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मानसरोवर से मैं  निकली गंगोत्री  मेरा धाम 
पाप धोएं पापी मुझमे फिर भी मैं निष्काम
प्रयास भगीरथ करके लाये  धरा   निज  धाम 
साठ सहस्त्र पुरखे तारे  कहाँ  मोहे   विश्राम 
चली नगर जब  भर   डगर  बंजर उपजाऊ   हो  गए
छा गयी हरियाली जग में प्यासे मन   हर्षित   हो गये
माँ कहके जन पुकारे मुझको  आरती करे सुबह शाम 
कैसे दुश्मन इस धरा के मैला छोड़  रहे  बेदाम 
आये न लज्जा करें न सज्जा मति  इनकी  मारी   है 
काहे   करते  मैला मुझको  ऐसी भी   क्या  लाचारी  है 
 करोगे गर अब तुम अब भी मैला तेरे उपवन खाऊँगी
जहरीली तो मैं हो चुकी अब न बचूं  मर जाउंगी 
समय अभी  है चेत  जा  मानव काहे  अपमान करे 
माँ हूँ तेरी लाख सताए तू काहे का अभिमान करे 
राजा  बैठा  करे न रक्षा संतन की  अब बारी है 
पूत कपूत भये अब तो लम्पट औ   व्यभिचारी हैं  
आओ सब मिल साफ़ करो मांग रही हूँ भिक्षा 
माँ की ये हालत कर दी क्या मिली थी शिक्षा 

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 19, 2012 at 10:24pm

ईश पुत्री, सस्नेह 

बहुत चिंता है, धन्यवाद सहभागिता हेतु.
Comment by Sarita Sinha on May 19, 2012 at 3:33pm

आदरणीय कुशवाहा जी, सादर प्रणाम,

माँ गंगा के असामयिक गमन की चिंता को दर्शाती हुई बहुत सुन्दर कविता..........बधाई......
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 18, 2012 at 5:55pm
आदरणीय  सूरज   जी, सादर 
धन्यवाद .
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 18, 2012 at 5:54pm
आदरणीय रेखा जी, सादर 
धन्यवाद .
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 18, 2012 at 5:53pm

आदरणीय  बागी   जी, सादर 

आपने   सराहा ,  होंसला बढ़ा. आभार 
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 18, 2012 at 5:51pm

आदरणीय भ्रमर जी, सादर 

धन्यवाद, सराहना हेतु. 
Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 17, 2012 at 7:15pm

प्रदीप जी गंगा बचाओ अभियान में ये रचना अपना सम्पूर्ण योगदान देगी ऐसी आशा है। इतना मार्मिक और और शशक्त रचना प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत बधाई ! आओ सभी मिल के पतित पावनी गंगा की दारुण पुकार सुने और गंगा को स्वक्छ रखें !! अति सुंदर !

Comment by Rekha Joshi on May 16, 2012 at 5:44pm

आओ सब मिल साफ़ करो मांग रही हूँ भिक्षा 

माँ की ये हालत कर दी क्या मिली थी शिक्षा ati sundr pnktiyaan,badhai

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 15, 2012 at 9:49am

//राजा  बैठा  करे न रक्षा संतन की  अब बारी है 

पूत कपूत भये अब तो लम्पट औ   व्यभिचारी हैं //
आदरणीय प्रदीप सिंह जी, माँ गंगा के प्रति आपकी चिंता इस रचना में स्पष्ट दृष्टिगोचर है, बहुत ही मार्मिक रचना, बहुत बहुत बधाई इस ससक्त अभिव्यक्ति पर |
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 13, 2012 at 5:02pm

आदरणीय  राजेश कुमारी   जी, सादर

आपकी सराहना ने मुझे बल दिया 
समय, समर्थन हेतु आभार 
जय गंगा मैया , धन्यवाद .

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