही जा सकी हूँ. एक में तो भारत से आने वाले तमाम कवियों का 'विराट सम्मलेन' हुआ था यू के के १२ शहरों में...लंदन में वो मंडली ४ सितम्बर को आई थी. और दूसरा काव्य-सम्मलेन अभी करीब एक महीने पहले लंदन में दिवाली के कुछ दिन पहले हुआ जहाँ भी मेरा जाना हुआ था. फोटो एल्बम है फेसबुक पर...देखना उसमें.
जिंदगी में तमाम लोगों के सामने पहली बार अपनी एक रचना पढ़ने का मौका मिला था मुझे भी. ...इसलिये मैं बड़ी नर्वस थी. यहाँ एक पत्रिका भी निकलती है हिंदी की. जिसके बारे में पहले पता नहीं था.
तब तो इनमें से कुछ से संपर्क करें और बस एक गोष्ठी सम्पन्न हुई समझिये.
//आनंद के बारे में इलाहाबाद में शिरकत किये हुए सदस्य ज्यादा प्रकाश डाल सकते है//
सत्य वचन. आनन्द की लहरें अभी भी हलोरें ले रही हैं. अभिभूत हैं सभी.
जी लता जी, आपने सही कहा है.
हम सभी आपस में एक दूसरे को पढ़ चुके थे, परन्तु आपस में मिलने का अविस्मरणीय संयोग नहीं बन पाया था.
सधन्यवाद
Bahot khushi hui is goshthi ke baare men jankar, agar Kanpur men hotito main sammilit hone men khshi mehsoos karti
शुभकामनाओं के लिये आपका धन्यवाद मोहतरमा मुमताज़जी.
आप कानपुर शहर में अपने तईं इस तरह की गोष्ठी के आयोजित होने का माहौल बना सकती हैं.
सौरभ जी, तुषार जी, राणा जी, लता जी, इम्तियाज़ जी और विवेक जी आप सभी का विशेष रूप से आभारी हूँ
आप कार्यक्रम में आयें और सभी ने मिल कर इसे "सफल कार्यक्रम" में परिवर्तित कर दिया
सफल इस मायनों में भी कि हममे से अधिकतर लोग एक दूसरे से पहली बार मिले और भौतिक रूप से उपस्थिति की एक सुन्दर शुरुआत हुई
और इस मायने में भी कि सभी को एक दूसरे से मिला कर आपार हर्ष हुआ
और कहीं न कही इस मायने में भी कि , मैं कई महीने से सभी लोग को आपस में मिलवाना चाहता था जो इलाहाबाद में हैं नेट की दुनिया में अच्छा कर रहे हैं और साहित्य से जुड़े हुए हैं
कार्यक्रम की रूपरेखा इतनी त्वरित बनी थी कि कई लोग कार्यक्रम में नहीं पहुँच सके क्योकि या तो इलाहाबाद में नहीं थे या अन्य कार्यक्रम में व्यस्त थे तो कोशिश रहेगी कि अगली बार वो सभी आ सकें जो इस बार नहीं आ सके
सादर
वीनस केशरी
हर कार्य का नियत समय होता है, वीनसजी. गोष्ठी के आयोजन का समय आया तो हर कुछ संयत होता चला गया.
कविवर अयोध्या प्रसाद सिंह ’हरिऔंध’ जी की कर्मवीरों को इंगित करती पंक्तियाँ हैं न..
देख कर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं
रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं
//कार्यक्रम की रूपरेखा इतनी त्वरित बनी थी कि कई लोग कार्यक्रम में नहीं पहुँच सके//
इस क्रम में फोन पर आप द्वारा श्रीमती अलकाजी से सम्बन्धित घटना का वर्णन करना मुझे दिल से दुखी कर गया है, जिसे मैं आपके माध्यम से सभी के साथ साझा करना चाहता हूँ.
अलकाजी उक्त आयोजन की परिधि तक आ गयी थीं किन्तु मोबाइल के घर पर ही छूट जाने के कारण हमसे सम्पर्क कर नियत स्थान तक नहीं आ पायीं. और करीब एक घण्टे तक भटकने के बाद वापस हो गयीं. वीनसजी, मुझे बहुत ही अफ़सोस हुआ है. जिस शारीरिक अवस्था और दौर में उनका होना ज्ञात हुआ है, उनके साथ इस तरह का कुछ होना हमसभी के लिये अत्यंत ही दुख की बात है. हम सब की भावनाओं से आप उन्हें अवश्य ही सूचित कर देंगे.
शानदार आयोजन और जानदार काव्य रचनाएँ !! वाह बधाई सभी को !!! क्या अच्छा होता हम सभी श्रोता के रूप में वहां होते !! बहरहाल इस रपट ने इस कमी को पूरा किया साधुवाद !!
भाई अभिनवजी, जिस तत्परता और आसानी से आपने वाराणसी की गोष्ठी को अंजाम दिया उसी का विस्तार प्रयाग क्षेत्र तक हुआ है. देखिये अगली गोष्ठी वाराणसी में कब होती है. और आप तो वैसे श्रोता हैं जो बखूबी अपनी रचना सुनाता है और खुल कर दाद भी पाता है.
इस सफल आयोजन के लिए सभी को बधाई|
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