आदरणीय साहित्य प्रेमियों
सादर वन्दे,
जैसा कि आप सभी को ज्ञात ही है कि ओपन बुक्स ऑनलाइन पर प्रत्येक महीने के प्रारंभ में "ओबीओ लाईव महा उत्सव" का आयोजन किया जाता है | दरअसल यह आयोजन रचनाकारों के लिए अपनी कलम की धार को और भी तेज़ करने का अवसर प्रदान करता है, इस आयोजन में एक कोई विषय देकर रचनाकारों को उस पर अपनी रचनायें प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है | पिछले १३ कामयाब आयोजनों में रचनाकारों में १३ विभिन्न विषयों बड़े जोशो खरोश के साथ और बढ़ चढ़ कर कलम आजमाई की है ! इसी सिलसिले की अगली कड़ी में ओपन बुक्स ऑनलाइन पेश कर रहा है:
"OBO लाइव महा उत्सव" अंक १४
विषय - "आशा""आशा" जोकि जीवन का आधार भी है और सकारात्मकता का प्रतीक भी, दरअसल मात्र एक शब्द न होकर एक बहु-आयामी विषय है जिसकी व्याख्या असंख्य तरीकों से की जा सकती है | अत: इस शब्द के माध्यम से अपनी बात कहने के लिए रचना धर्मियों के लिए एक बहुत बड़ा कैनवास उपलब्ध करवाया गया है | तो आईए वर्ष २०११ के अंतिम "ओबीओ लाईव महा उत्सव" में, उठाइए अपनी कलम और रच डालिये कोई शाहकार रचना | मित्रो, बात बेशक छोटी कहें मगर वो बात गंभीर घाव करने में सक्षम हो तो आनंद आ जाए |
महा उत्सव के लिए दिए विषय "आशा" को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है | उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है:
अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन समिति ने यह निर्णय लिया है कि "OBO लाइव महा उत्सव" अंक- १४ में सदस्यगण आयोजन अवधि में अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ ही प्रस्तुत कर सकेंगे | नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा गैर स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटा दिया जाएगा, यह अधिकार प्रबंधन सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी |
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो गुरूवार ८ दिसंबर लगते ही खोल दिया जायेगा )
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"महा उत्सव" के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
मंच संचालक
धर्मेन्द्र शर्मा (धरम)
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सादर धन्यवाद भाई धर्मेन्द्र जी ! आपने बिलकुल सही फ़रमाया, उस पंक्ति में वाकई टूट रही है, मैं पुन: कोशिश करूँगा.
आपकी लेखिनी को मानो पंख लग गये, आदरणीय योगराज भाई साहब. कथ्य, अनुभाव, शिल्प हर तरह से सधी इन कुण्डलियों के लिये आपका सादर आभार.
पहली कुण्डलिया - जीवटपन और जुझारूपन को आदाब करती प्रस्तुत कुण्डलिया कर्मवीरों और मन के बादशाहों का बखूबी बखान करती चलती है. अपने परिवेश और गाँव की सुरम्य प्रकृति की चर्चा हो या मरुस्थल के वक्ष को चीर कर गङ्गा निकाल लाने की उन्नत सोच हो, प्रस्तुत छंद न केवल उत्साहकारी है, बल्कि, आशा और विश्वास को धार कर कोई सकारात्मक सोचवाला क्या कुछ कर गुजर सकता है का मानक भी साधती है यह कुण्डलिया.
दूसरी कुण्डलिया - अपने विकास-जीवन की राह पर तो सभी निरन्तर चलते तहते हैं. परन्तु, कम ही होते हैं जो संसार की ज़द्दोज़हद और उठापटक या चौंधियाती रंगीनियों के कारण भटक नहीं जाते. हाँ, जिनके मन दृढ़ हैं और जिनको अपनी सकारात्मकता तथा आशाओं का सहारा है, वे अपनी राह से कत्तई भटक नहीं सकते, क्योंकि, दुनियावी ज़द्दोज़हद में भी वे निराश नहीं होते. तो, रंगीनियों की चकाचौंध भी उन्हें हतप्रभ कर भटका नहीं सकती. वे हर हाल में विजयी होते हैं. इस कुण्डलिया का संदेश हर तरह से अभिव्यक्त हुआ है.
तीसरी कुण्डलिया - मनुष्य के होने का वास्तविक अर्थ यह नहीं तो और क्या है !! बहुत सुन्दर ढंग से तीसरी कुण्डलिया आज को स्वीकार कर आगामी को सँवारने की बात करती है. बहुत सुन्दर .. वाह-वाह !!
चौथी कुण्डलिया - वही तो !.. एक जिम्मेदार रचनाकार वर्तमान समाज की सच्चाई और आज की वास्तविकता से आँखें मूँदे रह भी कैसे सकता है ! आपकी चौथी क्रम की प्रस्तुति जिस उत्साह से उस संतुष्टिकारक भोर के प्रति निहार रही है, वह वस्तुतः आशा की मुखर परिचयात्मकता है. अति सुन्दर !
पाँचवीं कुण्डलिया - भारत माँ के इस ऊर्जस्वी पुत्र के प्रति हर्दिक आभार ! छंद में अभिव्यक्त आशा में जितना विश्वास, जितना गठन और जितना संबल है वह दिन अब अधिक दूर नहीं दीखता जिस दिन हमारे प्रति बनी समस्त दुनिया की अपेक्षा साकार हो जायेगी. रचनाकार की इस सकारात्मक और सार्वभौमिक आशा से हम सभी का वक्ष गर्व और सात्विक अभिमान से चौड़ा हो गया है. साधुवाद ! साधुवाद !!
आपकी सभी कुण्डलियों पर मैं मुग्ध हूँ, आदरणीय. उन्नत विचारों से पगी इन प्रस्तुतियों पर आपको सादर धन्यवाद देता हूँ. आपने शिल्पगत बहुत सुन्दर प्रयास किये हैं.
मैं जानता हूँ कि छंद की पृष्ठभूमि से इतर किसी रचनाकार के लिये छंदबद्ध बंद गढ़ना इतना सहज नहीं होता, जिस सहजता से आपकी प्रस्तुतियाँ सापेक्ष हुई है. आपकी पद्य तथा छंद के प्रति गंभीरता इन छंदों में दीख रहे कुछ इधर-उधर के अनगढ़पन से भी आपको उबार लेगी. ....... सादर.
भाई योगी आपकी, कुण्डलियाँ उत्तेज
आशा औ’ विश्वास से, आप दिखें लबरेज
आप दिखें लबरेज, सुन्दर पद्य अनुशासी
दिखा नहीं नैराश्य, लगी हर रचना खासी
अद्भुत इनका शिल्प, कहन में बड़ी ऊँचाई
सदा रहें प्रभु आप, बने अपने ’बड़-भाई’ ॥
बहुत उदार विश्लेषण किया आदरणीय सौरभ जी..मैं अभी भी आपकी शाला का एक शागिर्द हूँ, कृपा दृष्टि बहाने रखिये
सत्य वचन मित्रवर ! भाई सौरभ जी की इस शैली का मैं भी क़ायल हूँ !
सादर मान्यवर .. . बहुत कुछ सीखा है आपसे..
सहयोग बना रहे .. .
जय हो जय हो ! सादर :
प्रयास करता हूँ, उसका होना ही कर्म है धरम भाई जी.
आदरणीय सौरभ भाई जी, जिस प्रकार आपने एक-एक रचना को बारीकी से देखा समझा और पसंद किया, यह देख कर मेरा श्रम सार्थक हो गया. तह-ए-दिल से शुक्रिया सर.
आपकी सभी की सभी कुण्डलियों के कथ्य अति उच्च कोटि के हैं, आदरणीय. इस तरह की रचनाओं का होना अनायास ही होता है, जोकि महज़ साहित्य की नियमावलियों के अनुपालन से कत्तई नहीं होता. इस तरह की रचनाकार्मिकता पर सायास कुछ नहीं कहा जाता, भाई साहब जी, बल्कि, घनीभूत भाव यथोचित ढंग और शब्द ढूँढ-ढूँढ कर संतृप्त होते चले जाते हैं. सो, उक्त टिप्पणी की सही हक़दार आपकी प्रस्तुतियाँ ही हैं जिन्हों ने मुझे पाठकधर्म हेतु सुप्रेरित किया है.
सादर
जितनी सशक्त रचनाएँ उतनी ही ज़बरदस्त समीक्षा. कहना न होगा आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, कि आपकी रचना और प्रतिक्रिया पढने का आनंद ही कुछ और होता है. सादर.
आपकी उदार और मुखर शाबासी के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद भाई रविजी.
आपके अन्दर का पाठक उच्च कोटि का पिपासु है और उचित रचना-रस की जुगाड़ में लगा रहता है, इस करके मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें. आपका होना हम सभी के लिये अत्यंत उत्साह का कारण है.
सधन्यवाद .. .
सौरभ भईया, आपने बहुत ही बेहतरीन तरीके से कुंडलियों को विश्लेषित किया है, काश हमारे मित्र श्यामल जी भी देख पाते | आभार आपका आदरणीय |
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