परम आत्मीय स्वजन
पिछले दिनों अदम गोंडवी हमारे मध्य नहीं रहे, वह अदम गोंडवी जिन्होंने अपनी कलम को हमेशा अंतिम पंक्ति के आदमी के लिए इस्तेमाल किया| सादगी की प्रतिमूर्ति अदम गोंडवी, दुष्यंत कुमार की परम्परा के प्रतिनिधि शायर थे| उन्होंने अपनी शायरी के माध्यम से सामाजिक विषमताओं, समाज में शरीर पर मैल की तरह जम चुके भ्रष्टाचार और निचले तबके के इंसान की भावनाओं को स्वर दिया| "जबकि ठन्डे चूल्हे पर खाली पतीली है| बताओ कैसे लिख दूं धूप फागुन की नशीली है" यह पंक्तियाँ लिखने के लिए एक साहस की आवश्यकता होती है और जिस इंसान के अंदर यह साहस आ जाये वही बड़ा शायर कहलाता है|
अदम गोंडवी का असली नाम रामनाथ सिंह था| ग्राम आटा, जनपद गोंडा, उत्तर प्रदेश में सन १९४२ ई० को उनका जन्म हुआ था| उनके लिखे गजल संग्रह 'धरती की सतह पर'मुक्ति प्रकाशन व 'समय से मुठभेड़' के नाम से वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुए।
इस बार का तरही मुशायरा भी हम अदम गोंडवी को श्रद्धांजलि स्वरुप समर्पित करते हैं| प्रस्तुत मिसरा भी उन्ही की एक गज़ल का हिस्सा है और हमें इसी मिसरे पर कलम आजमाइश करनी है|
"जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाए सफ़ीने से"
तकतीई: जि/१/से/२/सा/२/हिल/२ कि/१/हस/२/रत/२/हो उ/१/तर/२/जा/२/ये/२ स/१/फी/२/ने/२/से/२
बह्र: बह्र हज़ज़ मुसम्मन सालिम
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
रदीफ: से
काफिया: ईने (सफीने, महीने, करीने, जीने, सीने आदि)
मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २८ दिसंबर दिन बुधवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक ३० दिसंबर दिन शुक्रवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |
अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक १८ जो पूर्व की भाति तीन दिनों तक चलेगा,जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन)
ओपनबुक्स ऑनलाइन
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धन्यवाद मुमताज़ जी.
कभी ज़ुर्रत, कभी तेवर, सिफ़ारिश भी करीने से
बना लो काम जैसे हो, यही आशय है जीने से ||1|| खूबसूरती से बात कह दी
चलो इतना भी क्या कम है वो मुझसे बात करते हैं
कहाँ तो हम बिना हैं नाम, वो हैं नामचीने से ||2|| बेशकीमती
मेरी दुनिया, मेरे अंदाज़, मेरे ग़म, अमा छोड़ो
बहुत खेला किये अब तक हमारे खूं-पसीने से !! ||3||लाजवाब
हुआ क्या ग़र कमीना हूँ, तभी ठेंगे पे दुनिया है
कहे, उलझा नहीं करते किसी बिफरे कमीने से ||4||
कँपाती सर्द रातों में यही चर्चा ’मरे कितने’
सयानी बात होती है, घिरे जब पाशमीने से ||5||
जहाँ भोगी करे हैं तय सभी के लोक औ’ परलोक
वहाँ का धर्म चलता खास काशी से, मदीने से ||6||
चढ़े दरिया सरीखी ज़िन्दग़ी की मौज़ में हूँ मस्त
जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाये सफीने से ||7||
बिना मानी जिये जाता, नहीं है फ़िक्र हासिल की
उड़ाये बात खेतों की, पटे हैं जो पुदीने से ||8|| लाज़वाब शे’र है.
इस लाजवाब गज़ल हेतु ढेरों दाद कबूलिये|
सियाजी, आपकी तारीफ़ और हौसला अफ़ज़ाई के दिल से शुक्रिया.
सधन्यवाद
चलो मालूम हो जाए ज़िग़र रखते हैं कुछ प्यादे
किन्हीं हाथों के खंज़र को बुलावा आज सीने से ||9||
लाजवाब
दिलबाग़ जी, आपको मेरा उक्त शे’र पसंद आया यह मेरे लिये भी सुकूं की बात है.
सधन्यवाद.
कभी ज़ुर्रत, कभी तेवर, सिफ़ारिश भी करीने से
बना लो काम जैसे हो, यही आशय है जीने से ||1||
निराले हुस्न सी बोझिल गुदाज़ी ठंढ है तारी
पिनक पे आ रही रंगत मुसलसल यार पीने से ||10||
दोनो अश'आर गज़ब के हैं,हमारी दाद कबूल फरमायें...
अरुण जी, हार्दिक धन्यवाद कि मेरी ग़ज़ल के दो अश’आर आपको दिल के करीब लगे.
ध्यातव्य : बीजगणित (अल्जेब्रा) के फ़स्ट इनटू लास्ट टाइप फैक्टर्स की तर्ज़ पर ये दोनों शे’र ग़ज़ल के पहले और आखिरी शे’र हैं ! हा हा हा ... :-))))))
कभी ज़ुर्रत, कभी तेवर, सिफ़ारिश भी करीने से
बना लो काम जैसे हो, यही आशय है जीने से ||1||
वर्तमान समय को ध्यान में रखते हुए प्रेरणादाई शेर....आफरीन है सर.. वाह वाह
चलो इतना भी क्या कम है वो मुझसे बात करते हैं
कहाँ तो हम बिना हैं नाम, वो हैं नामचीने से ||2||
ये कौन सा वाक्य है जो बयान हुआ है सर? क्या कोई पुरानी डायरी के पन्ने की गर्द झाड़ी लगती है.. पर क्या कमाल की बात है...
मेरी दुनिया, मेरे अंदाज़, मेरे ग़म, अमा छोड़ो
बहुत खेला किये अब तक हमारे खूं-पसीने से !! ||3||
बड़ी ही ताना कशी करती हुई सी पंक्तियाँ है.. घाव करे गंभीर वाली ... मज़ा आ गया
हुआ क्या ग़र कमीना हूँ, तभी ठेंगे पे दुनिया है
कहे, उलझा नहीं करते किसी बिफरे कमीने से ||4||
हा हा हा हा ... ये हिदायत ज़ेहन में रखूँगा... :)
कँपाती सर्द रातों में यही चर्चा ’मरे कितने’
सयानी बात होती है, घिरे जब पाशमीने से ||5||
तथा कथित उच्च वर्गीय बुध्धि जीवियों के मर्म पर गहरी चोट की है साहब.. वाह वाह !
जहाँ भोगी करे हैं तय सभी के लोक औ’ परलोक
वहाँ का धर्म चलता खास काशी से, मदीने से ||6||
काश कि ऐसे हालत पैदा न हों और जहाँ हैं वो इस पंक्ति को पढ़ कर अपने भीतर झांके ..
चढ़े दरिया सरीखी ज़िन्दग़ी की मौज़ में हूँ मस्त
जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाये सफीने से ||7||
बहुत ही उम्दा तरीके से अपना फलसफा बयान किया है सर.. हार्दिक बधाई..
बिना मानी जिये जाता, नहीं है फ़िक्र हासिल की
उड़ाये बात खेतों की, पटे हैं जो पुदीने से ||8||
इस काफिये में पुदीने भी फिट हो जायेगा और वह भी इतनी खूबसूरती से यह पढ़ कर दिल पुदीने कि चटनी कि तरह फ्रेश हो गया
चलो मालूम हो जाए ज़िग़र रखते हैं कुछ प्यादे
किन्हीं हाथों के खंज़र को बुलावा आज सीने से ||9||
वाह क्या ललकार है....
निराले हुस्न सी बोझिल गुदाज़ी ठंढ है तारी
पिनक पे आ रही रंगत मुसलसल यार पीने से ||10||
क्या बयानगी है... आहा ... यकीनन समय पीने का नहीं है अभी फिर भी पिनक आ रही है :) ..
भाई दुष्यंत सेवक जी, आपकी शे’र-दर-शे’र टिप्पणियों ने मन मोह लिया है. इसी जोश और ज़िन्दादिली से उत्साहित करते रहें, लिखने वालों का मनोबल बना रहता है.
सधन्यवाद
//चढ़े दरिया सरीखी ज़िन्दग़ी की मौज़ में हूँ मस्त
जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाये सफीने से//
वाह वाह भाई साहब, क्या मस्त गिरह लगाईं है, बहुत खूब ,
//निराले हुस्न सी बोझिल गुदाज़ी ठंढ है तारी
पिनक पे आ रही रंगत मुसलसल यार पीने से //
आय हाय हाय, जबरदस्त शे'र, बहुत ही सुन्दर ख्यालात,
सभी शेर बहुत ही सुन्दर कहे है, दाद कुबूल करे आदरणीय |
दस में से मनके निकाले भी तो क्या !!.. आपकी तारीफ़ भाई टोपी पर का फुनगा है. .. !!!
एक बात : आखिरी शे’र का मुझसे सुनना कैसा लगा ये तो आपने बताना था न, भाई !? .. .. हा हा हा हा... .. :-)))))))))
//निराले हुस्न सी बोझिल गुदाज़ी ठंढ है तारी
पिनक पे आ रही रंगत मुसलसल यार पीने से//
आय हाय हाय, हुजुर आपसे यह शे'र सुनना बिलकुल वैसा ही लगा जैसे कोई वैष्णव जन भंसा से आ रहे सुगंध पर यह कहे कि वाह वाह मटन का सोरबा ऐसा है तो मटन कितना बढ़िया बना होगा || :-))))))))
इस शे'र पर अलग से दाद कुबूल करे { इस शे'र पर दाद मैं खोपचे में देना चाहता था किन्तु आपके आदेश पालन करते हुए बघार में ही लिखना पड़ा :-)))))... }
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