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आदरणीय साहित्य प्रेमियों

सादर वन्दे,

जैसा कि आप सभी को ज्ञात ही है कि ओपन बुक्स ऑनलाइन पर प्रत्येक महीने के प्रारंभ में "ओबीओ लाइव महाउत्सव" का आयोजन किया जाता है | दरअसल यह आयोजन रचनाकारों के लिए अपनी कलम की धार को और भी तेज़ करने का अवसर प्रदान करता है, इस आयोजन में एक कोई विषय देकर रचनाकारों को उस पर अपनी रचनायें प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है | पिछले १५ कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने १५ विभिन्न विषयों पर बड़े जोशो खरोश के साथ और बढ़ चढ़ कर  कलम आजमाई की है ! इसी सिलसिले की अगली कड़ी में ओपन बुक्स ऑनलाइन पेश कर रहा है:-

"OBO लाइव महा उत्सव" अंक  १६   

विषय - "कन्यादान"  
आयोजन की अवधि बुधवार ८ फरवरी २०१२ से शुक्रवार १० फरवरी २०१२

महा उत्सव के लिए दिए विषय "कन्यादान" को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है | मित्रों, ध्यान रहे कि बात बेशक छोटी कहें मगर वो बात गंभीर घाव करने में सक्षम हो तो आनंद आ जाए |

उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है :-

  1. तुकांत कविता
  2. अतुकांत आधुनिक कविता
  3. हास्य कविता
  4. गीत-नवगीत
  5. ग़ज़ल
  6. हाइकु
  7. व्यंग्य काव्य
  8. मुक्तक
  9. छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका इत्यादि)

 अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन समिति ने यह निर्णय लिया है कि "OBO लाइव महा उत्सव" अंक- १६ में पूर्व कि भाति सदस्यगण आयोजन अवधि में अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ ही प्रस्तुत कर सकेंगे | नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा गैर स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटा दिया जाएगा, यह अधिकार प्रबंधन सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी |


(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो बुधवार ८ फरवरी लगते ही खोल दिया जायेगा )


यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com  पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें |


"महा उत्सव"  के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...

"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ


मंच संचालक

धर्मेन्द्र शर्मा (धरम)

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Replies to This Discussion

आपकी इस बेहतरीन बेहद लाजवाब रचना के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.  

आभार!

धन्यवाद् ! 
शुक्रिया !  
Siya ji.

भाई अविनाशजी, इस सुन्दर और शिल्पतः सुगठित और भावनात्मक रूप से समृद्ध कविता के लिये आपका हृदय से अभिवादन कर रहा हूँ.

यह अवश्य है कि, प्रत्येक द्विपदी के पीछे गहन विचार और समाजिक विसंगतियों के विरुद्ध मानसिक उद्वेलन है जो किसी संवेदनशील कवि का उज्ज्वल पक्ष है. 

मुहँ - दिखायी  बोलें  या ले लें कन्या-दान को!

रुढ़ियों  में फंसा रखा है, हमने हिंदुस्तान को !..     इधर से छूएँ या उधर से, छुआती नाक ही है.  बहुत ही सुन्दरता से स्पेड को आपने स्पेड कहा है, भाई जी. 

  

एक तरफ उद्वेलित करती, ऑनर -कीलिंग की घटना!

और "कल्पना" की देखा  है , हमने सफल उड़ान को.   ....  कल्पना की सफल या निष्फल उड़ान का बिम्ब सीधे तीर की तरह मनस को बींध देता है. विशेषकर ’आनर-किलिंग’ के परिप्रेक्ष्य में यह द्विपदी और भी मारक लग रही है. बहुत ही सुन्दर संयोजन !

 

बचपन से ही ऐसी बातें, घुट्टी में दी जाती है !

फिर कहते हो रखो बचाए, नारी के सम्मान को !! ...........    इसी को कहते हैं - मारे भी और रोए भी न दे.  बहुत खूब !

 

ये ही फितरत देखी हमने,धरती पे इन्सान की!

करें गलतियाँ खुद और दोषी ठहराते भगवान को!!    ..........   ये तो पुरानी ज़मीनी फ़ितरत है. इन्सान क्या भगवान को भी नहीं बख़्श्ते लोग.  इस द्विपदी की ऊँचाई पर हृदय से साधुवाद, भाई अविनाश जी.

 

मां है,बेटी,बहन या बीबी,वस्तु या कोई चीज़ नहीं.

देती जो "घर" की परिभाषा, पत्थर-जड़े मकान को.  ..   इस सत्य को कितनी आसानी लेकिन कितने प्रभावशाली ढंग से कहा है आपने.  बहुत सुन्दर .. .

भाईजी, आपकी इस रचना पर मेरी दिल से हामी है. इधर आपकी रचनाओं में ग़ज़ब की गहनता आई है.  यह शुभ-संकेत है, मंच के लिये भी.

//

ये ही फितरत देखी हमने,धरती पे इन्सान की!

करें गलतियाँ खुद और दोषी ठहराते भगवान को!!

**

मां है,बेटी,बहन या बीबी,वस्तु या कोई चीज़ नहीं.

देती जो "घर" की परिभाषा, पत्थर-जड़े मकान को.......//

वाह आदरणीय बागडे जी वाह ! बिलकुल सत्य कहा है आपने ! बहुत बहुत बधाई मित्र !

आदरणीय एडमिन जी एवं मित्रों,

नमस्कार,

अचानक आवश्यक कार्य से मुझे जबलपुर से दुर्ग जाना पड़ रहा है, रात भर का सफर है, कल यदि नेट उपलब्ध हो पाया तो महोत्सव में अवश्य ही सम्मिलित होने का प्रयास करूंगा, सभी से क्षमा याचना सहित विदा ले रहा हूँ..

अरुण जी , यात्रा मंगलमय हो |

याने हम आये तो आप नदारद ! ..

खैर मज़ाक नहीं. अरुण जी, आपकी यात्रा एक सफल यात्रा हो.

आपकी यात्रा मंगलमय  हो !

जैसे बेटी वस्तु हो , ना हो वो इंसान |
कैसी उल्टी रीत है , करते कन्यादान ||
करते कन्यादान , समझते सभी पराई |
सास-ससुर-माँ-बाप, ना किसी ने अपनाई ||
बेटे को दें सौंप , जायदाद , जमीं , पैसे |
बेटी खाली हाथ , विर्क औलाद न जैसे ||

समझो तुम इति श्री नहीं , करके कन्यादान |
फर्ज अभी हैं ओर भी , है वो भी सन्तान ||
है वो भी सन्तान , बराबर की अधिकारी |
बेटा सब कुछ मान , करो तुम गलती भारी ||
बदल गया है वक्त , रिवाज पुराने बदलो |
कहे विर्क कविराय , सभी अब इसको समझो ||

                 -------- दिलबाग विर्क 

bahut sundar dohe bahut prernadayak.

बहुत बहुत आभार

बहुत ही गहरा विवेचन करती हैं आपकी रचना की सभी पंक्तियाँ...हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये आदरणीय विर्क जी.

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